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    'रेडीमेड' सड़क करेगी पर्यावरण संरक्षण, समय और श्रम की भी बचत; बहुत खास है ये नई तकनीक

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 06:21 PM (IST)

    केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) ने भारत पेट्रोलियम के साथ मिलकर प्लास्टिक कचरे से रेडीमेड सड़क बनाने की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके शीट और जियोसेल नामक परत तैयार की जाती है जिससे सड़क की उम्र 2 से 5 गुना बढ़ जाएगी। सीआरआरआई 11 जुलाई को डीएनडी-फरीदाबाद-केएमपी एक्सप्रेसवे पर 100 मीटर की रेडीमेड सड़क बिछाने जा रहा है।

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    ये है जियोसेल की परत, इसे अनुपयोगी प्लास्टिक से तैयार किया गया है। जागरण

    वीके शुक्ला, नई दिल्ली। खराब सड़कों और गड्ढों से अब जल्द निजात मिलने जा रही है। अनुपयोगी प्लास्टिक का प्रयोग सड़क बनाने में कर रहे केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) ने अब इस दिशा में एक कदम और बढ़ाते हुए रेडीमेड सड़क बनाने की शुरुआत कर दी है।

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    इसमें राहत वाली बात ये भी है कि ये पर्यावरण के लिए तो अनुकूल होंगी ही, इसके प्रयोग से सड़क की उम्र भी दो से पांच गुना तक बढ़ेगी साथ ही समय, श्रम की बचत के साथ लागत भी कम होगी।

    CRRI और भारत पेट्रोलियम ने मिलकर तैयार की नई तकनीक

    सीआरआरआई ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के सहयोग से मिश्रित अपशिष्ट प्लास्टिक का उपयोग कर एक शीट और जियोसेल नामक तकनीक की परत तैयार की है। जिसमें प्लास्टिक कचरे और अनुपयोगी प्लास्टिक का उपयोग किया गया है।

    सीआरआरआई और बीपीसीएल मिलकर 11 जुलाई को डीएनडी, फरीदाबाद-केएमपी एक्सप्रेसवे पर 100 मीटर में इस रेडीमेड सड़क को बिछाने की शुरुआत भी कर रहे हैं।

    चार से आठ मिमी मोटी इस प्लास्टिक की शीट को सड़क बनाने के लिए बिछाकर इस पर ऊपर कोलतार मिक्स रोड़ी बिछा दी जाएगी। इससे सड़क बनाने में तो कम समय लगेगा ही, उसकी मजबूती भी सुनिश्चित होगी।

    सीआरआरआई का दावा है यह अब तक का पहला प्रयोग है। अभी तक हम अनुपयोगी प्लास्टिक का प्रयोग सड़क बनाने में कर रहे थे लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम थी। अब नई तकनीक के तहत प्रति 100 मीटर में 30 टन तक प्लास्टिक कचरे का उपयोग हो सकेगा।

    बता दें कि भारत में प्रति वर्ष 34 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। मगर सिर्फ 30% की रीसाइक्लिंग हो पाता है।

    दो तरह से प्लास्टिक कचरे का होगा उपयोग

    सीआरआरआई की वरिष्ठ प्रधान विज्ञानी अंबिका बहल के अनुसार पहले प्रयोग के तहत अनुपयोगी प्लास्टिक को एकत्रित कर प्लांट में उसकी शीट बनाकर सड़कों को बनाने में उपयोग किया जाएगा। दूसरे प्रयोग के तहत भी प्लास्टिक कचरे का उपयोग होगा जिसमें जियोसेल नामक एक तकनीकी परत तैयार की जा सकेगी।

    इसे सड़क पर अधिक खराब होने वाले स्थान या निचले स्थान पर कोलतार मिक्स रोड़ी डालने से पहले बिछाया जाएगा और इससे सड़क को और मजबूती मिलेगी। इस तरह से भी अनुपयोगी प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकेगा और सड़क भी जल्दी बन सकेगी।

    समय और लागत दोनों की बचत

    प्लांट से तैयार होकर आने वाली प्लास्टिक शीटों को पहले जमीन पर बिछाया जाएगा उसके ऊपर लगभग 50 एमएम की हाटमिक्स कोलतार व रोड़ी की परत डाली जाएगी। इसके डालने से प्लास्टिक की शीट गर्म होने पर जमीन को पकड़ लेगी और ऊपर से डाली जाने वाली सामग्री में भी अपनी पकड़ बनाएगी और सामग्री के ठंडा होने पर इसमें पत्थर जैसी मजबूती आएगी। इस तकनीक से सड़कों का निर्माण भी सस्ता हो सकेगा। श्रम भी कम लगेगा, मजबूती तो होगी ही।

    अक्सर देखा जाता है कि लैंडफिल साइटों पर भी कूड़ा बीनने वाले कूड़े में से उपयोगी प्लास्टिक को तो उठा लेते हैं और आगे जाकर उसकी रीसाइक्लिंग होती है, मगर जो प्लास्टिक अनुपयोगी है, उसको रीसाइकिल नहीं किया जाता। ऐसी प्लास्टिक का भी इस सड़क बनाने के लिए शीट में उपयोग किया जा सकेगा। इसके लिए प्लास्टिक की धुलाई सफाई की भी कोई जरूरत नहीं होगी और ऐसे में प्लास्टिक धुलाई सफाई पर आने वाले खर्च को भी बचाया जा सकेगा।

    - अंबिका बहल, वरिष्ठ  प्रधान विज्ञानी, सीआरआरआई

    सड़कों में अनुपयोगी प्लास्टिक के उपयोग को लेकर सीआरआईआइ काफी पहले ही मंजूरी दे चुकी है। अब अगर इस पर और नए तरीके से काम किया जा रहा है तो यह एक अच्छी बात है। हां, अभी इसके लिए पूरी व्यवस्था को भी मजबूत बनाना होगा, प्लास्टिक की उपलब्धता को भी और अधिक बढ़ाना होगा।

    - आशीष जैन, अध्यक्ष, इंडियन पाल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन