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पढ़ें- दिल्ली के उस गांव के बारे में, जहां हैं ज्यादा पढ़े लिखे लोग; आजादी की लड़ाई में भी रहा बड़ा योगदान

चौधरी भिखारी कहते हैं कि उनके बाबा यादराम और न्यादर ने आजादी की लड़ाई भी लड़ी थी। जब-जब महात्मा गांधी कोई आंदोलन छेड़ते थे तो वे दोनों अपने साथ गांव से टोली लेकर जाते थे और गांधी के साथ हर आंदोलन में शामिल होते थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 10 Apr 2021 04:36 PM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 04:36 PM (IST)
पढ़ें- दिल्ली के उस गांव के बारे में, जहां हैं ज्यादा पढ़े लिखे लोग; आजादी की लड़ाई में भी रहा बड़ा योगदान
सभापुर गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर। यहां से जुड़ी है लोगों की आस्था। जागरण

नई दिल्ली [रितु राणा]। दिल्ली का सभापुर गांव..इसका इतिहास जितना पुराना है उतने ही दिलचस्प इसके बसने और नामकरण के किस्से भी हैं। ग्रामीणों की मानें तो हजारों वर्ष पूर्व गुजरात, जैसलमेर होते हुए गांव के पूर्वज दिल्ली पहुंचे थे। चूंकि तब ये लोग खेती पर ही निर्भर थे इसलिए दिल्ली आने के बाद उन्होंने यमुना किनारे ही जगह तलाशनी शुरू की। इसी तलाश में पूर्वज पहले आश्रम के पास किलोकरी गांव में रहे। इसके बाद वहां की जमीनें ब्राह्मणों को दान देकर कश्मीरी गेट में पुरानी कचहरी के पास रहने लगे। वहां से निकलकर श्यामगिरी मंदिर के पास कैथवाड़ा गांव में यमुना किनारे चले गए। वहां खेती व पशुपालन कर जीवन यापन करने लगे।

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बुजुर्ग चौधरी भिखारी कहते हैं कि कैथवाड़ा से भी अलग होकर यमुनापार में डेढ़ा गोत्र के 24 गांव बसे, जिनमें सबसे बड़ा गांव सभापुर है। सभापुर व जगतपुरी गांव के लोग साथ चले थे लेकिन वह यमुनापार चले गए और सभापुर गांव के लोग यमुना किनारे बसे। चौधरी राम पाल की मानें सभापुर गांव को चौधरी बक्शी थोक ने बसाया था। वह गांव के बाबा थे। गांव में आज भी यमुना किनारे गेंहू, ज्वार व बाजरे की खेती होती है।

ज्यादा सभा होने से नाम पड़ा सभापुर

यमुनापार में डेढ़ा गोत्र के 24 गांवों में सभापुर गांव क्षेत्रफल व रिश्ते में भी सबसे बड़ा गांव है। इसलिए यहीं सबसे ज्यादा सभा हुआ करती थी। पहले 24 गांवों की भी सभा एक साथ इसी गांव में होती थी, इसलिए गांव का नाम सभापुर हो गया। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि गांव में सभा कौर नाम की दादी थी सभापुर गांव उन्हीं के बच्चों ने बसाया है, इसलिए गांव का नाम उनके नाम पर पड़ गया। गांव में गुर्जर समाज के लोगों के साथ उनके पुरोहित पंडित भी हमेशा साथ रहे। अब गांव में ब्राह्राण, हरिजन, मुस्लिम व अन्य समाज के लोग भी आकर बस गए हैं।

आजादी की लड़ाई में योगदान

चौधरी भिखारी कहते हैं कि उनके बाबा यादराम और न्यादर ने आजादी की लड़ाई भी लड़ी थी। जब-जब महात्मा गांधी कोई आंदोलन छेड़ते थे तो वे दोनों अपने साथ गांव से टोली लेकर जाते थे और गांधी के साथ हर आंदोलन में शामिल होते थे। जब गांधी जी अनशन पर बैठते थे तो वह भी अपनी टोली लेकर अनशन पर बैठने जाते थे।

सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग

बाबा ज्ञान सिंह हवलदार कहते हैं कि उन्होंने 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ी थी। मैदान में कई दुश्मनों को मार गिराया था। आज भी उनके भीतर वही साहस है। इस गांव के लोग काफी पढे-लिखे हैं। 90 वर्षीय भरत सिंह प्रधान आज भी अंग्रेजी में लिख-पढ़ लेते हैं।

कई बार किया भयानक बाढ़ का सामना

गांव यमुना किनारे बसा था इसलिए यहां बहुत बाढ़ आती थी। बाढ़ आने पर ग्रामीण खजूरी पुश्ता रोड पर टैंट में रहते थे। तब गांव के लोग ही एकदूसरे का सहारा बनते थे। 1978 में गांव में सबसे भयानक बाढ़ आई थी। उस बाढ़ के पानी में गांव के 14 लोग डूबकर मर गए थे। उसी वर्ष यमुना नदी व उनके गांव के बीच बांध का निर्माण हुआ तब से अब तक गांव में कभी बाढ़ नहीं आई।

शिव मंदिर व भूमिया देवी में है आस्था

भयानक बाढ़ में भी सैंकड़ों वर्ष पुराने शिव मंदिर व भूमिया देवी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। ग्रामीणों की इनके प्रति आस्था और प्रगाढ़ हो गई। उनका मानना है कि भूमिया देवी की विशेष कृपा ही है कि ग्रामीणों को संकट आने के बाद भी गांव से दूर नहीं जाना पड़ा।

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