Delhi Congress: पटेल से नजदीकी, स्मृति सभा से दूरी, पार्टी से निलंबित; पर साथ दिखने की कोशिश
2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिणी दिल्ली सीट से कांग्रेस के पैराशूट उम्मीदवार बॉक्सर विजेंदर सिंह चुनाव हारने के बाद वापस बॉक्सिंग रिंग में उतर गए हैं। हालांकि पूछने पर उनका यही कहना होता है कि क्षेत्रवासियों या पार्टी को जब भी उनकी जरूरत होगी वह उपलब्ध हो जाएंगे।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। कांग्रेस के ‘संकटमोचक’ अहमद पटेल से नजदीकी तो दिल्ली के कई बड़े नेताओं की रही, लेकिन प्रदेश कार्यालय में उनकी स्मृति में रखी गई श्रद्धांजलि सभा में ज्यादातर बड़े नेता गायब रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और उदित राज जैसे नेताओं ने उपस्थिति दर्ज कराई जो अब हाशिए पर हैं। इसके विपरीत जिन नेताओं के इर्द गिर्द अब भी पार्टी की दिल्ली इकाई की राजनीति घूमती है, उनमें से कोई वहां नहीं पहुंचा, लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि उनके मन में पटेल के प्रति सम्मान नहीं था, असल में तो वे सभी इसीलिए नहीं पहुंच सके क्योंकि अनिल चौधरी के अध्यक्ष बनने के बाद से ही उन्होंने प्रदेश कार्यालय में पांव रखना बंद कर दिया है। उनका यह संकल्प पटेल की मौत से भी नहीं टूटा। आपसी मतभेद की यह दीवार अब कहीं निगम चुनाव में कांग्रेस को ही ‘अतीत’ न बना दे!
फेसबुक बना ‘रिंग’
2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिणी दिल्ली सीट से कांग्रेस के पैराशूट उम्मीदवार बॉक्सर विजेंदर सिंह चुनाव हारने के बाद वापस बॉक्सिंग रिंग में उतर गए हैं। हालांकि पूछने पर उनका यही कहना होता है कि क्षेत्रवासियों या पार्टी को जब भी उनकी जरूरत होगी, वह उपलब्ध हो जाएंगे। यह बात अलग है कि दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के पार्टी नेताओं का फोन ही वह अक्सर नहीं उठाते। अब उन्होंने फेसबुक को अपनी राजनीति का ‘रिंग’ बना लिया है। चाहे किसान आंदोलन हो या पूर्व में हाथरस वाला मामला रहा हो, वह अपनी पोस्ट के जरिये कांग्रेस की नीतियों को समर्थन देते नजर आते हैं। विचारणीय पहलू यह है कि पार्टी नेताओं की यह ऑनलाइन राजनीति और पैराशूट नेता ही पार्टी का जनाधार खत्म कर रहे हैं। न जनता से जुड़ाव है और न जमीन से। पार्टी के लिए जीरो से शुरुआत की स्थिति बन गई है, सो बात अलग।
बदले हालात में 'आका' तलाश रहे नेता
वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की मौत से कांग्रेस में एक शून्य सा उत्पन्न हो गया है। खलबली मची है, सो अलग। मौजूदा हालात में इसे शून्य को भरना तो मुश्किल हो ही रहा है, नेताओं के लिए नए आका की तलाश भी दुविधापूर्ण हो गई है। किसी को समझ नहीं आ रहा कि कांग्रेस की राजनीति का ऊंट अब किस करवट बैठेगा! अभी तो शीर्ष नेतृत्व के लिए ही पटेल का विकल्प खोजना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इतने गुण किसी एक नेता में नजर ही नहीं आ रहे, जितने अकेले पटेल में थे। आलम यह है कि जिनकी सियासत पटेल के सहारे चल रही थी, वे तो बेसहारा हो ही गए हैं। जो नेता पटेल तक पहुंच नहीं बना रहे थे, उन्हें भी समझ नहीं आ रहा कि अब किसके दर पर माथा टेकने जाएं। इस बीच सभी गुटों के नेता अपने अपने समीकरण साधने में जुटे हैं।
पार्टी से निलंबित लेकिन साथ दिखने की कोशिश
पूर्व सांसद महाबल मिश्र पिछले करीब 10 माह से कांग्रेस से निलंबित चल रहे हैं, लेकिन फिर भी उनकी कोशिश हमेशा पार्टी के साथ खड़े दिखने की बनी रहती है। मूल रूप से कांग्रेसी विचारधारा वाले मिश्र आज भी पार्टी से इतर कोई गतिविधि नहीं करते दिखते। सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की जमीन पर बसी झुग्गी बस्तियों को हटाने का आदेश दिया तो इन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख दिया। अनुरोध किया कि वैकल्पिक व्यवस्था के बगैर झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को नहीं उजाड़ा जाए। प्रधानमंत्री कार्यालय से यह पत्र दिल्ली के शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) को भेज दिया गया। अब डूसिब ने पूर्व सांसद को सूचित किया है कि विकल्प मिलने पर ही झुग्गी वासियों को कहीं शिफ्ट किया जाएगा। किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला तो मिश्र टीकरी बॉर्डर पर जा पहुंचे। यहां भी उन्होंने कांग्रेस के ही सुर में सुर मिलाया।
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