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    वीर बालिका जिंदा जल गईं, पर अंग्रेजों के सामने झुकी नहीं वीरांगना मैना कुमारी

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Sun, 09 Jan 2022 05:11 PM (IST)

    1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद बेटियों में नाना साहब की वर्षीय दत्तक बेटी कुमारी मैना की कहानी बहुत मार्मिक है। कानपुर में क्रांति का नेतृत्व नाना साहब कर रहे थे। एक दिन क्रांतिकारी उनके सामने कुछ गोरी स्त्रियों व बच्चों को पकड़कर लाए गए कि नाना उन्हें दंड दें।

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    नाना साहब की 14 वर्षीय दत्तक बेटी कुमारी मैना

    नई दिल्ली। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद बेटियों में नाना साहब की 14 वर्षीय दत्तक बेटी कुमारी मैना की कहानी बहुत मार्मिक है। कानपुर में क्रांति का नेतृत्व नाना साहब कर रहे थे। एक दिन क्रांतिकारी उनके सामने कुछ गोरी स्त्रियों व बच्चों को पकड़कर लाए गए कि नाना उन्हें दंड दें। पर एक सच्चा भारतीय होने के नाते नाना ने कहा, 'निहत्थे स्त्रियों-बच्चों को मारना कायरता ही नहीं,पाप भी है। इतिहास इसके लिए हमें क्षमा नहीं करेगा। नाना साहब ने उन स्त्रियों-बच्चों की जिम्मेदारी अपनी किशोरी बेटी मैना को सौंप दी और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का आदेश दिया।

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    नाना बिठूर चले गए और मैना शरणागतों को लेकर अंगरक्षक श्रीमाधव के साथ गंगातट पर पहुंचीं। वहां उन्हें खबर मिली कि नाना साहब के कानपुर छोड़ते ही अंग्रेज फौज ने कानपुर पर चढ़ाई कर दी है। उनके सैनिक महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यह सुनकर मैना का खून खौल उठा, उन्होंने अंग्रेज स्त्री-बच्चों की ओर जलती नजरों से देखा,पर तुरंत ही उन्हें पिता का आदेश याद आ गया।

    उन्होंने माधव से कहा,'इन लोगों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर हम शीघ्र ही लौटेंगे। फिर मैं अत्याचारी अंग्रेजों से गिन-गिनकर बदला लूंगी। पर अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अंग्रेजों की एक टुकड़ी वहां भी आ पहुंची। माधव मारा गया और मैना को पकड़ लिया गया। नाना की लड़की हैं मैना,यह जानते ही अंग्रेज सैनिकों ने अट्टहास किया। पर मैना तो पेशवा की बेटी थीं,उन्हें तरह-तरह के लालच दिए गए, धमकियां दीं कि वह अपने अन्य साथियों का पता बता दें,पर मैना चट्टान की तरह अडिग रहीं। उन्हें पेड़ से बांधकर भयंकर यातनाएं दी गईं।

    प्यास से उसका गला सूख गया, होठों पर पपडिय़ां जम गईं, पर उन्हें पानी की एक बूंद तक नहीं दी गई।फिर अंग्रेज सैनिकों ने पेड़ के चारों ओर लकडिय़ां चुनकर चिता बना दी। उनसे कहा- अब भी समय है, बता दो, नहीं तो जिंदा भून देंगे। उत्तर में मैना ने अंग्रेजों के मुंह पर थूक दिया। चिता में आग लगा दी गई। मैना न चीखीं, न चिल्लाईं। उन्होंने कसकर होंठ भींच लिए। अधजली हालत में उनसे फिर पूछा गया,लेकिन मैना हारने-झुकने के बजाय विद्रूपता से हंस पड़ीं कि जो करना हो,कर लो,मैं कुछ नहीं बताऊंगी। उन्हें जलता देखकर शरणागत स्त्रियों,बच्चों की आंखों में भी आंसू आ गए,लेकिन अपने ही लोगों से वे अपनी संरक्षिका की जान न बचा सके। भारत को अपनी इस बलिदानी बेटी पर सदैव गर्व रहेगा।

    (प्रभात प्रकाशन की पुस्तक 'क्रांतिकारी किशोर' से साभार संपादित अंश)