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    Burari Death Case: एक साल बाद भी 11 मौतों को अनसुलझा रहस्य ही मानते हैं कुछ लोग

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Mon, 01 Jul 2019 09:25 AM (IST)

    कई लोगों के लिए पुलिस की इस थ्योरी पर सहज विश्वास कर पाना मुश्किल हो रहा है कि परिवार के 10 लोगों ने ललित के कहने पर सामूहिक आत्महत्या कर ली और 11वां ...और पढ़ें

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    Burari Death Case: एक साल बाद भी 11 मौतों को अनसुलझा रहस्य ही मानते हैं कुछ लोग

    नई दिल्ली [संजय सलिल]। After one Year of Burari suicide case: बाहरी दिल्ली के बुराड़ी इलाके के संत नगर में भाटिया परिवार के 11 सदस्यों की मौत की घटना में भले ही दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की क्राइम ब्रांच तंत्र मंत्र व मोक्ष प्राप्ति के चक्कर में सामूहिक खुदकशी मानकर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच चुकी हो, लेकिन इस घटना का रहस्य अब भी लोगों के बीच बरकरार है। कई लोगों के लिए पुलिस की इस थ्योरी पर सहज विश्वास कर पाना मुश्किल हो रहा है कि परिवार के 10 लोगों ने ललित के कहने पर सामूहिक आत्महत्या कर ली और 11वां शख्स वह खुद था। ऐसे में इन मौतों का रहस्य उनके जेहन में एक साल बाद भी कौंध रहा है।

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    ठीक एक साल पूर्व आज के ही दिन एक जुलाई की सुबह को याद कर अब भी इलाके के लोग सिहर उठते हैं। संत नगर की गली नंबर दो में रहने वाले भाटिया परिवार के पड़ोसियों के आंखों के आगे एक ही कमरे में फंदे से झुलती एक साथ 10 लाशें व दूसरे कमरे में गले में लगे फंदे के बीच फर्श पर मृत पड़ी बुजुर्ग नारायणी देवी का वह मंजर जब जीवंत हो उठता है तो पड़ोसियों की बेचैनी बढ़ जाती है। पड़ोसी एक साल से अपने स्मृति पटल से घटना से जुड़ी हर बुरी याद को मिटाने की कोशिश कर हैं, लेकिन ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।

    अफवाहों के बीच हर अप्रिय घटनाओं पर छाप छोड़ रही है यह घटना

    दुनिया भर में बुराड़ी कांड के नाम से चर्चित हुई इस घटना को लेकर हवा में अब भी उड़ रही अफवाहों के बीच जब भी संतनगर की किसी भी गली में किसी की असमय मौत या अन्य कोई अप्रिय घटना घटित होती है तो यह घटना उन घटनाओं पर अपनी छाप जरूर छोड़ दे रही है। घटना के तीन माह तक संतनगर गली-2 में लोगों की आवाजाही पूरी तरह से बंद रही थी। गली में रहने वाले लोगों से लेकर आसपास की गलियों के लोगों ने भी अपना रास्ता तक बदल लिया था, लेकिन एक साल बाद अब गली-2 में अावाजाही सामान्य हो चुकी है।

    सबकुछ सामान्य है यहां पर...

    आवाजाही के बीच यहां सबकुछ सामान्य दिख रहा है, लेकिन आसपास के लोग आज भी अंदर से हिले हुए नजर आते हैं। यही कारण है कि भाटिया/चुडावत परिवार के सामने रह रहे परिवार ने बाहर निकलने के लिए अब मेन रोड की ओर खुलने वाले घर के दूसरे गेट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। उन्होंने दूसरी मंजिल पर बनी बालकनी में दीवारें खड़ी कर दी हैं, ताकि इस परिवार का मकान व छत उन्हें दिखाई नहीं दे।

    पड़ोसी वीरेंद्र त्यागी बताते हैं- 'घटना के करीब तीन माह बाद ललित के बड़े भाई दिनेश व उनकी बहन सुजाता मकान में आकर चार पांच दिनों के लिए रुके थे और पूजा हवन आदि भी कराया था। इसके कुछ माह के बाद एक महिला ने भूतल स्थित उस किराने की दुकान को किराये पर लिया था, जिसे नारायणी देवी के बेटे भुवनेश चलाते थे, लेकिन वह महिला भी हफ्ते भर से ज्यादा यहां पर नहीं टिक सकी। फिलहाल मकान में बढ़ई का काम करने वाले पप्पू व उनका भाई रह रहे हैं, लेकिन इधर दोनों भाई भी नजर नहीं आ रहे हैं। दोनों भाई ललित की प्लाइवुड की दुकान में पहले काम किया करते थे। ऐसे में परिवार से काफी नजदीकी रहे हैं। वीरेंद्र की मानें तो आज भी 11 मौतों को लेकर तरह-तरह की अफवाहें सुनने को मिलती हैं।

    11 पाइपाें को अब भी देखने आते हैं लोग

    मकान की दीवार में लगाए गए 11 पाइपाें का रहस्य भी ललित की मौत के बाद दफन हो गया, लेकिन लोग अब भी उन पाइपों को देखने के लिए आते हैं। यह अलग बात है कि अब उन्हें पाइपें दिखाई तो नहीं देतीं, लेकिन उनके अवशेष जरूर नजर आ जाते हैं। दरअसल, उन दीवारों की छेदों में लगी उन पाइपाें को हटा दिया गया है। इनमें नीचे के छह पाइपों के छेद को बंद कर दिया गया, जबकि ऊपर के पांच छेद अब भी खुले हुए हैं। घटना के समय मकान का नये सिरे से निर्माण कार्य कराया जा रहा था। ऐसे में पहली मंजिल के एक हिस्से में अधूरे पड़े कार्य आज भी तस के तस पड़े हैं। पहली मंजिल की बालकनी में ईंटें, खिड़की के पल्ला आदि वैसे ही पड़े हैं, जैसे घटना के समय थे। पड़ोसियों की मानें तो ललित के भाई दिनेश ने अब तक मकान को बेचने का इरादा नहीं जताया है। वह तीन-चार दिनों में राजस्थान से यहां आने वाले भी हैं। हो सकता है कि वह दोबारा भूतल पर किराने व प्लाइवुड की दुकान को शुरू करें। पड़ोसी नंदलाल ने बताया कि वह चाहते हैं कि मकान में दिनेश के परिवार के लोग आकर रहे। इससे लोगों के मन में जो भ्रम है, वह दूर होगा।

    एक जुलाई 2018 की वह खौफनाक सुबह

    एक जुलाई, 2018 की सुबह करीब 5:30 बजे भुवनेश के किराने की बंद दुकान के आगे दूध के पैकेट से भरे क्रेट को वाहन चालक रख चला जाता है। आम तौर पर यह दुकान सुबह 5 बजे खुल जाया करती थीं। ऐसे में बंद दुकान को देखकर वाहन चालक को भी अटपटा लगता है। वह करीब 6:30 बजे जब वापस दूध के पैसे लेने के लिए दुकान पर आता है, तो दुकान बंद ही मिलती है। ऐसे में वह क्रेट लेकर चला जाता है। इस बीच 7 बज चुके होते हैं, लेकिन जब दुकान नहीं खुलती है, तो पड़ोसी गुरचरन सिंह अपने एक पड़ोसी कुलदीप के साथ भुवनेश को आवाज लगाते हुए पहली मंजिल तक पहुंच जाते हैं। दोनों को दरवाजा खुला मिलता है। ऐसे में दरवाजे को हल्का धक्का देकर अंदर कमरे के अंदर दाखिल होते ही उनके पैरों तलों की जमीन खिसक जाती है। एक कमरे में नारायणी देवी की बेटी प्रतिभा, बेटे भुवनेश व ललित, दोनों भाइयों की पत्नी सविता व टीना, उनके बच्चे मीनू, निधि, धुव्र, शिवम व प्रतिभा की बेटी प्रियंका कुल 10 लोग फंदे से झुल रहे होते हैं, उनकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है, तो दूसरे कमरे में परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य नारायणी देवी फर्श पर पड़ी मिलती हैं। इसके बाद मामले की जानकारी पुलिस को दी जाती है और कुछ ही घंटों में संत नगर की गली नंबर दो में लोगों का हुजूम जमा हो जाता है।

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