दिल्ली के सात और देशभर में 50 एलएसडी मरीजों का रुका इलाज, ये है मुख्य वजह
दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी) के तहत मरीजों को इलाज मिलना मुश्किल हो रहा है। प्रति मरीज 50 लाख रुपये तक की सीमा के कारण कई मरीजों का इलाज बीच में ही रुक गया है। एम्स दिल्ली में सात मरीजों का इलाज रुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 500 से अधिक मरीजों में से 300 को इलाज नहीं मिल रहा है।

मुहम्मद रईस, नई दिल्ली। वर्ष 2021 में नेशनल पॉलिसी फॉर रेयर डिजीज (एनपीआरडी) बनाकर सरकार ने इलाज की व्यवस्था दी। उत्कृष्टता केंद्रों को फंड भी दिए। लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) जैसी दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे मरीजों का इलाज अब बीच में रुक रहा है।
प्रति मरीज स्वीकृत निधि की 50 लाख रुपये तक की सीमा के चलते अब तक 50 मरीज उपचार के लाभ से बाहर हो चुके हैं। एम्स दिल्ली में ऐसे मरीजों का आंकड़ा सात है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 500 से ज्यादा मरीजों में से 300 से अधिक को इलाज ही नहीं मिल रहा है।
उन्हें इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं अब तक 50 मरीजों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 20 केवल बीते एक साल में हुई हैं। दिल्ली के एम्स में पांच और मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में एक मौत दर्ज है।
दरअसल, एलएसडी यानी लाइसोसोमल स्टोरेज डिसआर्डर एक प्रकार का आनुवंशिक विकार है। यह शरीर की कोशिकाओं में कुछ लिपिड (वसा) या कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) को तोड़ने वाले विशिष्ट एंजाइमों की कमी के कारण होते हैं। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण, एंजाइम प्रतिस्थापन चिकित्सा (ईआरटी) और सब्सट्रेट रिडक्शन थेरेपी (एसआरटी) उपलब्ध उपचार विकल्प हैं।
इलाज जटिल होने के चलते न केवल यह महंगा है, बल्कि इसमें कई वर्ष का समय भी लग सकता है। आर्गनाइजेशन फार रेयर डिजीज आफ इंडिया की ओर से जारी मई 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2024-25 के बीच एनपीआरडी-2021 के तहत 205 करोड़ रुपये से अधिक की राशि 12 प्रमुख अस्पतालों को दी गई।
सबसे ज्यादा फंड 53 करोड़ रुपये एम्स दिल्ली स्थित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई), 20 करोड़ रुपये एसजीपीजीआइ लखनऊ, 23 करोड़ रुपये केईएम मुंबई को दिए गए।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने एनपीआरडी 2021 के जरिए एक अहम कदम तो उठाया, लेकिन फंड जारी करने में विलंब, प्रति मरीज स्वीकृत निधि की 50 लाख तक की सीमा और निगरानी के कड़े नियम न होने के चलते सैकड़ों मरीजों की जान खतरे में है।
एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी बाधित होने के नुकसान
तीन महीने में लक्षण वापस आने लगते हैं और पहले मिले फायदे खत्म हो जाते हैं।
छह महीने में शरीर और दिमाग पर गंभीर असर दिखने लगता है, और अंगों को स्थायी नुकसान होने लगता है।
एक साल बाद ये नुकसान अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी और जानलेवा हो सकते हैं।
राज्यसभा में भी उठा मुद्दा
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने 29 जुलाई को राज्यसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से चार बिंदुओं पर जवाब मांगा। उन्होंने पूछा वर्ष 2022 से 2025 के बीच 205 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित होने के बावजूद एलएसडी से पीड़ित 20 प्रतिशत से भी कम पात्र मरीजों को ही क्यों उपचार मिल पा रहा है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री प्रतापराव जाधव ने इसे राज्य सरकारों का विषय बताया। एनपीआरडी-2021 के साथ ही उत्कृष्टता केंद्रों का आंतरिक लेखापरीक्षा और सीएजी लेखापरीक्षा प्रणाली के माध्यम से नियमित आडिट कराने की भी जानकारी दी।
सीओई -मरीजों का रुका इलाज
- एम्स दिल्ली- 07
- सीएचजी आइजीएच बेंग्लुरू- 24
- आइपीजीएमईआर एसएसकेएम कोलकाता- 10
- आइसीएच एग्मोर- 06
- एसजीपीजीआइ लखनऊ- 02
- एम्स जोधपुर- 01
- (स्त्रोत-स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय)
सीओई दर्ज मौतें
- एम्स नई दिल्ली- 05
- एमएएमसी नई दिल्ली- 01
- केईएम मुंबई- 08
- एसजीपीजीआइ लखनऊ- 10
- पीजीआइएमईआर चंडीगढ़- 02
- आइपीजीएमईआर एसएसकेएम कोलकाता- 02
- सीडीएफडी निजाम इंस्टीट्यूट हैदराबाद- 10
- सीएचजी आइजीएच बेंग्लुरू- 07
- आइसीएच एग्मोर- 01
- एम्स जोधपुर- 04
(स्त्रोत-स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय)
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