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    Ram Setu: करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम सेतु पर क्या होना चाहिए अध्ययन? पढ़ें- एक्सपर्ट व्यू

    By V K ShuklaEdited By: JP Yadav
    Updated: Fri, 28 Oct 2022 09:41 AM (IST)

    Ram Setu कभी भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले इस पुल को लेकर भारत और श्रीलंका दोनों ओर के लोगों के लिए यह आस्था का केंद्र है। कहा जा रहा है कि अध्ययन एएसआइ के अलावा जलीय पुरातत्व पर काम करने वाले संस्थान या कोई विश्वविद्यालय भी कर सकता है।

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    पुरातत्वविद मानते हैं कि राम सेतु पर अध्ययन किया जाना चाहिए। फोटो प्रतीकात्मक

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। अभिनेता अक्षय कुमार की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'राम सेतु' के रिलीज होने के बाद आस्था के प्रतीक एतिहासिक राम सेतु पर अध्ययन किए जाने की भी मांग उठ गई है। देश के वरिष्ठ पुरातत्वविद इसके समर्थन में हैं कि राम सेतु पर अध्ययन किया जाना चाहिए।

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    श्रीलंका और भारत के लोगों के लिए आस्था का केंद्र

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इस पर अभी काम नहीं किया है। पुरातत्वविदों की मानें तो एएसआइ इस पर काम करे या अन्य कोई विश्वविद्यालय इस परियोजना को ले, इस पर काम होना जरूरी है। फिल्म राम सेतु के रिलीज हाेने से एतिहासिक व धार्मिक आस्था का प्रतीक भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया राम सेतु चर्चा में है। 

    कुछ साल पहले हुई थी योजना तैयार

    राम सेतु पर किए गए पुरातत्वविद डा आलोक त्रिपाठी के शोध में यह बात साफ हो रही है श्रीलंका में हजाराें साल पहले वहां के सिक्कों पर राम सेतु के चित्र हैं। ऐसे में इस विषय पर काम करने की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।2016 में असम के सिलचर स्थित असम विश्वविद्यालय के संग्रहालय विज्ञान केंद्र ने पहली बार राम सेतु की पुरातात्विक महत्व और प्राचीनता को स्थापित करने के लिए एक योजना तैयार की थी।

    आइसीएचआर भी हुआ परियोजना पर सहमत

    इसके तहत राम सेतु की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए क्षेत्र में पुरातात्विक अवशेषों की व्यवस्थित खोज की जानी थी। परियोजना को उसकी नियमित योजना के तहत वित्तीय सहायता के लिए भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आइसीएचआर) को प्रस्तुत किया गया था। आइसीएचआर पानी के भीतर राम सेतु की पुरातात्विक जांच करने के लिए परियोजना का समर्थन पर सहमत हो गया था।

    सिक्कों से मिलती है सेतु के बनावट

    प्रस्ताव को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन वित्तीय सहायता और अन्य आवश्यक अनुमोदन के अभाव में उत्खनन नहीं किया जा सका था। डा. आलोक त्रिपाठी के शोध के अनुसार श्रीलंका के जाफना क्षेत्र के राजा आर्य चक्रवर्ती के समय चलन में रहे सिक्कों पर सेतु की बनावट मिलती है।

    सेतु का आधा हिस्सा ही भारत के पास

    दरअसल, राम सेतु का आधा हिस्सा ही भारत के पास है। चूंकि भारत से हिस्से से समुद्र में राम सेतु शुरू होकर श्रीलंका के क्षेत्र में पूरा हाेता है। ऐसे में ऐसा माना जा रहा है कि सिक्काें पर जो चिक्र है वह राम सेतु के हैं। कहा जा रहा है कि उस इलाके में किसी अन्य सेतु के होने के प्रमाण नहीं मिलते हैं।

    हजारों साल से स्थापित हैं राम सेतु से जुड़ी आस्था

    शोध के अनुसार राम-सेतु से जुड़ी लोकप्रिय मान्यताएं और परंपराएं कम से कम 2,000 वर्षों में अच्छी तरह से स्थापित हैं। यह व्यापक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक संदर्भ में संरचना की जांच के लिए एक मजबूत आधार बनाती हैं। पुरातात्विक अवशेषों, प्राचीन अभिलेखों, सिक्कों, मूर्तियों और चित्रों, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष ग्रंथों में इसके प्रमाण मिलते हैं।

    शोध के अनुसार पुराने मानचित्रों, रिपोर्टों आदि के रूप में उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों की ऐतिहासिक जानकारी निकालने के लिए पेशेवर रूप से जांच करने की आवश्यकता है। चूंकि सेतु के अधिकांश हिस्से अब जलमग्न हो गए हैं, इसलिए पानी के भीतर पुरातात्विक जांच आवश्यक है।

    यह पता लगाना दिलचस्प होगा कि प्राचीन काल में शोल और आइलेट्स के बीच की खाई को जोड़ने में किस हद तक कोई मानवीय हस्तक्षेप था जैसा कि रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। पानी के भीतर विस्तृत योजनाबद्ध दृष्टिकोण क्षेत्र में संरचना और पुरातात्विक अवशेषों की पुरातनता के बारे में अंतिम निष्कर्ष निकालने के लिए भौतिक साक्ष्य का पता लगाने का एकमात्र विकल्प है।

    रामसेतु का इतिहास

    रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास मन्नार द्वीप के बीच 48 किलोमीटर की लंबाई में है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण से युद्ध करने के लिए भगवान राम और उनकी सेना द्वारा लंका पहुंचने के लिए समुद्र पर इसे बनाया गया था। सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के चलते इस सेतु के कुछ हिस्से को तोड़े जाने की भी योजना थी।

    क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना

    सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना का उद्देश्य 83 किलोमीटर लंबे गहरे पानी के चैनल का निर्माण करके भारत और श्रीलंका के बीच एक शिपिंग मार्ग बनाना है, जिससे भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच यात्रा का समय भी कम हो जाएगा।इस परियोजना को 1860 के दशक से ही प्रस्तावित किया गया था। इस परियोजना का उद्घाटन 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किया गया था।

    राज्यसभा के पूर्व सदस्य भी दायर कर चुके हैं याचिका

    इस परियोजना को अदालत में चुनौती दी गई, इस समय मामला सुप्रीम कोर्ट में है। मार्च 2018 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के निष्पादन में राम सेतु प्रभावित नहीं होगा। फिलहाल रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में है।

    कांग्रेस के समय केंद्र ने नकार दिया था राम सेतु का अस्तित्व

    कांग्रेस की सत्ता के समय केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में रामसेतु के अस्तित्व को खारिज कर दिया था।यह हलफनामा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उस समय के निदेशक (कार्मिक) की राय के आधार पर दिया गया था।इससे इतना हंगामा हुआ कि न केवल हलफनामा वापस ले लिया गया, बल्कि एएसआइ के निदेशक (कार्मिक) सहित एक अन्य अधिकारी को निलंबित कर दिया गया था।

    कार्बन डेटिंग भी कराने का विकल्प

    डा बीआर मणि पूर्व संयुक्त महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक, यह बात सही है कि राम सेतु पर कभी काम नहीं हुआ है। अब अगर इस बारे में चर्चा हो रही है तो इस पर पुरातात्विक अध्ययन होना चाहिए।इसकी कार्बन डेटिंग की भी कराई जा सकती है जिससे इसके अस्तित्व में रहने का सही समय पता चल सकेगा।राम सेतु हम सब की आस्था का प्रतीक है, इस पर काम होना चाहिए। 

    स्मारकों की सूची में कभी नहीं रहा राम सेतु

    पद्मश्री डा के के मोहम्मद पूर्व निदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कहना है कि राम सेतु कभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्मारकों की सूची में नहीं रहा है। शायद एएसआइ ने कभी इस पर अध्ययन करने के बारे में विचार नहीं किया है। इस पर आवश्यक रूप से अध्ययन किया जाना चाहिए।

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