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    Cloud Seeding: बादल से बादल की ओर शिफ्ट होने की तैयारी, अब इस तरह होगी बारिश की कमी पूरी

    By sanjeev Gupta Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Tue, 11 Mar 2025 11:32 PM (IST)

    बदलते मौसम चक्र और बारिश के असमान वितरण को देखते हुए मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम कर रहा है। इस तकनीक से बादलों का घनत्व कम करके कम बारिश वाले इलाकों में अधिक बारिश वाले बादलों को भेजने की कोशिश की जाएगी। साथ ही बिजली गिरने और कोहरे की समस्या से भी निपटा जाएगा। मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम करने की तैयारी कर रहा है।

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    क्लाउड सीडिंग से वर्षा के पैटर्न को संतुलित करने के लिए बादलों को स्थानांतरित किया जाता है। सांकेतिक तस्वीर

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव मौसम चक्र को प्रभावित करने के साथ ही बारिश के पैटर्न को भी बदल रहे हैं। मात्रा के लिहाज से भले ही अभी भी पूरे साल और मानसून के दौरान सामान्य बारिश हो रही हो, लेकिन इसका वितरण असमान हो गया है।

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    क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम करने की तैयारी

    कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं बहुत कम बारिश हो रही है। कहीं भूजल स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा है तो कहीं यह पानी व्यर्थ बह जाता है। कृषि क्षेत्र के लिए भी समस्या खड़ी हो गई है। भविष्य में इस समस्या के गंभीर होने की आशंका को देखते हुए मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम करने की तैयारी कर रहा है।

    मौसम विभाग का उद्देश्य अत्याधुनिक निगरानी तकनीक और सिस्टम विकसित करना और उच्च क्षमता वाले कंप्यूटरों के साथ-साथ हाई-रिजोल्यूशन वायुमंडलीय निगरानी, ​​रडार और उपग्रहों के माध्यम से उच्च स्तरीय क्षमताएं हासिल करना है।

    इसके माध्यम से मौसम की घटनाओं को प्रबंधित करने का भी प्रयास किया जाएगा। जैसे मांग के अनुसार वर्षा, ओलावृष्टि, कोहरा बढ़ाना या बिजली गिरने और घटना को नियंत्रित करना। इसके लिए क्लाउड फिजिक्स में शोध को मजबूत करना सबसे जरूरी है। इसके लिए मौसम विभाग की शोध शाखा आईआईआईटी, पुणे में क्लाउड चैंबर स्थापित किया जा रहा है।

    इस चैंबर में बादलों पर शोध होगा

    मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बादलों का आधार आमतौर पर धरती की सतह से एक से डेढ़ किलोमीटर दूर होता है, लेकिन उनकी ऊंचाई 12 से 13 किलोमीटर तक हो सकती है। अब देश को ऊंचाई में होने वाले बदलावों के लिए तैयार किया जाएगा।

    इसमें नमी, हवा की गति और तापमान का आकलन शामिल होगा। बादलों का घनत्व कम करने के लिए उन इलाकों की ओर अधिक बारिश वाले बादलों को भेजने की कोशिश की जाएगी, जहां बारिश कम होती है।

    बादल से बादल की तरफ शिफ्ट करने पर शोध

    मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि साल दर साल बारिश का पैटर्न बदल रहा है। इस पैटर्न को समझने और इस बदलते पैटर्न से निपटने की तैयारी है। दूसरे चरण में बिजली गिरने की समस्या से निपटने पर काम होगा। इसमें बादलों से जमीन पर गिरने वाली बिजली को बादल से बादल की तरफ शिफ्ट करने पर शोध किया जाएगा।

    इस समय देश में बिजली गिरने से काफी नुकसान हो रहा है। दूसरे चरण में कोहरे की समस्या से निपटने पर भी शोध किया जाएगा। इससे कोहरे को कम करने की तैयारी होगी। बारिश का बदलता पैटर्न उनके पूर्वानुमान में चुनौतियां खड़ी कर रहा है।

    कई बार ऐसा होता है कि बादल ऊंचाई पर बनते हैं और बारिश करा देते हैं, लेकिन जमीन की सतह तक पहुंचते-पहुंचते भाप बन जाते हैं और जमीन पर बारिश नहीं हो पाती।

    आईआईआईटी पुणे क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम कर रहा है। फिलहाल उपकरण खरीदने की प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही योजना के विभिन्न पहलुओं पर काम शुरू हो जाएगा।

    -डॉ. मृत्युंजय महापात्रा, महानिदेशक, भारतीय मौसम विभाग

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