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    बड़ा सवाल, आखिर कौन बचा रहा केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र को

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Fri, 23 Jun 2017 10:28 PM (IST)

    सीबीआइ ने पिछले साल दिसंबर में राजेंद्र कुमार के खिलाफ चार्जशीट पर अदालती कार्रवाई के लिए केंद्र से अनुमति मांगी थी।

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    बड़ा सवाल, आखिर कौन बचा रहा केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र को

    नई दिल्ली (जेएनएन)। आखिर अरविंद केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार को बचाने की कोशिश कौन कर रहा है? नॉर्थ ब्लॉक के गलियारे में इस सवाल का जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं है। सीबीआइ ने पिछले साल दिसंबर में राजेंद्र कुमार के खिलाफ चार्जशीट पर अदालती कार्रवाई के लिए केंद्र से अनुमति मांगी थी।

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    फरवरी में गृह मंत्रालय ने मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन पांच महीने बाद भी सीबीआइ के पास मंजूरी नहीं पहुंची है। गृह मंत्रालय ने पांच महीने पहले ही बयान जारी कहा था कि राजेंद्र कुमार के खिलाफ सीबीआइ की चार्जशीट को हरी झंडी दे गई है।

    सीबीआइ के कामकाज को नियमित करने वाले कानूनी प्रावधान के तहत किसी भी नौकरशाह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी है।

    इस कानूनी प्रावधान का फायदा उठाकर वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ चार्जशीट को सालों-साल तक लंबित रखा जाता था। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित मंत्रालय को तीन महीने के भीतर चार्जशीट पर फैसला लेने का निर्देश दिया था, लेकिन सात महीने बीत जाने के बाद भी सीबीआइ को मंजूरी नहीं मिली है।

    गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आशंका जताई कि मंजूरी की फाइल कार्मिक मंत्रालय में कहीं अटकी हो सकती है। सीबीआइ कार्मिक मंत्रालय के अधीन ही काम करती है, लेकिन कार्मिक मंत्रालय में कोई भी अधिकारी इस पर बोलने के लिए तैयार नहीं है।

    गौरतलब है कि गृह मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय के दफ्तर नॉर्थ ब्लॉक में सटे हुए हैं। सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार के खिलाफ दिसंबर 2015 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत केस दर्ज किया था। जुलाई 2016 में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।

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    पिछले साल दिसंबर में दाखिल चार्जशीट में सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार पर 2007 से 2015 के बीच दिल्ली सरकार से जुड़े विभिन्न ठेकों के आवंटन में धांधली का आरोप लगाया था।

    सीबीआइ का कहना है कि इससे सरकार को 12 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, लेकिन सीबीआइ की कार्रवाई को दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई बताकर विरोध करती रही है।