Humayun Tomb: प्रोफेसर फरहत नसरीन ने भी लगाई दारा शिकोह की कब्र पर मुहर, केंद्र ने बनाई थी समिति
दारा शिकोह ने संस्कृत सीखने और प्राचीन भारतीय दार्शनिक विचारों का फारसी में अनुवाद करने की कोशिश की थी। उन्होंने अपना जीवन प्राचीन ईरानी हिंदू धर्म यहूदी धर्म ईसाई धर्म से लेकर इस्लाम की विभिन्न प्रवृत्तियों तक के धर्म के तुलनात्मक अध्ययन के लिए समर्पित किया था।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाताl नई दिल्ली देश के चार बड़े पुरातत्वविदों के बाद राष्ट्रीय स्तर के दो इतिहासकारों ने भी दारा शिकोह की कब्र पहचाने जाने पर मुहर लगाई है।
पद्मभूषण इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया की इतिहास व संस्कृति विभाग की प्रमुख प्रोफेसर फरहत नसरीन ने भी कब्र पहचाने जाने को अपनी स्वीकृति दी है।
पुरातत्वविद केएन दीक्षित, डॉ. बी आर मणि, पद्मश्री डॉ. के के मुहम्मद, बीएम पांडेय और डॉ जीएस ख्वाजा पहले ही पहचानी गई कब्र को लेकर अपना समर्थन दे चुके हैं। फिर भी कब्र पहचाने जाने पर आधिकारिक मुहर नहीं लग सकी है।
देश के बड़े पुरातत्वविदों की मानें तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के साथ दिल्ली के लिए यह लाभ की बात है कि मीनाक्षी लेखी केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री हैं और अपने विभागों से लेकर अपनी संस्कृति को लेकर जागरूक और सक्रिय हैं।
मगर इस मुद्दे पर अभी तक उनका ध्यान नहीं गया है, जबकि उन्हीं के मंत्रालय ने 2020 में इस कब्र को खोजने के लिए प्रयास शुरू किए थे। उनके अनुसार यह कार्य आसान नहीं है।
दारा शिकोह की कब्र को पहचानने के लिए जो तरीका अपनाया गया है, इससे बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता है। देश के बड़े इतिहासकार पद्मभूषण इरफान हबीब ने इस कार्य की सराहना की है। उन्होंने हुमायूं के मकबरे में दाराशिकोह की कब्र ढूंढ लेने के दावे को सही माना है।
उन्होंने एक वीडियो क्लिप में कहा है कि मैं कोई पुरातत्वविद् नहीं हूं और ना ही वास्तुकार हूं, लेकिन जहां तक मैं समझ सका हूं, हुमायूं के मकबरे में दारा शिकोह की कब्र की निगम अभियंता संजीव कुमार सिंह की पहचान मुझे कुल मिलाकर निश्चित लगती है और इसे सामान्य स्वीकृति मिलनी चाहिए।
इनके बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया की इतिहास व संस्कृति विभाग की प्रमुख प्रोफेसर फरहत नसरीन ने भी कब्र पहचाने जाने को अपनी स्वीकृति दी है। उन्होंने भी इस कार्य की सराहना की है।
दारा शिकोह का योगदान
दारा शिकोह ने संस्कृत सीखने और प्राचीन भारतीय दार्शनिक विचारों का फारसी में अनुवाद करने की कोशिश की थी। उन्होंने अपना जीवन प्राचीन ईरानी, हिंदू धर्म, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म से लेकर इस्लाम की विभिन्न प्रवृत्तियों तक के धर्म के तुलनात्मक अध्ययन के लिए समर्पित किया था।
उन्होंने ऐसी पुस्तकों को लिखा था, जिसकी उस युग की दुनिया में कोई तुलना नहीं है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा गठित समिति ने दाराशिकोह की कब्र पर 11 जनवरी 2021 को मुहर लगा दी थी। कब्र का निरीक्षण करने पहुंची समिति के अधिकतर सदस्यों ने उसी कब्र को दारा की कब्र माना था, जिसे निगम अभियंता संजीव कुमार सिंह दारा की कब्र होने का दावा कर रहे हैं।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने जनवरी 2020 में हुमायूं के मकबरे में दफन दारा शिकोह की कब्र ढूंढने के लिए समिति बनाई थी। इस समिति में एएसआई से संबंधित पूर्व अधिकारी व देश के बड़े पुरातत्वविद् शामिल थे।
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