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    गेम चेंजर साबित होगा वक्फ संशोधन बिल, इसमें महिलाओं और जरूरतमंदों के हक का प्रावधान: प्रो. अख्तर

    Updated: Sat, 30 Nov 2024 08:37 PM (IST)

    वक्फ संशोधन बिल एक गेम चेंजर साबित होगा। इसमें मुस्लिम महिलाओं और जरूरतमंदों के हक का प्रावधान है। सरकार ने संशोधन विधेयक को वक्फ संपत्तियों के रखरखाव में लापरवाही जवाबदेही का अभाव भ्रष्टाचार के साथ ही संपत्तियों को लेकर विभिन्न राज्यों में चल रहे आतंरिक विवादों को दूर करने की कवायद बताया है। जानिए प्रो. अख्तर से इस बिल के बारे में विस्तार से।

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    राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) शाहिद अख्तर।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वक्फ संशोधन बिल को लेकर देश की राजनीति में घमसान मचा हुआ है। साथ ही कुछ मुस्लिम नेता और धार्मिक संगठन भी इस सुधार को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं और प्रस्तावित बदलाव के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन छेड़ रखा है। वहीं सरकार ने संशोधन विधेयक को वक्फ संपत्तियों के रखरखाव में लापरवाही, जवाबदेही का अभाव, भ्रष्टाचार के साथ ही संपत्तियों को लेकर विभिन्न राज्यों में चल रहे आतंरिक विवादों को दूर करने की कवायद बताया है। 

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    सरकार ने विधेयक को लेकर किसी विवाद से बचने तथा सामंजस्य स्थापित करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया और उसकी रिपोर्ट भी संसद के अगले सत्र में आने की उम्मीद है। मुस्लिम समाज की चिंताएं और आशंकाएं कितनी सही हैं और वक्फ कानून में सुधार की कितनी आवश्यकता है, इसे लेकर दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता नेमिष हेमंत ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष  प्रो. (डॉ.) शाहिद अख्तर से विस्तृत बातचीत की। 

    राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (एनसीपीयूएल) के उपाध्यक्ष और झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का दायित्व निभा चुके डॉ. अख्तर जामिया मिलिया इस्लामिया में मैनेजमेंट के प्रोफेसर हैं। अल्पसंख्यक मामलों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान है। हाल ही में प्रकाशित 'वक्फ बिल 2024: रिस्पेक्ट फॉर इस्लाम एंड गिफ्ट फार मुस्लिम' पुस्तक के सह लेखक भी हैं। उनका मानना है कि यदि वक्फ संशोधन बिल लागू हुआ तो यह गेम चेंजर साबित होगा। इसमें मुस्लिम महिलाओं और जरूरतमंदों के हक का प्रावधान है। विवादित मामले सुलझाने में भी मदद मिलेगी। 

    प्रश्न: वक्फ क्या है और मुस्लिमों के लिए इसका क्या महत्व है? वक्फ की शुरुआत कैसे हुई थी?

    प्रो. अख्तर: अल्लाह के लिए कोई संपत्ति दान करने को वक्फ कहते हैं। वक्फ की शुरुआत ऐसे हुई कि हमारे पैगंबर हजरत उमर के पास एक संपत्ति आई थी और उन्होंने पैगंबर मोहम्मद से पूछा कि वह इसका बेहतरीन इस्तेमाल कैसे करें? तब पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा था कि वक्फ कर दो जिसका फायदा जरूरतमंदों को हो। तब से वक्फ आरंभ है। वक्फ का मतलब, इस्लाम को मानने वाले की किसी व्यक्ति द्वारा मुस्लिम कानून के अनुसार धर्मार्थ के रूप में मान्य किसी उद्देश्य के लिए अपनी चल-अचल संपत्ति को स्थायी रूप से समर्पित करना होता है। वक्फ संपत्ति के मालिक अल्लाह होते हैं। जिसे न फिर रद किया जा सकता, न स्थानांतरित और न बेचा जा सकता है। 

    मतलब एक बार घोषित कर दिया तो वह संपत्ति हमेशा के लिए वक्फ हो गई। इसका पूरी तरह से इस्तेमाल लोगों के कल्याण के लिए होता है। धार्मिक कार्य- मस्जिद, खानकाह, मदरसा जैसे कार्यों के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। वक्फ के अलग-अलग भाग होते हैं। वक्फ जो करता है, उसे वाकिफ कहते हैं। वक्फ संपत्ति को औकाफ कहते हैं और उसकी देखभाल मुतव्वली करता है। वक्फ तीन प्रकार के होते हैं। पहला, सार्वजनिक उपयोग व मानव कल्याण के लिए वक्फ-अल-खैरी। दूसरा, परिवार के लिए वक्फ -अलल -औलाद जिसे पारिवारिक तौर पर अल्लाह के नाम करते हैं। तीसरा, अल -वक्फ -अल -मुश्तरक, जो सार्वजनिक और परिवारिक दोनों मिलाकर करते हैं।

    प्रश्न: वक्फ कानून में संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी, क्या पहले भी संशोधन हुए हैं?

    प्रो. अख्तर: भारत में वक्फ कानून स्वाधीनता पूर्व से है। वर्ष 1913 में वक्फ कानून आया। स्वाधीनता के बाद 1954 में भी वक्फ कानून बना था। वर्ष 1984 में उसमें सुधार हुआ, फिर 1995, 1997 और 2013 में। इस तरह जरूरत और आवश्यकता के अनुसार कानून में संशोधन होते रहे हैं। यह संशोधन इसलिए है, क्योंकि पुराने कानून वक्फ के उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रहे थे। यह वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, भ्रष्टाचार को खत्म करने और ट्रिब्यूनल में फंसे लाखों मुकदमों से राहत दिलाने को लेकर है। मैंने, यह विधेयक पढ़ा है, इसलिए दावे के साथ कह सकता हूं कि यह गेम चेंजर साबित होने वाला कदम है।

    प्रश्न: मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठन और विपक्षी राजनीतिक दल तो विरोध कर रहे हैं? 

    प्रो. अख्तर: कुछ लोग राजनीति से प्रेरित होकर मुस्लिम समुदाय को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। क्यूआर कोड स्कैन के माध्यम से व्यापक स्तर पर विरोध करने को लेकर लोगों का आह्वान किया जा रहा है। मैं, एक आयोग का कार्यकारी अध्यक्ष होने और मुस्लिम समाज के विभिन्न संस्थाओं से जुड़े होने के नाते इस बात को समझता हूं कि सरकार की ओर से संशोधन के माध्यम से निश्चित तौर पर वक्फ संपत्तियों के रखरखाव में पारदर्शिता, सुधार, हिसाब-किताब की जांच, प्रबंधन से संबंधित सारी बातों को सम्मिलित किया गया है। ऐसे में जो लोग विधेयक को पढ़ेंगे, उन्हें ये बातें समझ में आएगीं। बिना पढ़े, जाने टिप्पणी करना गलत है। पढ़ने के बाद अगर कोई बात समझ नहीं आए तो उसे सरकार के समक्ष जेपीसी के माध्यम से रखने का और समझने का मौका भी मिला है।

    प्रश्न: इसमें मुख्य तौर पर ऐसे कौन से विषय हैं, जिन पर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है?

    प्रो. अख्तर: पहले कोई भी व्यक्ति वक्फ कर सकता था, लेकिन अब इसके लिए एक शर्त रखी गई कि वही व्यक्ति अपनी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता है, जो पांच वर्ष से इस्लाम धर्म को मानता हो। अब बात आती है पांच साल इस्लाम को मानने के प्रावधान की तो उसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि वक्फ के लिए घोषित की जाने वाली संपत्ति का वह मालिक भी होना चाहिए। इससे कई गड़बड़ियां रुकेंगी। खासकर यह सुनिश्चित होगा कि संपत्ति से महिला उत्तराधिकारियों को वंचित नहीं किया जा सकेगा, बल्कि उसे हक देना होगा। यह प्रावधान पहले के वक्फ कानून में नहीं था। 

    धारा नौ और 14 के तहत विधेयक में महिलाओं, अन्य पिछड़ा वर्ग के मुसलमानों और गैर-मुसलमानों को वक्फ प्रशासन में शामिल करने का प्रस्ताव है। पारिवारिक वक्फ के कारण उत्तराधिकारियों, जिसमें महिला उत्तराधिकारी भी शामिल हैं, को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। यह स्वागत योग्य है, क्योंकि अब एक मुसलमान अपनी संपत्ति का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा ही पारिवारिक वक्फ बना सकता है, अगर वह अपने उत्तराधिकारियों को छोड़ देता है। वह महिला उत्तराधिकारियों को पूरी तरह से बाहर नहीं कर सकता।

    प्रश्न: आरोप है कि वक्फ संपत्तियों को वक्फ बोर्ड से छीनकर जिला प्रशासन के माध्यम से सरकार उस पर कब्जा जमाना चाहती है...

    प्रो. अख्तर: पहले वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वेक्षण अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी। अब उसकी जगह पर जिलाधिकारी को नियुक्त करना है, इस पर बिना समझे ही विवाद खड़ा किया जा रहा है। मैं, झारखंड में अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष रहा हूं। मैंने उस दौरान धनबाद समेत अन्य स्थानों पर कुछ ऐसे मामले देखे कि वहां पर कब्जाधारी लोग हैं, लेकिन सर्वे आयुक्त और सीईओ के जो अधिकारी होते थे, कलेक्टर के अधीन नहीं होने के कारण हमें ही उस जिले के जिलाधिकारी को पुलिस बल भेजकर अतिक्रमण हटवाने का अनुरोध करना पड़ता था। अब अगर यह मामला सीधे जिलाधिकारी के हाथ में आ जाता है तो संपत्तियों को अवैध कब्जे से छुड़वाने में बड़ी मदद मिलेगी। 

    प्रश्न: वक्फ बाइ यूजर को लेकर भ्रम है कि सैकड़ों साल पुरानी संपत्तियों के दस्तावेज नहीं हैं, उसका क्या होगा?

    प्रो. अख्तर: विधेयक में वक्फ बाइ यूजर को लेकर स्पष्ट प्रावधान है कि इसके पारित होने के अगले छह माह में कब्रिस्तान, मस्जिद, खानकाह या मदरसे जैसी वर्षों से इस्तेमाल हो रही संपत्तियों का जिनका दस्तावेज नहीं है, तब भी उसे वक्फ बोर्ड में दर्ज करा सकते हैं। यहां तो पारदर्शिता की बात हो रही है, लेकिन लोग अफवाह उड़ा रहे हैं कि आपकी वक्फ संपत्ति चली जाएगी, कब्रिस्तानें खत्म कर दी जाएंगी, मस्जिदें शहीद कर दी जाएंगी, दरगाहें नेस्तनाबूद कर दी जाएंगी। इसलिए मैं कहता हूं कि इस विधेयक के प्रावधान के बारे में अच्छे से समझना चाहिए। वक्फ बोर्ड था, है और आगे रहेगा। 

    प्रश्न: बदलाव के जरिये पारदर्शिता की बड़ी पहल हो रही है तो फिर चंद लोग रोड़ा क्यों बन रहे हैं?

    प्रो. अख्तर: वे लोग सुधार नहीं चाहते हैं। वक्फ संपत्तियों पर कब्जा जमाने वाले ऐसे बड़े लोग हैं, जिनका नाम नहीं लूंगा। लेकिन उनसे पूछना चाहूंगा कि क्या वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे नहीं हैं? क्या उनका सही ढंग से रखरखाव हो पा रहा है? जिस संपत्ति का इस्तेमाल समाज की भलाई के लिए होना चाहिए, क्या वह हो रहा है? क्या पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी नहीं है? वास्तविकता तो यह है कि जो भी विरोध कर रहे हैं, उन्होंने विधेयक को पढ़ा ही नहीं है।

    प्रश्न: वक्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों और दो महिलाओं की नियुक्ति के प्रावधान पर नाराजगी क्यों है?

    प्रो. अख्तर: केंद्रीय वक्फ परिषद में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के साथ ही सभी सदस्यों के मुस्लिम होने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। मंत्री के गैर मुस्लिम होने के विकल्प के साथ दो महिला सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान पहले से है। विरोध करने वाले कह रहे हैं कि मुस्लिम वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों का क्या काम तो यह समझने वाली बात है कि वक्फ संपत्तियों में लीज और किराए के आधार पर व्यावसायिक गतिविधियों को संचालित करने वाले बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम हैं। उनकी संख्या ठीक-ठाक है, लेकिन उनका एक भी प्रतिनिधि वक्फ बोर्ड में नहीं होता है। जबकि उनसे जुड़े विवादों में उनकी मांग रहती है कि उनके बीच के सदस्य हों, जिससे उन्हें संवाद में आसानी हो। 

    सरकार का यह कदम ठीक है। दो गैर मुस्लिमों में एक सांसद या जनप्रतिनिधि भी हो सकता है। इसमें दो बातें हैं। एक तो जवाबदेही के लिए, दूसरे, हम धर्म निरपेक्ष देश में रहते हैं। तब गैर मुस्लिमों से इतना परहेज क्यों कर रहे हैं? मैं कहता हूं कि अगर ये आ जाएंगे तो इस्लाम के प्रति सम्मान ही बढ़ेगा। दान और जनकल्याण के कार्य धर्म देखकर नहीं किया जाता है। यह देश साझी संस्कृति, विरासत व सौहार्द वाला है। जब हिंदुस्तान में इस्लाम आया था तो हिंदुओं ने ही सबसे पहले मस्जिद के लिए केरल में जमीन दी थी।

    प्रश्न: विधेयक में सुधार की ऐसी कौन-सी बातें हैं, जिससे बदलाव की राह दिखाई देती है?

    प्रो. अख्तर: इसमें वक्फ संपत्ति की जियो टैगिंग करने, उसका पंजीयन कराने, कैग (सीएजी) आडिट और डिजिटल रिकार्ड रखने के साथ बाजार मूल्य पर लीज देने के प्रावधान हैं। इसके साथ ही योग्य लोगों को वक्फ बोर्ड में जगह देने का रास्ता बनाया गया है। अभी वक्फ संपत्तियों का बमुश्किल 25-30 प्रतिशत डिजिटलीकरण हुआ है।

    प्रश्न: यह मुस्लिम समाज के जरूरतमंदों के जीवन में बदलाव कैसे लाएगा? 

    प्रो. अख्तर: वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन कर अस्पताल और शैक्षणिक संस्थाएं खोल सकते हैं। तलाकशुदा महिला की शादी करवा सकते हैं। अनाथ बच्चों को शिक्षा और कौशल विकास केंद्र के जरिये युवाओं को रोजगार से जोड़ सकेंगे। 

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