तंबाकू जनित उत्पादों के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए बनाए जाएं कड़े कानून
Prevention Of Tobacco स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि तंबाकू उत्पादों को लोगों की पहुंच से अधिक से अधिक दूर रखा जाए। इसके लिए ठोस रणनीति बनाते हुए उस पर तुरंत काम करना होगा।

डा. रम्भा पांडे। यह सच है कि आज हम अपने स्वास्थ्य को लेकर लगातार जागरूक होते जा रहे हैं। स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर विकल्प पर खर्च करने के लिए भी तैयार हो रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि हमारी सेहत का एक विशाल दैत्य जैसा दुश्मन सामने खड़ा है जिसे हम देख ही नहीं पा रहे हैं। दरअसल तंबाकू सार्वजनिक स्वास्थ्य के अब तक के सबसे बड़े खतरों में से एक के रूप में हमारे सामने आ चुका है। यह दुनियाभर में सालाना 80 लाख लोगों की मौत का कारण बन रहा है। केवल पैसिव स्मोकिंग (धूम्रपान करने वालों के आसपास लोगों के शरीर में जाने वाला धुआं) की वजह से वार्षिक रूप से 10 लाख लोगों की मौत होती है। ऊपर से भारत जैसे देशों में तो यह सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, जर्दा जैसे कितने ही जानलेवा दुश्मन के रूप में सामने मौजूद है।
दशकों से यह बात सभी को मालूम है कि तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसका सेवन करने वाले उपभोक्ता, उसके परिवार, अर्थव्यवस्था और अंतत: देश पर इसका वित्तीय बोझ पड़ता है। यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है कि धूम्रपान करने से कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के रोग, डायबिटीज और क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज सहित कई तरह की घातक बीमारियां होती हैं। इससे शरीर के लगभग हर अंग को नुकसान पहुंच सकता है। जहां तक महिलाओं की बात है, तंबाकू इस्तेमाल से उन्हें स्तन कैंसर और प्रजनन संबंधी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। उनके गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि युवा पीढ़ी धूम्रपान को फैशन के प्रतीक के रूप में देखकर अपनी आदतों में इसे शामिल कर रही है।
‘ब्रेस्ट कैंसर रिसर्च’ जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि धूम्रपान स्तन कैंसर के खतरे को काफी बढ़ा देता है। खासकर उन महिलाओं में इसका खतरा सबसे ज्यादा होता है जिन्होंने किशोरावस्था से ही धूम्रपान करना शुरू कर दिया था या फिर जिसके परिवार में किसी को यह बीमारी हो चुकी है यानी स्तन कैंसर उसकी फैमिली हिस्ट्री में रही हो। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक, दुनियाभर में धूम्रपान करने वाले एक अरब से अधिक लोगों में 20 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है।
लड़कियों और महिलाओं में तंबाकू का उपयोग करने की तेजी से बढ़ती प्रवृत्ति सीधे तौर पर तंबाकू कंपनियों की आक्रामक मार्केटिंग रणनीतियों से जुड़ी हुई है। इस रणनीति के तहत तंबाकू कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री के लिए भारत जैसे कम और मध्यम आय वाले देशों में इस समूह को लक्षित करती हैं। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए इस तरह की कई कंपनियां अनेक प्रकार के अनैतिक व्यवहार को भी अपनाने में नहीं हिचकती हैं। ऐसे में सरकार को समाज के व्यापक हित में तंबाकू उत्पादों को लोगों की पहुंच से दूर करने की रणनीतियों पर काम करना चाहिए। साथ ही महिलाओं और बच्चों को घर के अलावा काम करने की जगह और सार्वजनिक स्थानों पर पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आने से बचाना चाहिए। सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम में बड़े संशोधनों के जरिये ऐसा किया जा सकता है। अभी होटल, रेस्टोरेंट और एयरपोर्ट जैसी जगहों पर धूम्रपान के लिए विशेष जोन बनाने की इजाजत है। इन स्मोकिंग जोन पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने जैसे कड़े प्रविधान से सार्वजनिक जगहों पर तंबाकू इस्तेमाल को रोकने में मदद मिलेगी।
बच्चों को इसकी ओर आकर्षित करने में उन बैनर-पोस्टरों का भी बड़ा योगदान है जो तंबाकू उत्पादों की बिक्री वाली जगहों पर इसे प्रचारित करने के लिए लगाए जाते हैं। टाफी-चाकलेट जैसे बच्चों की रुचि के उत्पादों के बीच तंबाकू उत्पादों को प्रदर्शित किया जा रहा है। इसके अलावा, कई अध्ययनों से यह पता चला है कि इन आउटलेट्स पर तंबाकू उत्पादों को प्रदर्शित करने वाले पोस्टरों का आकार काफी बड़ा था।
सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे इन दुकानों पर कैंडी खरीदते समय बच्चों की नजर सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों पर न पड़े। दुकानों पर विज्ञापन और तंबाकू उत्पादों को प्रदर्शित करने की जो छूट संबंधित में दी गई है उसका दुरुपयोग खुलेआम किया जा रहा है। तंबाकू कंपनियां बच्चों और युवाओं को लक्षित करने के लिए इस छूट का बेजा इस्तेमाल कर रही हैं। इसलिए तंबाकू उत्पाद अधिनियम की इस खामी को तत्काल दूर किया जाना चाहिए। हम अपनी युवा पीढ़ी को तंबाकू के घातक प्रभावों से बचाने के लिए कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं।
तंबाकू के इस्तेमाल से नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले घातक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इससे पहले कि यह समस्या हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाए, हमारे नीति निर्माताओं और अधिकारियों को इससे होने वाले स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर अपनी नजर बनाए रखनी होगी। उन्हें यह भी समझना होगा कि समय पर किया गया उपाय ही दुष्प्रभावों से बचाव का सबसे बेहतर तरीका है। इसलिए आज यह आवश्यक है कि देश के डाक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता और सेलिब्रिटी तंबाकू नियंत्रण के लिए मिलकर आवाज उठाएं।
[एडिशनल प्रोफेसर, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली]

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