AIPA के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा- कोरोना के डर से स्कूलों को बंद रखना समझदारी नहीं
Delhi School Reopening आल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने बताया कि आज स्कूल न खोले जाने के नुकसान को लेकर बहुत से रिसर्च हमारे पास मौजूद हैं। न जाने कितने बच्चे मानसिक परेशानियों को झेल रहे हैं।

नई दिल्ली। एक सितंबर से कक्षा नौ से 12 तक के स्कूल खोले जा रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों को स्कूल तो भेजना चाहते हैं, लेकिन उनके स्वास्थ्य को लेकर भी खासे सशंकित हैं। सरकार का स्कूल खोलने का फैसला कितना उचित है, क्या चुनौतियां आएंगी और स्कूलों में शारीरिक दूरी का पालन कैसे कराया जा सकेगा। इन तमाम मुद्दों पर आल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल से रीतिका मिश्रा ने बातचीत की है। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच स्कूल खोले जाने के निर्णय को आप कितना उचित मानते हैं ?
- स्कूल खोलना जरूरी था। स्कूल खोलने में देरी से पहले ही बच्चों की पढ़ाई को बहुत नुकसान हो चुका है। आज स्कूल न खोले जाने के नुकसान को लेकर बहुत से रिसर्च हमारे पास मौजूद हैं। न जाने कितने बच्चे मानसिक परेशानियों को झेल रहे हैं। बहुत से बच्चे तो स्कूली व्यवस्था से ही बाहर हो गए हैं और अपने गृह नगर भी लौट चुके हैं। इन्हें फिर से स्कूली व्यवस्था में लाना मुश्किल होगा।
महामारी से छात्रों की सुरक्षा को लेकर किस तरह की चुनौतियां हैं, और अभिभावकों की चिंता को आप कैसे देखते हैं?
- देखिए, अभिभावकों की चिंता केवल बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर है, लेकिन अभिभावकों को समझना होगा कि ये चिंता सरकार को भी है। स्कूल खोले जाने को लेकर मानक संचालन प्रकिया (एसओपी) बनाई गई है, इसलिए स्कूलों के समक्ष भी कोई बड़ी चुनौती तो नहीं ही आएगी। आज हमारे पास सबसे बड़ा उदाहरण चीन का है। चीन ने तो अपने स्कूलों को कभी बंद ही नहीं किया। उन्होंने अपने छात्रों को इस महामारी से सुरक्षा दी।
स्कूल में तो शारीरिक दूरी का पालन कराया जा सकता है, लेकिन स्कूल वाहनों में ये कैसे संभव हो पाएगा?
- हर बच्चा स्कूल के वाहन से स्कूल नहीं जाता है। दूसरा, ज्यादातर स्कूल अभी अपने स्कूली वाहनों को नहीं ही शुरू करेंगे। ऐसे में फिलहाल बच्चे अपने साधन या सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करेंगे। अब बात शारीरिक दूरी की आती है तो ये बात समझनी चाहिए कि आप सब जगह चाहकर भी दो, चार या छह फीट की सार्वजनिक दूरी बनाकर नहीं रह सकते। हमारी सार्वजनिक वाहनों की व्यवस्था ही ऐसी नहीं है। आप देखिए बस और मेट्रो में भी सभी सीटों पर यात्री बैठ सकते हैं। तो आप कहां तक सार्वजनिक दूरी बनाए रखेंगे। वैसे भी स्कूल कक्षा नौ से 12वीं तक के बच्चों के लिए फिलहाल खोले जा रहे हैं। इस उम्र तक आकर बच्चे समझदार हो जाते हैं। आप उन्हें बताएं कि वह जब भी स्कूल या सार्वजनिक वाहनों में बैठें तो मास्क जरूर लगाए रखें और हाथों को समय-समय पर सैनिटाइज करते रहें।
शिक्षा निदेशालय द्वारा तैयार की गई एसओपी को आप कितना प्रभावी मानते हैं?
- शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी की गई एसओपी को आवश्यक तौर पर स्कूलों को अपनाना चाहिए। इसे बनाने के लिए एक कमेटी बनी थी। कमेटी में डाक्टर, शिक्षा निदेशक और अन्य लोग भी शामिल थे। सभी ने एसओपी तैयार करने में जो सुझाव दिए हैं, वह बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही दिए गए हैं।
लंबे समय से स्कूल बंद होने के चलते छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ा है। स्कूलों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी देखना है। इस दोहरी चुनौती को आप कैसै देखते हैं?
- सवाल ये है कि मानसिक स्वास्थ्य बेहतर करने की चुनौती से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों को पता नहीं है कि परामर्श कैसे देते हैं। दूसरा, जो अपने आप को परामर्श विशेषज्ञ बताते हैं, उनकी संख्या बहुत ही कम है। वैसे, बच्चे जब स्कूल में अपने दोस्तों के साथ रहेंगे, बातचीत करेंगे तो वह उनकी सबसे बेहतर काउंसलिंग होगी। इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होगा।
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