NCR में बिना 'फौज' लड़ी जा रही प्रदूषण से जंग, सामने आया चौंकाने वाला सच; पढ़िए पूरी रिपोर्ट
एनसीआर में प्रदूषण से जंग स्टाफ की कमी के कारण प्रभावित हो रही है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) सहित कई बोर्डों में स्वीकृत पदों के मुकाबले काफी कम कर्मचारी हैं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी यही स्थिति है जहां विशेषज्ञों और अन्य कर्मचारियों की भारी कमी है जिससे प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों पर असर पड़ रहा है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। इसे विडंबना कहें या अनदेखी... लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण से जंग बिना 'फौज' के ही लड़ी जा रही है। इस लड़ाई में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) ही नहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास भी पूरा स्टाफ तक नहीं है।
आरटीआई कार्यकर्ता अमित गुप्ता की एक आरटीआई के जवाब में कुछ माह पहले डीपीसीसी ने स्वयं 55 प्रतिशत स्टाफ की कमी स्वीकार की है। बकौल डीपीसीसी, उसके स्वीकृत पदों की संख्या 344 है, लेकिन 233 पदों पर ही अधिकारी, कर्मचारी, विशेषज्ञ तैनात हैं।
वहीं, हैरत की बात यह कि इनमें से भी नियमित 111 ही हैं, जबकि 122 अनुबंध आधार पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डीपीसीसी ने यह भी बताया कि ग्रुप ए के पदों पर भर्ती के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजने पर काम किया जा रहा है, जबकि ग्रुप बी और अन्य पदों के लिए बीच-बीच में दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) को कहा गया है।
एक अधिकारी ने बताया कि 100 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया जल्द पूरी होने की संभावना है। इनमें कुछ प्रशिक्षु रखे जाएंगे। यह क्लेरिकल कामों के लिए होंगे। साथ ही एनवायरमेंटल इंजीनियर भी रखे जाएंगे। इनकी नियुक्ति इंजीनियरिंग सर्विस परीक्षा (ईएसई) से होगी।
सीपीसीबी भी के पास भी नहीं पर्याप्त स्टाफ
सीपीसीबी के पास स्वीकृत पदों की संख्या 603 है। इनमें से 134 पद खाली पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी खासी नाराजगी जताई है।
हरियाणा की स्थिति भी बदहाल
हरियाणा के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में विशेषज्ञों के 481 पदों में से 303 पद खाली चल रहे हैं। यह पद काफी लंबे समय से खाली हैं। बोर्ड में अभी इस समय 178 कर्मचारी कार्यरत हैं। 151 पदों को भरने के लिए हरियाणा राज्य लोक सेवा आयोग के समक्ष प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
फरीदाबाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्यालय में विशेषज्ञ के तौर पर एक क्षेत्रीय अधिकारी और दो एसडीओ काम कर रहे हैं। एसडीओ फील्ड अफसर के रूप में काम करते हैं। किसी भी तरह की शिकायत आने पर यह जांच करने के लिए जाते हैं। नियम के अनुसार चार एसडीओ होने चाहिए। दो एसडीओ की पोस्ट पिछले काफी समय से खाली पड़ी हुई है। रेवाड़ी में कुल पद 15 स्वीकृत हैं। इनमें एक साइंटिस्ट का पद खाली है।
उत्तर प्रदेश का भी कुछ ऐसा ही हाल
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डा. आरपी सिंह के अनुसार बोर्ड के कुल 732 पद स्वीकृत हैं। इनमें से वर्तमान में 398 पद ही भरे हुए हैं। कुल 334 पद रिक्त चल रहे हैं। बोर्ड में जो प्रमुख पद रिक्त हैं उनमें सहायक पर्यावरण इंजीनियर, जूनियर इंजीनियर, लैब असिस्टेंट व ग्रुप डी के पद हैं। वर्ष 2010 के बाद से सहायक अभियंताओं की भर्ती नहीं हुई है जबकि जूनियर इंजीनियर के 41 पद व पिछले साल भरे गए थे।
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गाजियाबाद से 50 कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं, जबकि वर्तमान में 25 ही भरे हुए हैं। क्षेत्रीय प्रदूषण विभाग ग्रेटर नोएडा में जेई के तीद पद हैं, इनमें से दो रिक्त हैं। सहायक इंजीनियर के तीन पद तीनों पर अधिकारी नियुक्त हैं पर लैब अधिकारी के पांचों पद खाली पड़े हैं।
वहीं, क्षेत्रीय प्रदूषण विभाग नोएडा में सहायक इंजीनियर के दो पदों में से एक रिक्त है। जेई के दो पद रिक्त जबकि लैब सहायक के पांच में से चार पद रिक्त पड़े हैं।
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