झुग्गी ध्वस्त करते समय बच्ची की हुई थी मौत, 20 साल बाद अब दिल्ली HC ने पुलिस अधिकारी पर सुनाया अहम फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने झुग्गी के ध्वस्तीकरण के दौरान एक बच्ची की मौत के मामले में 20 साल से अधिक समय से आपराधिक शिकायत का सामना कर रहे एक पुलिस अधिकारी को राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी का कर्तव्य झुग्गी को खाली कराना नहीं बल्कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। इस दुर्भाग्यपूर्ण मामले में पुलिस अधिकारी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। झुग्गी के ध्वस्तीकरण के दौरान एक नौ साल की बच्ची की मौत के मामले में दो दशक से अधिक समय से आपराधिक शिकायत का सामना कर रहे एक पुलिस अधिकारी को राहत देते हुए दिल्ली हार्ह कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि एक पुलिस अधिकारी का कर्तव्य झुग्गी को खाली या ध्वस्तीकरण कराना न हाेकर कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं पेश की गई, जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता पुलिस अधिकारी की संपत्ति मालिक से कोई मिलीभगत थी।
पुलिस अधिकारी को मौत के लिए नहीं ठहरा सकते दोषी
अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण मामला है जहां ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान अपनी बच्ची की मौत के लिए दस साल से एक पिता अदालतों का दरवाजा खटखटाने को मजबूर है, लेकिन कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य ये मौजूद पुलिस अधिकारी को छोटे बच्चे की मौत के लिए किसी भी तरह का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
उक्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता पुलिस अधिकारी के विरुद्ध शुरू की गई आपराधिक शिकायत के साथ ही 26 अक्टूबर 2016 के आदेश को रद कर दिया। याचिकाकर्ता प्रकाश लाल खेरा उस समय अशोक विहार पुलिस थाने के एसएचओ के तौर पर तैनात थे।
2003 को झुग्गी के ध्वस्तीकरण की हुई थी कार्रवाई
हालांकि, अदालत ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को आदेश दिया कि वह कैंसिलेशन रिपोर्ट पर विचार करे। अदालत ने नोट किया कि ध्वस्तीकरण की उक्त कार्रवाई दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश पर की गई थी।
याचिका के अनुसार 27 नवंबर 2003 को झुग्गी के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई थी और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन एसएचओ प्रकाश लाल खेरा मौके पर तैनात थे।
इस दौरान शिकायतकर्ता की झुग्गी भी ध्वस्त की गई थी और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान झुग्गी के अंदर मौजूद सात वर्ष बेटी की मौत हो गई थी। शिकायतकर्ता की शिकायत पर याचिकाकर्ता पुलिसकर्मी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुई थी।

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