कबूतर प्रेम से दिल्ली में बढ़ रही हैं गंभीर बीमारियां, बच्चों-बुजुर्गों को सबसे अधिक खतरा; क्यों जरूरी है सावधान रहना?
अगर आपकी भी बॉलकनी में कबूतर आते हैं और आप उन्हें दाना डालते हैं तो आपको थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। दरअसल कबूतर प्रेम से दिल्ली में गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं। इसमें बच्चों और बुजुर्गों को सबसे अधिक खतरा है। कबूतरों को जहां का दाना डाला जाता है वहां इनकी आबादी तेजी से बढ़ती है। कबूतरों की बीट के संपर्क में आने से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में लोगों का बढ़ता कबूतर प्रेम कोरोना से मिलती-जुलती जानलेवा च्सिटाकोसिसज् बीमारी को बढ़ा रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि कबूतर की बीट और पंखों से होने वाली बीमारी सिटाकोसिस समय के साथ मानव विशेषकर बच्चों औ युवाओं के श्वसन तंत्र को बुरी तरह डैमेज कर देती है।
अगर सही समय पर इसका उचित इलाज न किया गया तो यह जानलेवा हो जाता है। यही वजह है कि इसे कोरोना जैसी बीमारी कहा जाता है क्योंकि कोरोना भी मानव के श्वसन तंत्र को ही डैमेज करती है। कोरोना वायरस संक्रगमण है, जबकि सिटाकोसिस बैक्टीरियल।
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समस्या की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली नगर निगम ने सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना डालने की प्रवृत्ति पर प्रभाी अंकुश लगाने के लिए गंदगी फैलाने पर चालान करना आरंभ कर दिया है। पर, यह इस समस्या का स्थाई या ठोस समाधान नहीं है, इसके लिए दिल्लीवासियों को जागरूक होना पड़ेगा, कबूतरों को दाना डालने की प्रवृत्ति से बचना होगा।
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सिटाकोसिस के अलावा हो सकती है कई अन्य बीमािरयां भी
फोर्टिस अस्पताल के अतिरिक्त निदेशक पल्मोनोलाजिस्टक और क्रिटिकल केयर डा. राहुल शर्मा बताते हैं कि कबूतरों की बीट और पंख से कई बीमारियां हो रही हैं। जो मानव के श्वसन तंत्र को प्रभावित करती हैं और लक्षणों के मामले में कोरोना से मिलती-जुलती हैं, जिसमें प्रमुख है सिटाकोसिस।
बताते हैं कि यह एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो क्लैमाइडिया सिटासी नामक बैक्टीरिया से होता है जो कबूतरों की बीट, पंखों और श्वसन स्राव में पाया जाता है। यह हवा में कबूतरों की सूखी बीट, पंखों के कण सांस के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करने से फैलती है।
डॉ. राहुल ने बताया कि पहले बुखार आता है, सही समय पर बीमारी पकड़ी नहीं गई तो यह संक्रमण धीरे-धीरे कर अधिकांश अंगों-कोशिकाओं में फैल जाता है और जानलेवा निमोनिया में तब्दील हो जाता है। पीड़ित की मौत तक हो जाती है।
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डा. अश्वनी गोयल बताते हैं कि कबूतरों की बीट और पंखों से हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (एचपी) जैसी गंभीर बीमारी भी होती है। यह मानव शरीर में फेफड़ों में सूजन और सांस की तकलीफ पैदा करती है।
अस्थमा, न्यूमोनिया फैलता है। बुजुर्ग और बच्चे सबसे अधिक इसका शिकार हो रहे हैं। बताया कि इधर के दिनों में पाया गया है कि दिल्ली में बड़ी संख्या में बच्चे भी इससे संक्रमित हो रहे हैं। इसी तरह क्रिप्टोकोकोसिसभी फेफड़ों संक्रमित करता है। लापरवाही बरतने पर मस्तिष्क तक पहुंच बना लेता है। कबूतर की बीट और पंखों से होने वाली हिस्टोप्लास्मोसिस बुखार, खांसी और सांस लेने में परेशानी पैदा करती है।
लक्षण
- सिटाकोसिस के लक्षण कोरोना वायरस से कुछ हद तक मिलते-जुलते होते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ, निमोनिया (फेफड़ों में संक्रमण), थकान। ॉ
- गंभीर मामलों में यह फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिसे "एटिपिकल निमोनिया" कहा जाता है जो जानलेवा हो सकता है।
- विशेषकर कमजोर प्रतिरक्षा वालों में। इसके अलावा फेफड़ों में सूजन और सांस की तकलीफ।
बचाव
- इन बीमारियों से बचने के लिए कबूतरों के संपर्क में आने से बचें, उनकी बीट को साफ करते समय मास्क पहनें और अच्छी स्वच्छता बनाए रखें।
- अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों पर कबृतरों को दाना डालने से बचें।
- बच्चों को कबूतरों के संपर्क में न आने दें, घरों में उन्हें रहने या घोंसला न बनाने दें।

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