दिल्ली की हवेली में गुजरा था परवेज मुशर्रफ का बचपन, पुश्तैनी मोहल्ले में खलनायक के तौर पर किए गए याद
Pervez Musharraf News पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का जन्म आजादी के पहले 11 अगस्त 1943 में दिल्ली के दरियागंज स्थित नहर वाली हवेली में हुआ था। मुशर्रफ ने यहां बचपन के लगभग चार वर्ष गुजारे थे।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति व सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ के निधन का दुख उनके पुश्तैनी मोहल्ले के लोगों को नहीं है, बल्कि वे उन्हें ‘खलनायक’ के तौर पर याद कर रहे हैं। मुशर्रफ का जन्म आजादी के पहले 11 अगस्त, 1943 में दिल्ली के दरियागंज में गोलचा सिनेमा के पीछे तत्कालीन मोहल्ला सादउल्ला खां स्थित नहर वाली हवेली में हुआ था।
दिल्ली में बीते बचपन के 4 साल
उनके पिता सैयद मुशर्रफरुद्दीन ब्रिटिश सरकार में अधिकारी थे। यहां पर मुशर्रफ ने लगभग चार वर्ष गुजारे थे। बंटवारे के ठीक पहले उनका परिवार यह हवेली बेचकर पाकिस्तान चला गया था। आजादी के 75 वर्ष में इस मोहल्ले के साथ हवेली का हुलिया पूरी तरह से बदल गया है। अब इस मोहल्ले को प्रताप मार्ग के नाम से जाना जाता है।
हवेली के कई हिस्से कई अलग-अलग लोगों ने खरीदे हैं और अब यहां चार से पांच मंजिला इमारतों में कई फ्लैट बन गए हैं। एक इमारत, जिसे गोला मार्केट के नाम से जाना जाता है, उसमें कई कार्यालय भी हैं। वैसे, हवेली का एक छोटा हिस्सा अपने पुराने स्वरूप में है, जिसमें वर्ष 1960 से डीके जैन का परिवार रह रहा है। वह नाराजगी भरे लहजे में कहते हैं कि इस जगह से मुशर्रफ से कोई वास्ता नहीं है। वह अपने घर का नाम देश के खलनायक से जोड़ने से मना करते हैं। वैसे भी उन्होंने इसे खरीदा है।
बोर्ड पर लिखा है- ‘मुशर्रफ की हवेली’
कहते हैं कि अब इसका नाम उससे जोड़ने का कोई मतलब नहीं है। नजदीक में ही कंवर सिंह भी परिवार सहित रहते हैं। वह भी दो टूक कहते हैं कि मुशर्रफ हमारा दुश्मन था। उसे कौन याद रखेगा? वैसे, यहां स्थित एक फ्लैट के बाहर बोर्ड टंगा है, जिस पर ‘मुशर्रफ की हवेली’ लिखा है।
इसी मोहल्ले में हुआ था मुशर्रफ का जन्म
गोला मार्केट में एक कार्यालय में मौजूद मोहम्मद सुऐब कहते हैं कि यहां के लोगों का मुशर्रफ से कोई लगाव नहीं है। एक तो देश के खिलाफ युद्ध को लेकर, दूसरे अब पुरानी पीढ़ी के लोग नहीं रह गए हैं। यहां के लोगों को भी कुछ वर्ष पहले तक पता तक नहीं था कि मुशर्रफ का जन्म इसी मोहल्ले में हुआ था। भले ही मुशर्रफ को यहां के लोग देश का दुश्मन मानते हैं, लेकिन वह यहां को लेकर भावुक थे।
2009 में दोबारा पुरानी दिल्ली आए थे मुशर्रफ
वर्ष 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन में शिरकत करने जब वह दिल्ली आए थे, तो इस स्थान पर भी आए थे। तब इस जगह को याद कर उनकी आंखें भीग गई थीं। बचपन में उनकी परवरिश करने वाली महिला से भी मिले थे। उनके हाथ को चूमते हुए काफी पैसे और कपड़े दिए थे।
वर्ष 2009 में दोबारा मुशर्रफ पुरानी दिल्ली आए तथा जामा मस्जिद भी गए थे। मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने बताया कि उन्होंने मस्जिद से अपनी तथा परिवार की यादों को याद करते हुए मस्जिद की मरम्मत में आर्थिक मदद की पेशकश की थी, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें मना कर दिया गया था।
छिपकर रहता था परिवार
मुशर्रफ का परिवार भी कुछ वर्ष पहले तक पुरानी दिल्ली में रहता था। जामा मस्जिद के सामने उर्दू बाजार में अपना किताब घर के मालिक मो. खालिद उनके परिवार से थे, लेकिन उन्होंने यह राज अपनी मृत्यु तक छुपाए रखी थी।
(Photo Credit- REUTERS)