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    राजधानी में पैदल चलना कितना खतरनाक? सामने आई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

    Updated: Thu, 24 Jul 2025 09:31 AM (IST)

    दिल्ली में पैदल चलना खतरनाक है क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं में 35 प्रतिशत पैदल यात्री होते हैं। दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था विविधतापूर्ण है। अध्ययन में असुरक्षित स्थितियों में तेज रफ्तार ट्रैफिक और फुटपाथ पर खड़ी गाड़ियां शामिल हैं। रिपोर्ट में फुटपाथों का सुधार सुरक्षित सड़क पार करने की सुविधाएं बढ़ाने के सुझाव दिए गए हैं। 2022 में 50 प्रतिशत पैदल यात्रियों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई।

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    दिल्ली में पैदल चलना भी जान जोखिम में डालने जैसा है।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में पैदल चलना भी जान जोखिम में डालने जैसा है। तेज ट्रैफिक में सड़क पार करना सबसे बड़ी चुनौती है। पैदल चलने वालों के लिए सुविधाओं का अभाव है और लोग डरकर सड़क पर चलते हैं।

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    हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली में सड़क हादसों में मरने वालों में 35 प्रतिशत तक पैदल यात्री हो सकते हैं। अध्यन के मुताबिक, दिल्ली की कुल आबादी लगभग दो करोड़ है और यहां का ट्रैफिक व्यवस्था बहुत विविधतापूर्ण है। इसमें कार, ट्रक, दोपहिया, आटो रिक्शा जैसे मोटरवाहनों के साथ-साथ पैदल यात्री, साइकिल, पशु और मानव चालित वाहन भी शामिल हैं।

    दिल्ली में प्रति व्यक्ति वाहन स्वामित्व देश में सबसे ज्यादा है। खासकर, दोपहिया वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि के कारण सड़क दुर्घटनाओं में मौतों का अनुपात प्रति एक लाख जनसंख्या पर 9 मौतें हो गया है। दिल्ली के परिवहन अनुसंधान और चोट निवारण केंद्र (ट्रिप-सी), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली और यूनिवर्सिटी कालेज लंदन ने यह अध्ययन किया है।

    ‘परसेप्शन ऑफ पेडेशट्रियन सेफ्टी इन दिल्ली

    ए रैश एनालाइसिस एप्रोच’ नामक अध्ययन में सामने आया है कि साल 2022 में कुल 1461 सड़क हादसों में से 43 प्रतिशत हादसे पैदल यात्रियों से जुड़े थे। हालांकि, स्वतंत्र शोधों के मुताबिक असल आंकड़ा और भी ज्यादा यानी 35 प्रतिशत तक हो सकता है। दूसरी तरफ, दिल्ली में 26.3 प्रतिशत लोग रोजमर्रा के सफर के लिए पैदल चलना पसंद करते हैं।

    शोध में शामिल आइआइटी दिल्ली की प्रोफेसर गीतम तिवारी ने बताया कि दक्षिणी दिल्ली के आठ वार्डों में 426 पैदल यात्रियों से बातचीत पर आधारित इस अध्ययन में सामने आया कि पैदल चलने से जुड़ी 15 में से 12 स्थितियों को "असुरक्षित" माना गया।

    इस अध्ययन में पाया गया कि पैदल यात्री अपने आसपास के माहौल से जुड़ी सुरक्षा खतरों को अच्छी तरह पहचानते हैं। उनकी यह धारणा उनकी उम्र, लिंग, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और पुराने अनुभवों पर निर्भर करती है। शोधकर्ताओं ने रैश विश्लेषण तकनीक का उपयोग किया। यह तकनीक बताती है कि कोई व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति को कितना असुरक्षित महसूस करता है।

    पैदल चलने वालों ने इन स्थितियों को बताया सहज

    पैदल चलने वालों ने ऊंचे फुटपाथ और वहां स्ट्रीट वेंडरों की उपस्थिति को कम घातक बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे उन्हें परेशानी नहीं होती। स्ट्रीट वेंडरों की उपस्थिति सुरक्षित माहौल देती है।

    इन स्थितियों को बताया खतरनाक

    पैदल चलने वालों ने मध्यवर्ती डिवाइडर (मेडियन) पर रुकने की मजबूरी को खराब बताया है। सबसे घातक तेज रफ्तार ट्रैफिक के बीच सड़क पार करने की चुनौती को माना है। इसी तरह फुटपाथ पर खड़ी गाड़ियों से पैदल राह में रुकावट को अहम बताया है।

    इसके अलावा भारी यातायात वाले मार्गों को पार करने में डर, बस स्टाप के पास क्रासिंग की अनुपलब्धता से असुरक्षा, क्रासिंग के पास खड़े वाहनों के कारण दुर्घटना का खतरा, फुटपाथ पर मोटरसाइकिल व स्कूटर का चलना, भीड़भाड़ वाले फुटपाथ पर सुरक्षा की कमी, सूरज ढलने के बाद पैदल चलने में डर, सीसीटीवी कैमरे या सुरक्षा कैमरे न होने से डर, पुलिस या ट्रैफिक नियंत्रण की अनुपस्थिति और सड़क पर उचित स्ट्रीट लाइटिंग का अभाव को बड़े खतरे बताया है।

    रिपोर्ट में दिए गए सुझाव

    फुटपाथों का सुधार और निरंतरता सुनिश्चित करनी होगी। सुरक्षित सड़क पार करने की सुविधाएं, जैसे ज़ेब्रा क्रासिंग, लाइटिंग और ट्रैफिक सिग्नल, बढ़ाए जाने चाहिए। महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए नीतियां बनाई जाएं। फुटपाथ से पार्किंग को हटाया जाए और उन्हें अतिक्रमण मुक्त बनाया जाए।

    वहीं, योजना के तहत फुटपाथ पर स्ट्रीट वेंडर्स को लाया जाए। सड़क पार करने के लिए सुविधाएं बढ़ाई जाएं। दोपहिया वाहनों को फुटपाथ पर चलने से रोका जाए। आइआरसी के मानक के अनुरूप 15 सेंटीमीटर ऊंचे ही फुटपाथ बनाए जाएं।

    अध्ययन में यह भी पाया गया कि सुरक्षा को लेकर महिलाओं और पुरुषों में सोच अलग थी। महिलाएं मेडियन पर ज़्यादा निर्भर दिखीं और खड़ी गाड़ियों व रेलिंग की अनुपस्थिति को लेकर अधिक चिंतित रहीं।

    क्या कहते हैं एनसीआरबी और पुलिस के आंकड़ें

    2022 (एनसीआरबी / दिल्ली सड़क दुर्घटना औसत रिपोर्ट)

    दिल्ली में 2022 में कुल सड़क दुर्घटना मौतें: 1,571

    इनमें पैदल यात्रियों की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत रही यानी करीब 785 लोग मारे गए।

    2023 (दिल्ली पुलिस रिपोर्ट)

    2023 में सड़क दुर्घटना मौतों की संख्या घटकर: 1,257 रह गई।

    इनमें पैदल यात्रियों की हिस्सेदारी 43 प्रतिशत रही यानी लगभग 540 मौतें दर्ज हुईं।