भोजन, पानी और हवा के जरिये करोड़ों लोगों के घरों में घुस गया अनदेखा खतरा, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता
Dangerous Information पर्यावरणविदों की यह चिंता बृहस्पतिवार को दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में गैर सरकारी संगठन टाक्सिक लिंक की ओर से आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में सामने आई। यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती चिंता पारिस्थितिक तंत्र के लिए सबसे खतरनाक और अनदेखे खतरों में से एक है। माइक्रोप्लास्टिक ने भोजन, पानी और जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें घुसपैठ कर ली है। यह स्थिति बेहद चिंता में डालने वाली है, क्योंकि यह बेहद जानलेवा है।
एक बार जब पर्यावरण में प्रवेश कर जाते हैं तो माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक के रूप में कार्य करते हैं और सैकड़ों वर्षों तक सक्रिय रह सकते हैं। महासागरों में भी इस प्रदूषण को वैश्विक प्रभावों की एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
कार्यशाला में वक्ताओं का कहना था कि प्लास्टिक प्रदूषण का पैमाना स्पष्ट रूप से बहुत बड़ा है। इसके प्रभावों की सीमा और मात्रा को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। माइक्रोप्लास्टिक के क्षेत्र में अब और अधिक शोध हो रहे हैं, लेकिन भारत में इस प्रदूषक पर सीमित अध्ययन और चर्चाएं हैं।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के सदस्य सचिव डा. के.एस. जयचंद्रन (Delhi Pollution Control Committee Member Secretary Dr. K.S. jayachandran) ने दिल्ली में की गई सभी गतिविधियों की एक संक्षिप्त समीक्षा दी। उन्होंने कहा कि स्थिति से निपटने के लिए बहुत सारे हस्तक्षेप के साथ इसकी एक लंबी सूची है। एसयूपी पर प्रतिबंध को लेकर उन्होंने कहा कि यह एक छोटा कदम है, लेकिन निश्चित तौर पर बड़ी पहल है। कार्यशाला में कई विशेषज्ञों ने अपने-अपने शोध के बारे में बताया।
यहां पर बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है। खासकर सर्दियों के दौरान दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। इसके साथ ही यहां सर्दियों में इमरजेंसी जैसे हालात तक बन जाते हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों के धुएं के अलावा पराली भी एक प्रमुख कारक है। खासकर दो पहिया वाहन दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं, यह विशेषज्ञों का कहना है।
पेट बना प्लास्टिक का भंडार
एक शोध में ब्रिटेन, फिनलैंड, इटली, नीदरलैंड, पोलैंड, रूस और ऑस्ट्रिया के आठ शाकाहारी और मांसाहारी भोजन लेने वाले लोगों को शामिल किया गया था। सभी के शरीर से नौ विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के कण मिले।
बढ़ता प्रदूषण
प्लास्टिक के कणों से वायु और जल प्रदूषण बढ़ रहा है। वॉशिंग मशीन में एक बार कपड़े धोने पर तकरीबन सात लाख प्लास्टिक फायबर के कण वातावरण में मिल जाते हैं।
सैकड़ों कण
शोधकर्ताओं के मुताबिक प्लास्टिक की पानी की बोतल, खाने में प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल, खाना रखने के डिब्बे, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ और मछलियों के जरिए सैकड़ों कण पेट में पहुंच रहे हैं। साथ ही धूल और सिंथेटिक मटेरियल के कपड़ों से प्लास्टिक फायबर सांस लेने पर इंसान के शरीर में पहुंच जाता है।
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