Parliament Monsoon Session: आज लोकसभा में दिल्ली ऑर्डिनेंस बिल पर होगी चर्चा, पढ़ें इस विधेयक से जुड़े सारे नियम
अध्यादेश के माध्यम से धारा 3ए के रूप में जोड़े गए दिल्ली विधानसभा के संबंध में अतिरिक्त प्रविधान को विधेयक में हटा दिया गया है। अध्यादेश की धारा 3ए में कहा गया था किसी न्यायालय के किसी भी फैसले आदेश में कुछ भी शामिल होने के बाद भी विधानसभा को सूची-II की प्रविष्टि 41 में उल्लिखित किसी भी मामले को छोड़कर अनुच्छेद 239AA के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया। बुधवार को इस विधेयक पर चर्चा होगी। विधेयक में कुछ नियमों को ठीक किया गया, तो कुछ चीजें हटाई गई हैं।विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो जाता है तो दिल्ली में सरकार के सभी अधिकार अधिकारियों के माध्यम से उपराज्यपाल के पास चले जाएंगे।
विधेयक में क्या है खास डालते हैं एक नजर
विधेयक बनने में से नियम हटाए गए - अध्यादेश के माध्यम से धारा 3ए के रूप में जोड़े गए "दिल्ली विधानसभा के संबंध में अतिरिक्त प्रविधान" को विधेयक में हटा दिया गया है। अध्यादेश की धारा 3ए में कहा गया था कि किसी न्यायालय के किसी भी फैसले, आदेश में कुछ भी शामिल होने के बाद भी विधानसभा को सूची-II की प्रविष्टि 41 में उल्लिखित किसी भी मामले को छोड़कर अनुच्छेद 239AA के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।
विधेयक में आर्टिकल 239 एए पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथारिटी (एनसीसीएसए) बनाने का अधिकार देता है।
राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की "वार्षिक रिपोर्ट" को संसद और दिल्ली विधानसभा में पेश करने को अनिवार्य बनाने वाला प्रविधान।
केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों से संबंधित मंत्रियों के आदेशों, निर्देशों को उपराज्यपाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखना अनिवार्य करने वाला प्रविधान।
विधेयक में ये जोड़ा गया
दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा। यानी विधेयक में एक नए प्रविधान में कहा गया है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार द्वारा गठित बोर्डों और आयोगों में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण द्वारा अनुशंसित नामों के एक पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे, जिसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे। मगर इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं। यानी वह इस प्राधिकरण में अपने अनुसार कुछ भी नहीं करा सकते हैं।
विधेयक के तहत अन्य सख्त नियम
-अब मुख्य सचिव ये तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत।
-इसी तरह अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है।
-सतर्कता सचिव अध्यादेश के आने के बाद चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं वे एलजी के प्रति बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हैं।
-अब अगर मुख्यसचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेंगे। इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं।
-विधेयक के पास होने के बाद दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल खत्म हो जाएगा, ये शक्तियां एलजी के जरिए केंद्र के पास चली जाएंगी।
-एनसीसीएसए की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं। अगर एनसीसीएसए और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।