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    ONOE: चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा पा रहे, वो वन नेशन-वन इलेक्शन कैसे करा पाएंगे: AAP

    By V K Shukla Edited By: Geetarjun
    Updated: Thu, 19 Sep 2024 12:54 AM (IST)

    आम आदमी पार्टी ने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा लाए जा रहे वन नेशन-वन इलेक्शन को जुमला करार दिया है। आप के राष्ट्रीय संगठन महासचिव डॉ संदीप पाठक ने कहा है कि जो लोग चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा पा रहे हैं वो वन नेशन-वन इलेक्शन कैसे करा पाएंगे? उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार पहले झारखंड और महाराष्ट्र के साथ दिल्ली का चुनाव कराकर दिखाए।

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    चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा पा रहे, वो वन नेशन-वन इलेक्शन कैसे करा पाएंगे: AAP

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी ने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा लाए जा रहे वन नेशन-वन इलेक्शन काे जुमला जताया है। आप के राष्ट्रीय संगठन महासचिव डा संदीप पाठक ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि जो लोग चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा पा रहे हैं, वो वन नेशन-वन इलेक्शन कैसे करा पाएंगे? उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि केंद्र की भाजपा सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन लाने से पहले झारखंड और महाराष्ट्र के साथ दिल्ली का चुनाव कराकर दिखाए।

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    उन्होंने यह सवाल उठाया कि अगर कोई राज्य सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा किए बिना गिर जाती है तो क्या वहां भाजपा राष्ट्रपति शासन के जरिए राज करना चाहती है? उन्होंने कहा कि सच तो यह है कि जिस तरह मोदी जी बिना किसी सलाह के नोटबंदी, जीएसटी, किसान कानून लाए थे, उसी तरह वन नेशन-वन इलेक्शन का भी मुद्दा लेकर अाए हैं

    पाठक ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वन नेशन-वन इलेक्शन भाजपा का एक और नया जुमला है। थोड़े दिन पहले चार राज्यों के चुनाव की घोषणा की जानी थी, लेकिन इन चार में से इन्होंने केवल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर का चुनाव कराया और झारखंड और महाराष्ट्र को छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा पा रही है, तो वह वन नेशन-वन इलेक्शन के तहत पूरे देश में एक साथ चुनाव कैसे कराएगी?

    पाठक ने कहा कि इस देश में छह मुख्य राजनैतिक दल हैं, करीब 57 राज्य स्तर की पार्टियां हैं और करीब तीन हजार छोटे राजनैतिक दल हैं। अगर इनमें सबकी भागीदारी नहीं होगी, तो यह लोकतंत्र कैसे चलेगा? ज्यादातर दलों से इस पर कोई सुझाव नहीं लिया गया है। अगर लिया भी गया है, तो यह वैसे ही है जैसे नोटबंदी और किसानों के लिए कानून पर सुझाव लिया गया था। इसका भी वही हश्र होगा जैसा नोटबंदी और किसानों वाले कानून का हुआ है।