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    Rajendra Nagar By Election: विधानसभा स्तर पर जितने कांग्रेसी, नहीं मिले उतने भी मत, किसी भी वरिष्ठ नेता ने नहीं दिखाई गंभीरता

    By Pradeep ChauhanEdited By:
    Updated: Mon, 27 Jun 2022 03:04 PM (IST)

    ये नेता एक-दो बार अपनी शक्ल दिखाने जरूर पहुंच गए लेकिन बस औपचारिकता निभाने। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेसियों ने पहले ही हार मान ली थी खुद ही कहते घूम रहे थे कि हम जीत तो नहीं सकते लेकिन शायद दूसरे नंबर पर ही आ जाएं।

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    राजेन्द्र नगर विधानसभा में 190 बूथ थे यानी की उसके अनुसार ही गणना करें तो आप दंग रह जाएंगे।

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। हमें तो अपनों ने ही मारा, गैरों में कहां दम था, मेरी किश्ती भी वहां डूबी, जहां पानी कम था" ... यह पंक्तियां राजेन्द्र नगर उप चुनाव में हुई कांग्रेस की दुर्गति पर पूरी तरह सटीक बैठती है। विधानसभा स्तर पर पार्टी के जितने पदाधिकारी, सदस्य और कार्यकर्ता हैं, पार्टी उम्मीदवार को उतने भी मत नहीं मिले। शायद ही पार्टी में किसी वरिष्ठ नेता ने इस उप चुनाव को लेकर कोई गंभीरता दिखाई हो।

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    कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमलता को इस उप चुनाव में सिर्फ 2014 मत मिले हैं। प्रत्याशी की जमानत भी जब्त हो गई। जब्तउपचुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। हार इतनी बुरी है कि इसका चिंतन भी नहीं किया जा सकता है। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि प्रचार में भी कोई बड़ा नेता नजर नहीं आया।

    इस चुनाव में कांग्रेस का मत फीसद तीन से भी कम हो गया है। विचारणीय यह कि यह भी एक विधानसभा में जिला, ब्लाक और सदस्य मिलाकर कई हजार मत हो जाते हैं लेकिन कांग्रेस के खाते में तो अपनों का समर्थन भी नहीं आया। पार्टी संविधान के मुताबिक एक बूथ पर दस सदस्य होते है, राजेन्द्र नगर विधानसभा में 190 बूथ थे यानी की उसके अनुसार ही गणना करें तो आप दंग रह जाएंगे।

    जानकारी तो यहां तक सामने आई है कि कितने ही बूथों पर कांग्रेस का बस्ता लगाने वाला तक कोई नहीं था। कांग्रेस के लिए मेज-कुर्सियां तक नहीं मिली। सूत्रों का कहना है कि बस्ता लगाने के लिए भी दिल्ली के दूसरे क्षेत्र से कार्यकर्ता पहुंचे थे।

    दिलचस्प तथ्य यह भी है कि यह विधानसभा, नई दिल्ली लोकसभा के अंतर्गत आता है। नई दिल्ली लोकसभा वरिष्ठ नेता अजय माकन का क्षेत्र है, लेकिन उनका प्रभाव भी यहां नहीं दिखा। क्षेत्र के पूर्व विधायक रमाकांत गोस्वामी भी फेल रहे। इसके अलावा वरिष्ठ नेता ब्रह्म यादव, एआईसीसी सचिव मनीष चतरथ जैसे नेता भी इसी राजेन्द्र नगर विधानसभा में रहते हैं, लेकिन वह भी कोई छाप नहीं छोड़ पाए। महिला कांग्रेस, यूथ कांग्रेस, सेवा दल व एनएसयूआई के नेता और कार्यकर्ता भी बेमानी रहे।

    प्रदेश कांग्रेस के मीडिया सेल के चेयरमैन अनिल भारद्वाज ने एक वीडियो जारी कर सफाई दी है कि हमने चुनाव गंभीरता से लड़ा, लेकिन जो हालात दिख रहे हैं, उससे तो लगता है कि यही काम नहीं हुआ। वैसे वह चुनाव की हार की समीक्षा करने की बात कर रहे हैं, लेकिन उस समीक्षा से हासिल क्या होगा, यह समझ से परे है। दिल्ली में अब संगठन जीरो हो चुका है।

    अन्य बड़े नेताओं की तो बात ही छोड़िए, प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी भी इस चुनाव से लगभग गायब ही रहे। इस पूरे चुनाव में वरिष्ठ नेताओं का आभाव पूरी तरह खटका। ये नेता एक-दो बार अपनी शक्ल दिखाने जरूर पहुंच गए, लेकिन बस औपचारिकता निभाने। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेसियों ने पहले ही हार मान ली थी, खुद ही कहते घूम रहे थे कि हम जीत तो नहीं सकते, लेकिन शायद दूसरे नंबर पर ही आ जाएं।

    अब चुनाव के बाद अनिल चौधरी के खिलाफ एक बार फिर आवाज उठने लगी है। असंतुष्ट कांग्रेसी फिर चौधरी को पद से हटाए जाने की मांग करबरहे हैं। असंतुष्टों का कहना है कि इस हार की समूची जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष को लेनी होगी और उन्हें पद से इस्तीफा भी अवश्य देना चाहिए। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महासचिव ओमप्रकाश बिधूड़ी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि इस हार के बाद प्रदेश के सभी पदाधिकारियों को बर्खास्त कर देना चाहिए। आखिर पार्टी और कितने रसातल में जाएगी।