Brain Stroke Treatment: अब ब्रेन स्ट्रोक का इलाज होगा सस्ता, Delhi AIIMS में नए स्टेंट रिट्रीवर का ट्रायल हुआ शुरू
दिल्ली एम्स में ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में एक नए स्टेंट रिट्रीवर का ट्रायल शुरू हो गया है। इस तकनीक से अब तक दो मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका है। यह ट्रायल देश के 16 अस्पतालों में चल रहा है। इस स्टेंट रिट्रीवर की कीमत मौजूदा स्टेंट रिट्रीवर की तुलना में एक चौथाई है जिससे इलाज की लागत में काफी कमी आ सकती है।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। एम्स में ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में अत्याधुनिक नए स्टेंट रिट्रीवर का ट्रायल शुरू हो गया है। इसके इस्तेमाल से एम्स में अब तक ब्रेन स्ट्रोक के दो मरीजों का इलाज हो चुका है। एम्स सहित देश के 16 अस्पतालों में यह ग्रासरूट (ग्रेविटी स्टेंट रिट्रीवर सिस्टम फार रिपरफ्यूजन ऑफ लार्ज वेसल आक्लूजन स्ट्रोक ट्रायल) चल रहा है। यह सोमवार को एम्स के न्यूरो सेंटर के प्रमुख डॉ. शैलेश गायकवाड़ ने बताया।
10 महीने में हुआ 120 मरीजों का इलाज
उन्होंने बताया कि यह ट्रायल सफल होने पर मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत यह स्टेंट रिट्रीवर देश में ही तैयार हो सकता है। आज उपलब्ध अन्य स्टेंट रिट्रीवर की तुलना में यह एक चौथाई कीमत में उपलब्ध होगा।
ऐसे में इलाज तीन-चौथाई तक सस्ता हो सकता है। थाइलैंड, चीन और पाकिस्तान सहित कुछ देशों में इसका सफल ट्रायल हो चुका है और 10 माह में 120 मरीजों का इससे इलाज हो चुका है।
देश में हर वर्ष करीब 17 लाख लोग होते हैं स्ट्रोक से पीड़ित
भारत में हर वर्ष करीब 17 लाख लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। जिसमें से 3.75 लाख मरीज के मस्तिष्क की धमनियों से स्टेंट रिट्रीवर के जरिये खून का थक्का निकाल कर इलाज किया जा सकता है, लेकिन करीब 4,500 मरीजों को ही यह सुविधा मिल पाती है।
मौजूदा समय में उपलब्ध स्टेंट रिट्रीवर की कीमत 1.75 लाख है। देश में अभी यह नहीं बनता है। भारतीयों की नसों का आकार भी छोटा होता है। इसलिए ट्रायल का पहला उद्देश्य यह देखना है कि भारतीय मरीजों इलाज में यह सुरक्षित और असरदार है या नहीं।
मरीज के मस्तिष्क की धमनी से निकाला गया खून का थक्का
दूसरा उद्देश्य भारत में इस डिवाइस को तैयार करना है। इस ट्रायल के तहत 25 अगस्त को एम्स में 58 वर्ष के पुरुष मरीज के मस्तिष्क की धमनी से नए स्टेंट रिट्रीवर की मदद से खून का थक्का निकाला गया। उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है। एक अन्य बुजुर्ग मरीज को इस तकनीक से इलाज किया गया है।
एम्स के न्यूरोलजी विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. दिप्ती विभा ने कहा कि स्ट्रोक के एक-तिहाई मरीजों की जान को खतरा होता है। एक-तिहाई में दिव्यांगता हो जाती है और सिर्फ एक तिहाई मरीज ही ठीक हो पाते हैं। एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर पंडित ने बताया कि इलाज का खर्च मरीजों के इलाज के आड़े आता है।
ब्रेन स्ट्रोक होने पर 24 घंटे के अंदर करनी होती है थ्रोम्बेक्टोमी
स्ट्रोक के मरीजों की जांघ की धमनियों के रास्ते स्टेंट रिट्रीवर डालकर मस्तिष्क की धमनी से खून का थक्का बाहर निकाल लिया जाता है। इससे मस्तिष्क में दोबारा रक्त संचार शुरू हो जाती है।
यदि मरीज के मस्तिष्क को ज्यादा नुकसान न हुआ तो स्ट्रोक होने के 24 घंटे के अंदर ही यह प्रोसीजर किया जा सकता है। एम्स में अब तक करीब 400 मरीजों का इस तकनीक से इलाज हो चुका है। 70 से 80 प्रतिशत मरीज ठीक हो चुके हैं।
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