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    दिल्ली में 37 में से सिर्फ 12 एसटीपी ही मानक पर खरे, बाकी बहा रहे हैं खराब पानी

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 11:41 PM (IST)

    दिल्ली में जनसंख्या वृद्धि के साथ पेयजल उपलब्धता चुनौतीपूर्ण है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का पानी मानकों के अनुरूप न होने और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण नालों में बह रहा है जिससे सिंचाई जैसे कार्यों में पेयजल का उपयोग हो रहा है। एसटीपी के पानी का उपयोग करके पेयजल की उपलब्धता बढ़ाने और भूजल दोहन को रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

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    ओखला स्थित एसटीपी प्लांट। फोटो : विपिन शर्मा

    संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में बढ़ रही जनसंख्या के अनुरूप पेयजल उपलपब्ध कराने की चुनौती है। दूसरी तरफ सीवरेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) का पानी नालों में बहाया जा रहा है, क्योंकि न तो उपचारित पानी मानक के अनुरूप है और न गैर पेयजल कार्य में इसके उपयोग के लिए आधारभूत ढांचा तैयार हो सका है। इस कारण सिंचाई, निर्माण कार्य, सफाई, सड़कों पर छिड़काव के लिए पेजयल का उपयोग किया जा रहा है। एसटीपी के पानी का उपयोग कर पेयजल की उपलब्धता बढ़ाने के साथ ही भूजल दोहन भी रोका जा सकता है।

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    गंगाजल लेने का प्रस्ताव तैयार किया

    दिल्ली में प्रतिदिन 792 मिलियन गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) सीवेज निकलता है। इसमें से 650 एमजीटी एसटीपी में उपचारित होता है। इस उपचारित पानी में से मात्र 110 एमजीडी का उपयोग पार्कों की सिंचाई व अन्य कार्य में हो रहा है।

    पूर्व के वर्षों में उपचारित पानी के उपयोग की घोषणाएं तो हुई लेकिन जमीन पर काम नहीं हुआ। वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए 140 एमजीडी उपचारिच पानी देकर इतनी ही मात्रा में गंगाजल लेने का प्रस्ताव तैयार किया गया था।

    इसे लेकर अधिकारियों के स्तर पर बातचीत हुई थी, लेकिन परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी। अब फिर से इस दिशा में प्रयास शुरू हुआ है। उत्तर प्रदेश को आगरा नहर के माध्यम से 100 एमजीडी उपचारित जल देकर उसके बदले में 50 एमजीडी गंगाजल लेने का प्रस्ताव तैयार किया गया है।

    एनजीटी ने 2017 का दिया था लक्ष्य

    एसटीपी के उपचारित जल के उपयोग नहीं होने का एक बड़ा कारण इसकी खराब गुणवत्ता है।एनजीटी ने वर्ष 2015 में दिल्ली जल बोर्ड को दिसंबर 2017 तक सभी एसटीपी के उन्नयन का आदेश दिया था। उसके बाद 18 एसटीपी के उन्नयन का प्रस्ताव तैयार हुआ था, लेकिन अब तक यह काम पूरा नहीं हुआ है।

    दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार अभी भी 37 में से मात्र 12 एसटीपी मानक के अनुरुप काम कर रहे हैं। अधिकांश एसटीपी के उपचारित पानी में मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण (फेकल कोलीफार्म) की मात्रा बहुत अधिक है।

    जल बोर्ड के आग्रह पर काम पूरा

    निर्धारित मानक के अनुसार एसटीपी से उपचारित पानी का फेकल कोलीफार्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 230 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए।

    सिर्फ 13 एसटीपी में इस मानक के अनुसार शोधित हो रहा है। अधिकांश में जैव रसायन आक्सीजन मांग (बीओडी), रासायनिक आक्सीजन मांग (सीओडी), कुल निलंबित ठोस (टीएसएस) की मात्रा भी मानक से अधिक है।

    एसटीपी के मानक के अनुरूप काम नहीं करने पर पिछले वर्ष नवंबर में दिल्ली हाई कोर्ट ने चिंता जताई थी। जल बोर्ड के आग्रह पर एनजीटी कई बार उन्नयन का काम पूरा करने की तिथि बढ़ा चुका है।

    उन्नयन कार्य की स्थिति

    जल बोर्ड का दावा है कि रिठाला फेज-2, कोंडली फेज-4, रोहिणी सेक्टर-25, नरेला, नजफगढ़, कोरोनेशन पिलर फेज-1, फेज-2 व फेज-3 , पप्पनकलां, निलोठी, केशवपुर फेज-2 व फेज 3 एसटीपी का काम पूरा हो गया है। ओखला फेज-5, घिटोरनी, वसंत कुंज, यमुना विहार फेज-1, केशवपुर फेज-1 और यमुना विहार फेज-3 एसटीपी का उन्नयन कार्य अगले वर्ष दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

    उन्नयन कार्य में लगे थे भ्रष्टाचार के आरोप

    जल बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि फंड की कमी बड़ी समस्या रही है। पिछले वर्षों में जल बोर्ड पर एसटीपी उन्नयन सहित कई कामों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उसके बाद वित्त विभाग ने फंड रोक दिए थे। कुछ मामलों में बोलीकर्ता नहीं मिलने के कारण निविदा शर्तों में संशोधन करने और अन्य तकनीकी कारणों से भी विलंब हुआ। अब नई सरकार ने इसके लिए फंड आवंटित किए हैं। इससे काम में तेजी आई है।

    यमुना का प्रवाह बढ़ाने की तैयारी

    यमुना का प्रवाह बढ़ाने के लिए तीन एसटीपी से लगभग 1250 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) पानी नदी में डालने का प्रस्ताव तिया गया है। कोरोनेशन पिलर, यमुना विहार और ओखला एसटीपी का पानी यमुना में डाला जाएगा। इसके लिए अगले वर्ष सितंबर तक आधारभूत ढांचा तैयार किया जाना है।

    भूजल स्तर सुधारने का प्रयास

    दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व सदस्य आरएस त्यागी का कहना है कि गैर पेयजल कार्य के लिए एसटीपी का पानी अनिवार्य किया जाना चाहिए। बोरवेल पर भी प्रतिबंध आवश्यक है। अभी सरकारी विभाग व गैर सरकारी संस्थान पेयजल का या फिर भूजल का दोहन करते हैं। एनजीटी ने उपचारित पानी के उपयोग के लिए पार्कों व अन्य आवश्यक स्थानों तक पाइप लाइन बिछाने को कहा था जिसका पालन नहीं हुआ। तालाब व झील में एसटीपी का पानी डालकर भूजल स्तर भी सुधारा जा सकता है।

    90 करोड़ की योजना को मंजूरी

    जल मंत्री प्रवेश वर्मा का कहना है कि एसटीपी के उपचारित पानी के उपयोग के लिए जल बोर्ड की बैठक में 90 करोड़ की योजना को मंजूरी दी गई है। इसके अंतर्गत एसटीपी से पार्कों तक पाइप लाइन बिछाई जाएगी। पाइप लाइन बिछाने के लिए 90 स्थानों की पहचान की गई है। एसटीपी का उन्नयन कार्य चल रहा है। इनसे उपचारित पानी में बीओडी का स्तर 10 से कम लाना है। पहले के मानक के अनुसार बीओडी का स्तर 30 रहता था।

    • एसटीपी की संख्या-37
    • तय मानक के अनुसार उन्नयन किया गया-27
    • तय मानक के अनुसार उन्नयन किया जा रहा है-10
    • सीवरेज उत्पत्ति-792 एमजीडी
    • सीवरेज शोधन क्षमता-764 एमजीडी
    • सीवरेज शोधन की स्थिति-650 एमजीडी
    • अनुपचारित सीवरेज-142 एमजीडी

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