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    पहले मां ने कराया अपनी बेटी का यौन शोषण, फिर विरोध करने पर उसे पीटा... हाईकोर्ट ने नहीं दी कोई राहत

    Updated: Mon, 29 Sep 2025 08:49 PM (IST)

    नई दिल्ली में एक मां ने अपनी नाबालिग बेटी का यौन शोषण होने दिया और विरोध करने पर उसे पीटा भी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में दोषी मां को निचली अदालत की 25 साल की सजा से राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि मां का कृत्य पॉक्सो अधिनियम के तहत उकसाने के समान है।

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    नई दिल्ली में, एक मां ने अपनी नाबालिग बेटी का यौन शोषण होने दिया। फाइल फोटो

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक माँ ने अपनी नाबालिग बेटी की ज़िंदगी बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने न सिर्फ़ अपनी बेटी का यौन शोषण होने दिया, बल्कि उसके साथ शारीरिक उत्पीड़न भी किया। अपनी ही बेटी के साथ हुए इस व्यवहार को देखते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दोषी माँ को निचली अदालत की सजा से कोई राहत देने से इनकार कर दिया।

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    निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 25 साल के कठोर कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए, न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक माँ का अपनी नाबालिग बेटी के बारे में चुप रहना और एक आरोपी को उसका यौन शोषण और उत्पीड़न करने देना, पॉक्सो अधिनियम की धारा 17 के तहत उकसाने के समान है।

    निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली दोषी महिला की याचिका को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि महिला ने जानबूझकर किसी भी अधिकारी या अन्य को मामले की सूचना नहीं दी। पीठ ने कहा कि पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसकी मां को दुर्व्यवहार की पूरी जानकारी थी, लेकिन हस्तक्षेप करने के बजाय, जब उसने आरोपी का विरोध किया तो उसने उसे डांटा और पीटा।

    पीठ ने कहा कि उपरोक्त तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि अपीलकर्ता माँ न केवल अपनी बेटी की रक्षा करने के अपने कर्तव्य में विफल रही, बल्कि सह-आरोपी आलोक यादव के कृत्यों में सक्रिय रूप से सहायता और प्रोत्साहन भी दिया।

    इस मामले में, पीड़िता के पिता ने एक लिखित शिकायत दर्ज कराई और प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि उनकी पत्नी की सहायता से उनकी बेटी का बार-बार यौन शोषण किया गया। अपनी 11 वर्षीय नाबालिग बेटी के यौन उत्पीड़न में कथित रूप से सहायता करने के लिए माँ की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, अदालत ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए, महिला को दी गई सजा पर विचार करने में कोई नरमी उचित नहीं है।

    यह है मामला

    याचिका के अनुसार, दोषी अपीलकर्ता अपने पति और बेटी के साथ अगस्त 2017 में नौकरी की तलाश में दिल्ली आई थी। वहां उनकी मुलाकात आलोक यादव नामक व्यक्ति से हुई। जिसने उसे और उसके पति को नौकरी दिलाने में मदद की। कुछ समय बाद, जब पीड़िता घर लौटी, तो आलोक और आरोपी महिला ने उस पर वापस लौटने का दबाव डाला। पीड़िता के पिता ने उसकी मां से उसे वापस भेजने के लिए कहा।

    दिल्ली लौटने से इनकार करते हुए, पीड़िता ने अपनी दादी को पूरी घटना बताई। उसने बताया कि जब उसके पिता काम पर होते थे, तो आलोक और उसकी मां साथ सोते थे, और उसे भी वहीं सुला दिया जाता था।

    इस दौरान आलोक उसका यौन शोषण करता था। जब वह विरोध करती, तो उसकी माँ उसे पीटती और जान से मारने की धमकी देती। पीड़िता के बयान और उसके पिता की शिकायत के आधार पर, पुलिस ने जनवरी 2020 में एक प्राथमिकी दर्ज की।