अब मलबे से बनाई जाएंगी राजधानी दिल्ली की सड़कें, CRRI के वैज्ञानिक नई तकनीक से इसे बनाएंगे उपयोगी
दिल्ली में निर्माण और तोड़फोड़ से निकलने वाले मलबे की समस्या को दूर करने के लिए केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) जियोसेल तकनीक का उपयोग करके सड़कों के निर्माण में इस मलबे का इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सड़कें मजबूत और टिकाऊ होंगी। दिल्ली में मलबे से ईंटें बनाने वाले प्लांटों से निकलने वाले अनुपयोगी मलबे का भी उपयोग करने की योजना।

वीके शुक्ला, नई दिल्ली। सीएंडडी वेस्ट यानी निर्माण और तोड़फोड़ से निकलने वाले मलबे के उपयोग के लिए प्लांट लगना जरूर शुरू हुए हैं, मगर यह मलबा अभी भी दिल्ली जैसे शहरों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है।
इस मलबे का सड़क निर्माण के लिए इस्तेमाल करने काे लेकरं केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) अध्ययन कर रहा है। आने वाले समय में मलबे को जियोसेल तकनीक के तहत उपयोग किए जाने की याेजना है।
विशेषज्ञों काे इस तकनीक से सड़कों के मजबूत और टिकाऊ होने की उम्मीद है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन भवन निर्माण और ताेड़फोड़ ने औसतन रोजाना तीन हजार 448 टन मलबा निकलता है।
यानी सालभर में 12 लाख 58 हजार 520 टन मलबा दिल्ली में निकलता है। यह समस्या देश के कर भाग में बनी हुई है। इस मलबे काे उपयोगी बनाने के लिए अब प्लांट लगने शुरू हुए हैं, मगर इनकी संख्या अभी बहुत कम है।
दिल्ली में भी अब इस मलबे की उपयोग को लेकर दो प्लांट लगे हुए हैं, जहां पर मलबे से ईंटें आदि अन्य चीजें बनाई जा रही हैं। इन प्लांट में भी बड़े स्तर पर अनुपयोगी मलबा तैयार होता है जिसका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
सीआरआरआई अब इस मलबे को भी उपयोगी बनाने की तैयारी में है। सीआरआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. गगनदीप कहते हैं कि इस अनुपयोगी मलबे के उपयोग काे लेकर आसानी यह है यह पिसा हुआ मलबा है।
जिसे सीमेंट की उचित मात्रा के साथ जियोसेल तकनीक से उपयोग किया जा सकता है। इस तकनीक से बनने वाली सड़कें मजबूत और टिकाऊ साबित हो सकती हैं।
किस तरह बनेंगी मलबे से सड़कें
सीआइआरआई अनुपयोगी प्लास्टिक को प्लांट के माध्यम से जियोसेल तैयार करती है। जियाेसेल प्लास्टिक की नौ इंच चौड़ाई वाली वह परत है जिसे सड़क बनाने से पहले बिछाया जाता है। इस तकनीक से छोटे छोटे बाॅक्स बनते जाते हैं।
इन बाॅक्स में मलबे से तैयार की गई सामग्री भरी जाएगी। जियोसेल की परत को भरे जाने के बाद सड़क बनाने के लिए ऊपर से कोलतार मिक्स रोड़ी की दो परत डाली जाएंगी। इस तरह सड़क का निर्माण किया जाएगा।
शहरों में इस तकनीक को अधिक उपयोगी माना जा रहा
दिल्ली जैसे शहरों में जहां पर जलभराव एक बड़ी समस्या है ऐसे शहरों में इस तकनीक को अधिक उपयोगी माना जा रहा है। क्योंकि पानी भरने पर भी ऐसी सड़के नहीं टूटती हैं और उन पर बड़े-बड़े गड्ढे नहीं होते हैं।
इस तकनीक का फायदा यह है कि सड़क में नुकसान होने पर केवल ऊपरी परत पर कोलतार मिक्स रोड़ी की परत ही खराब होती है और सड़क अच्छी हालत में बनी रहती है। इस तकनीक से सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे होने से बचा जा सकता है।
मलबे का सड़कों के बनाने में बेहतर उपयोग किया जा सकता है। हम लोग इस पर अध्ययन कर रहे हैं। जियोसेल के माध्यम से इस मलबे का उपयोग किए जाने की योजना है।
- डाॅ. अंबिका बहल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीआरआरआई
मलबा तो समस्या है ही, मलबे के प्लांट से बड़े स्तर पर ऐसा मलबा बच जाता है कि अनुपयोगी होता, वह भी एक समस्या है। ऐसे मलबे के उपयोग को लेकर कोशिश से चल रही है। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जियोसेल के माध्यम से मलबे का उपयोग कर सकते हैं। इसके सड़क पर प्रयोग काे लेकर कुछ संगठनों से बात चल रही है।
- गगनदीप, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीआरआरआई
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