Delhi Floods: यमुना भूमि पर अतिक्रमण, निर्माण और गाद से बाढ़ का खतरा बढ़ा, संसदीय समिति ने जताई चिंता
यमुना नदी में गाद और अतिक्रमण के कारण दिल्ली में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। 1978 की तुलना में नदी की जल-धारण क्षमता आधी रह गई है। हथिनी कुंड से पानी कम समय में पहुंच रहा है क्योंकि नदी क्षेत्र में अतिक्रमण और गाद जमा है। संसदीय समिति ने अवैध खनन और मलबा डालने पर चिंता जताई है।

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। हथनी कुंड से सितंबर, 1978 में आठ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था दिल्ली में लोहा पुल के पास यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर पहुंचा था। वहीं, जुलाई, 2023 में मात्र 3.59 क्यूसेक पानी छोड़े जाने से जलस्तर 208.66 मीटर और इस बार 3.29 क्यूसेक पानी छोड़ने से जलस्तर 204.88 मीटर तक पहुंच गया।
इससे स्पष्ट है कि 1978 की तुलना में यमुना की जल-धारण क्षमता मात्र 50 प्रतिशत रह गई है। इसका मुख्य कारण नदी डूब क्षेत्र में अतिक्रमण व निर्माण और इसकी तलहटी पर गाद जमना है। दिल्ली सरकार सहित केंद्र सरकार द्वारा गठित समितियों की रिपोर्ट में इसे लेकर चिंता जताई गई है। इसके बाद भी समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। अभी भी यमुना खादर में निर्माण कार्य के साथ ही मलबा डाला जा रहा है।
केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली से लगभग 180 किलोमीटर दूर हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथनी कुंड बैराज से छोड़ा जाने वाला पानी पहले की तुलना में अब कम समय में पहुंचता है। इसका मुख्य कारण नदी क्षेत्र में अतिक्रमण व गाद है। पहले नदी का पानी अधिक विस्तृत क्षेत्र से होकर गुजरता था जिससे उसकी गति धीमी रहती थी।
अब बहाव क्षेत्र की चौड़ाई कम होने से इसकी गति बढ़ गई है। एक तो हथनी कुंड से छोड़ा गया पानी कम समय में पहुंच रहा है। नदी से गाद नहीं निकाले जाने से सिग्नेचर ब्रिज, आइटीओ बैराज, यमुना बैंक सहित कई स्थानों पर रेत के टीले बन गए हैं। इससे नदी का बहाव बाधित हो रहा है।
यमुना नदी की सफाई और इसके तल प्रबंधन स्थायी समिति की फरवरी, 2024 को संसद में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में भी इसे लेकर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार अवैध खनन व मलबा डालने से स्थिति खराब हो रही है। समिति का कहना था कि पांच वर्षों में हरियाणा में रेत खनन के 3792 मामले दर्ज किए गए।
अत्यधिक रेत खनन से नदी तल में परिवर्तन होता है जिससे नदी के मार्ग प्रभावित होते हैं और तट का कटाव होता है। अवैध रेत खनन को रोकने के लिए यमुना बेसिन राज्यों को समन्वय बढ़ाने के साथ ही अतिक्रमण, मलबा डंपिंग और रेत खनन पर प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने के लिए एक पोर्टल बनाने का भी सुझाव दिया गया था।
समिति ने पाया था कि यमुना में मलबा डालने के मामले बढ़े हैं। रिपोर्ट में इस समस्या को दूर करने के लिए नियम तैयार करने और नदी दल से मलबा निकालने के लिए नियंत्रित ड्रेजिंग (मलबा व गाद निकालने के लिए खोदाई) की संभावना तलाशने के सुझाव दिए गए थे। इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाए गए हैं।
यही कारण है कि खनन व मलबा डालने की समस्या अभी भी बनी हुई है। इसे लेकर कुछ माह पहले हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। उसके बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री ने अवैध खनन रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर समन्वय बढ़ाने का आग्रह किया था।
यमुना खादर क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं रूक रहा है। सरकारी निर्माण भी तेजी से हो रहा है। दिल्ली में लगभग 22 किलोमीटर के क्षेत्र में यमुना पर तीन बैराज व 20 पुल बना दिए गए। इससे भी नदी का प्रवाह बाधित होता है। खादर क्षेत्र में सड़कें बनाई गई। पुल बनाने व अन्य निर्माण करते समय निर्माण सामग्री पहुंचाने के लिए बहाव क्षेत्र को बाधित कर रास्ता बनाया जाता है। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उसे छोड़ दिया जाता है। बहाव बाधित होने से नदी के तल पर गाद जमने की समस्या बढ़ रही है। कई स्थानों पर रेत के टीले बन गए हैं। यदि इसी तरह से नदी के प्राकृतिक बहाव को बाधित किया जाता रहा तो दिल्ली में बाढ़ की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। - साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (संड्रप) के समन्वयक बीएस रावत
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