सोसायटियों में 50% गीले कचरे का निपटान जरूरी: मेयर
दिल्ली में सोसायटियों और कॉलोनियों को 50% गीले कचरे का निपटान स्वयं करना होगा। पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि इससे लैंडफिल साइटों पर कचरा कम होगा। महाप ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में सोसायटियों और कॉलोनियों के पास 50 प्रतिशत गीले कचरे का निपटान करना जरूरी है। इससे यह कचरा लैंडफिल साइटों तक पहुंचने से रुक जाएगा। यह बात पर्यावरण विशेषज्ञों ने सतत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए परिवर्तनकारी दृष्टिकोण विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में कही।
इस सम्मेलन में महापौर राजा इकबाल सिंह, पश्चिमी दिल्ली की जिला अधिकारी एवं शहर सदर पहाड़गंज जोन की पूर्व उपायुक्त वंदना राव, भारत प्रदूषण नियंत्रण संघ (आइपीसीए) के संस्थापक एवं निदेशक आशीष जैन और उपनिदेशक डॉ. राधा गोयल समेत कई अन्य विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया।
सम्मेलन में महापौर ने कहा कि दिल्ली की आबादी तीन करोड़ है। इसके तहत प्रतिदिन कुल 11,500 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। इसमें से करीब सात हजार मीट्रिक टन कचरे का निगम प्रोसेस करता है। जबकि चार हजार मीट्रिक टन कचरा तीनों लैंडफिल साइटों पर पहुंचता है।
मौजूदा हालात को देखते हुए दिल्ली में सोसायटियों और कॉलोनियों में कचरे का मौके पर ही निपटान किया जाना बेहद जरूरी है। सोसायटियों में गीले कचरे का 50 प्रतिशत निपटान किया जाना जरूरी है। इससे कूड़े को खत्म करने और उसे लैंडफिल साइट तक ले जाने की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी।
जीरो वेस्ट कॉलोनियों से एक साल में 300 मीट्रिक टन कूड़ा प्रोसेस
आशीष जैन ने बताया कि नगर निगम के साथ मिलकर दिल्ली में अब तक करीब एक हजार कॉलोनियों को जीरो वेस्ट कॉलोनियों में बदला जा चुका है। इसके जरिए सोसायटी से निकलने वाले कूड़े को प्रोसेस करने में मदद मिली है। अब इन सभी जीरो वेस्ट कॉलोनियों से एक साल में 300 मीट्रिक टन कूड़ा प्रोसेस किया जा रहा है।
ठोस कूड़ा उत्पादकों की पहचान जरूरी
सम्मेलन में विशेषज्ञों ने दिल्ली में प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े को कम करने के लिए बल्क वेस्ट जनरेटर की पहचान करने की बात भी कही। नगर निगम ने विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का पंजीकरण शुरू कर दिया है, जो प्रतिदिन सौ किलो या उससे अधिक कूड़ा पैदा कर रहे हैं।
ऐसे ठोस कूड़ा उत्पादकों (बल्क वेस्ट जनरेटर) को निगम के समक्ष पंजीकरण कराना होगा। इस विषय पर आशीष जैन ने कहा कि पांच हजार वर्ग किलोमीटर तक की सोसायटी और कॉलोनियों को भी ठोस कूड़ा उत्पादकों की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। साथ ही दिल्ली में ठोस कूड़ा उत्पादकों की पहचान करना भी जरूरी है। ताकि दिल्ली के हर क्षेत्र से निकलने वाले कूड़े की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सके।

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