दिल्ली में तय सीमा से दोगुना पहुंचा Noise Pollution, कांवड़ के दौरान डीजे-लाउडस्पीकरों पर नहीं लगी लगाम
दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण का स्तर पिछले कुछ दिनों से काफ़ी बढ़ गया है। दिल्ली पुलिस को 350 से ज़्यादा शिकायतें मिलीं। डीपीसीसी के अनुसार शाहदरा में ध्वनि का स्तर सबसे ज़्यादा पाया गया जो तय सीमा से काफ़ी ऊपर था। अन्य इलाकों में भी प्रदूषण का स्तर अधिक रहा। आरडब्ल्यूए ने पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाए और नियमों के उल्लंघन की बात कही।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी के कई हिस्सों में पिछले कुछ दिनों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर तय सीमा से ज्यादा रहा है।
आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली पुलिस को पिछले छह दिनों में विभिन्न स्थानों से शोर और यातायात व्यवधान से संबंधित 350 से ज्यादा शिकायतें मिली हैं। यह अवधि कांवड़ यात्रा के दौरान रही, जो 11 जुलाई से शुरू होकर बुधवार को समाप्त हुई।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों के अनुसार, शाहदरा में मंगलवार सुबह छह बजे से रात 10 बजे के बीच 87.5 डेसिबल का उच्चतम औसत ध्वनि स्तर दर्ज किया गया। यह आवासीय क्षेत्रों के लिए दिन के समय की वैध सीमा से 30 डेसिबल से ज्यादा है।
रात में, स्थिति और खराब हो गई। रात 10 बजे से सुबह छह बजे के बीच, इसी इलाके में 85 डेसिबल ध्वनि स्तर दर्ज किया गया, जो तय मानक 45 डेसिबल से लगभग दोगुना है।
अन्य प्रभावित स्थानों में विवेक विहार (66.6 डीबी), कर्णी सिंह शूटिंग रेंज (75.6 डीबी), नेशनल स्टेडियम (72.5 डीबी), करोल बाग (71.6 डीबी) और पूसा (69.6 डीबी) शामिल थे। ये सभी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्धारित ध्वनि मानदंडों का उल्लंघन करते थे।
शहर में डीपीसीसी के 31 ध्वनि निगरानी केंद्रों में से, जिनमें से 23 इस सप्ताह सक्रिय थे, 17 ने ध्वनि स्तर कानूनी सीमा से ऊपर दर्ज किया, जिनमें उत्तर-पूर्वी, मध्य और पश्चिमी दिल्ली के केंद्र भी शामिल हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि इस मौसम में कुछ इलाकों में धार्मिक गतिविधियों के कारण ध्वनि प्रदूषण होता है, लेकिन यह अस्थायी होता है और कुछ दिनों तक ही सीमित रहता है। हालांकि, स्थानीय निवासियों ने इसका असर बहुत ज्यादा महसूस किया।
इस बीच, दिल्ली में 2,500 से ज़्यादा आरडब्ल्यूए की शीर्ष संस्था, यूनाइटेड रेजिडेंट्स ज्वाइंट एक्शन के प्रमुख अतुल गोयल ने इस दौरान पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाए।
गोयल ने कहा, "इससे पता चलता है कि ध्वनि प्रदूषण के नियम सिर्फ कागजों पर ही हैं। किसी भी अन्य आयोजन में रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकर बंद कर दिए जाते हैं।
लेकिन इस मामले में तो इन्हें देर रात तक सड़क के बीचों-बीच बजाया जा रहा था। यात्रा जुलूस बिना लाउडस्पीकर के भी निकल सकते हैं, और पुलिस इसे आसानी से नियंत्रित कर सकती थी।"
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