'लंबे समय तक पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनना तलाक के लिए होगा अतिरिक्त आधार', दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में कहा कि लंबे समय तक शारीरिक संबंध न बनना भी तलाक का आधार हो सकता है। कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए महिला की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने क्रूरता के आरोपों को सही मानते हुए विवाह को भंग करने के फैसले को सही ठहराया।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। तलाक देने के मामले में पारिवारिक निर्णय को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि दोनाें पक्षों के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध नहीं बनने को तलाक याचिका पर फैसला करते समय एक अतिरिक्त आधार के रूप में माना जा सकता है।
निर्णय को चुनौती देने वाली महिला की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने यह भी माना कि पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर क्रूरता के आरोपों को सिद्ध मानते हुए पारिवारिक अदालत ने सही ढंग से विवाह को भंग किया है। अदालत ने टिप्पणी की कि मानसिक क्रूरता के साथ शारीरिक क्रूरता की कई घटनाओं से दोनों के बीच कटु संबंध साबित हुए हैं। ऐसे में उक्त आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई अधार नहीं है।
दोनों पक्ष 12 साल से अधिक समय से अलग रह रहे
रितेश बब्बर बनाम किरण बब्बर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का पीठ ने हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने उक्त निर्णय में माना था कि दोनों पक्ष 12 साल से अधिक समय से अलग रह रहे हैं और अब उनके दोबारा मिलने की काेई संभावना नहीं है। ऐसे में वैवाहिक स्थिति को बनाये रखने से कोई लाभ नहीं होगा। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में भी दोनों पक्ष 10 साल से अधिक समय से एक-दूसरे से अलग रहे हैं और उनके बीच किसी तरह का कोई संबंध नहीं है।
सिर्फ जिरह के आधार पर पारिवारिक अदालत के निर्णय सुनने के महिला के दावे को भी अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि अदालत ने महिला की चिकित्सकीय स्थिति को चिकित्सा दस्तावेज के आधार पर निराधार ठहराया था।
2014 से दाेनों के बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं रहा
अदालत ने यह भी रिकॉर्ड पर लिया कि महिला ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया था कि 2014-15 से दाेनों के बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं रहा है और वे 2016 से तलाक याचिका पर मुकदमा लड़ रहे थे। साथ ही महिला द्वारा गिलास और मोबाइल फोन फेंकने और चाकू निकालने के रूप में क्रूरता के आरोप लगे थे, लेकिन पति के इन आरोपों का खंडन करने के लिए महिला की तरफ से कोई जिरह नहीं की गई थी।
महिला व व्यक्ति की सिख रीति-रिवाज से 28 मार्च 2011 में शादी हुई थी और दोनों ही यह दूसरी शादी थी। हालांकि, उन्हें काेई बच्चा नहीं है। दिसंबर 2016 में व्यक्ति ने क्रूरता के आधार पर महिला से तलाक की मांग को लेकर याचिका दायर की।
व्यक्ति का आरोप था कि महिला का व्यवहार उग्र था और व वैवाहिक संबंध बनाने में इच्छुक नहीं थी। यह भी आरोप लगाया कि महिला ने पैसे न देने पर उसे व उसके परिवार को झूठे मामले में फंसाने की धमकी भी दी थी। हालांकि, महिला ने सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि उनके बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।