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    उम्र के आधार पर वाहनों पर प्रतिबंध सही नहीं, ईंधन व उत्सर्जन मानकों में सुधार की जरूरत; एक्सपर्ट ने दिए सुझाव

    सीएसई ने उम्र के आधार पर वाहनों को हटाने का समर्थन नहीं किया है बल्कि ईंधन और उत्सर्जन मानकों में सुधार का सुझाव दिया है। सीएसई ने प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था को सुधारने की वकालत की है। ग्रीन एक्टिविस्ट भावरीन कंधारी ने नो-फ्यूल पाॅलिसी को परेशान करने वाली बताया है। सीएसई ने उम्रदराज वाहनों के लिए मानक तय करने और पीयूसी सिस्टम को सुदृढ़ करने का सुझाव दिया है।

    By Kushagra Mishra Edited By: Kushagra Mishra Updated: Fri, 04 Jul 2025 10:00 PM (IST)
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    उम्र के आधार पर वाहनों पर प्रतिबंध को विशेषज्ञ भी नहीं मानते सही। फोटो: जागरण

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : राजधानी में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के वास्तविक कारणों पर वैज्ञानिकों और पर्यावरण नीति विशेषज्ञों के बीच बहस तेज हो गई है।

    दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर सेंटर फाॅर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने कहा कि वह उम्र के आधार पर वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की सिफारिश नहीं करता हैं। ईंधन व उत्सर्जन मानकों में सुधार करने की सलाह दी है।

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    IIT Delhi और दिल्ली टेक्नोलाॅजी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के साथ सीएसई के विशेषज्ञों ने पीयूसी व्यवस्था में सुधार की वकालत की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़क पर वाहनों का रखरखाव ठीक से हो।

    ईंधन और उत्सर्जन मानकों में सुधार की सिफारिश की: सुनीता

    सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि स्वच्छ हवा के अधिकार पर अपने दशकों लंबे अभियान में, सीएसई ने कभी भी पुराने वाहनों को बंद करने की सिफारिश नहीं की है।

    इसके बजाय, हमने वाहनों के लिए ईंधन और उत्सर्जन मानकों में सुधार की सिफारिश की है। इसमें 1990 के दशक के मध्य में बीएस-0 से लेकर 2020 में बीएस-6 की शुरुआत तक शामिल है।

    हालांकि, कुछ अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि वाहन की आयु उच्च उत्सर्जन की संभावना पर एक निर्णायक कारक है। सीएसई ने कहा, यह सही है कि गाड़ियां जिसमें निजी गाड़ियां भी शामिल है हवा को काफी अधिक प्रदूषित कर रही हैं।

    सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने की बात की

    इसी वजह से हम हमेशा सार्वजनिक परिवहन और मोबिलिटी सिस्टम को मजबूत करने की बात हमेशा करते रहे हैं। निजी गाड़ियों को कम करने के लिए पार्किंग रेट बढ़ाने, पार्किंग मैनेजमेंट एरिया प्लान बनाने जरूरी है।

    उन्होंने कहा कि गाड़ियों को स्क्रैप करने और उसकी फ्लीट रिन्यूल का सुझाव कमर्शियल वाहनों जैसे ट्रक आदि पर सही है। लेकिन इसमें भी कमर्शियल वाहन मालिक को अपनी गाड़ी बदलने पर इंसेटिव आदि दिया जाना चाहिए।

    आईआईटी दिल्ली में परिवहन अनुसंधान और इंजरी प्रिवेंशन सेंटर की सहायक प्रोफेसर दीप्ति जैन ने कहा कि किसी वाहन का टेल-पाइप उत्सर्जन वाहन की आयु, मेक, माॅडल, चलाए गए किमी और फिटनेस पर निर्भर करता है।

    उन्होंने कहा कि यदि वार्षिक औसत किमी अधिक है तो कोई यह उम्मीद कर सकता है कि प्रति किमी औसत उत्सर्जन नए वाहनों की तुलना में अधिक होगा। उन्होंने कहा कि उत्सर्जन करने वाले वाहनों को छोड़ने के लिए आयु एक मानक बन जाती है।

    जैन ने कहा कि समस्या यह है कि वाहनों के लिए एक आधार रेखा निर्धारित की जानी चाहिए। पीयूसी सर्टिफिकेट प्राप्त करना मुश्किल नहीं है, साथ ही फिटनेस प्रमाणपत्र भी।

    नो-फ्यूल पाॅलिसी ''परेशान करने वाली''

    ग्रीन एक्टिविस्ट भावरीन कंधारी का कहना है कि नो-फ्यूल पाॅलिसी ''परेशान करने वाली'' है। यह पालिसी लोगों को पुरानी कारों को स्क्रैप करने और नई खरीदने के लिए प्रोत्साहित करती है।

    इससे सड़क पर वाहनों की कुल संख्या बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा कि स्वच्छ हवा नए वाहनों से नहीं आएगी बल्कि यह कम वाहनों से आएगी।

    उन्होंने कहा, इसका मतलब है कि प्राइवेट कार पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित करना है। कंधारी ने कहा कि उम्र आधारित प्रतिबंध वास्तविक दुनिया के उत्सर्जन को अनदेखा करते हैं।

    एक पुरानी अच्छी तरह से रखरखाव की गई कार नए, खराब रखरखाव वाले वाहनों की तुलना में कम उत्सर्जन कर सकती है।

    सीएसई की ओर से दिए गए सुझाव

    • राज्य और राष्ट्रीय नीति के आधार पर उम्रदराज वाहनों के लिए तय किए जाएं मानक।
    • ऑटोमेटेड और एडवांस्ड व्हीकल टेंस्टिग सिस्टम और वाहनों की पहचान कर अनफिट करार दें।
    • गाड़ी कितना प्रदूषण कर रही है, इसके लिए रिमोट सेंसिग माॅनीटरिंग अपनाई जाए।
    • वाहनों को फेजआउट करने के लिए इंसेंटिव और डिसइंसेटिव दिए जाएं।
    • पीयूसी सिस्टम सुद्ढ़ हो और इसका एनफोर्समेंट भी प्रभावी हो।
    • दिल्ली समेत सभी राज्य अनफिट और उम्र पूरी कर चुके वाहनों की सूची जारी करें।
    • अनफिट व उम्र पूरी कर चुके वाहनों की जांच को बने ऑटोमेटेड टेस्टिंग सेंटर

    शाम को वाहनों की औसत रफ्तार हो जाती है कम

    ट्रैफिक जाम भी राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता को खराब करने का कारण बनता है। सीएसई के डेटा से पता चला है कि शाम 5 से रात 9 बजे के बीच ट्रैफिक की औसत रफ्तार 15 किमी प्रति घंटे तक कम हो जाती है।

    जबकि लगभग इसी समय, एनओ2 का स्तर दोपहर 12 से सायं 4 बजे के बीच, जब ट्रैफिक की औसत रफ्तार 21 किमी प्रति घंटा होती है, की तुलना में 2.3 गुना ज्यादा होता है।