दिल्ली में कबूतरों की बढ़ती संख्या से खतरों पर एमसीडी ने उठाया कदम, पशु चिकित्सा विभाग को दिया निर्देश
दिल्ली में कबूतरों की बढ़ती आबादी और उनसे फैलने वाली बीमारियों के मद्देनजर एमसीडी ने पशु चिकित्सा विभाग को नियंत्रण के लिए निर्देशित किया है। दैनिक जागरण ने इस मुद्दे पर विशेष अभियान चलाया था जिसके बाद एमसीडी ने यह कदम उठाया है। विशेषज्ञों ने कबूतरों से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में भी बताया है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली: जन स्वास्थ्य विभाग और एमसीडी ने पशु चिकित्सा विभाग को दिल्ली में कबूतरों की आबादी नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया है।
कबूतरों की बढ़ती आबादी से समस्याओं और उनके नियंत्रण की आवश्यकताओं को लेकर दैनिक जागरण ने चार से नौ जून तक विशेष अभियान भी चलाया है।
ऐसे में एमसीडी ने कबूतरों की आबादी नियंत्रित करने व जन स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए पशु चिकित्सा विभाग को आठ जुलाई को पत्र भेजकर निर्देश दिया है।
पत्र में कहा गया है कि अनधिकृत विक्रेता सार्वजनिक स्थानों पर अनाज बेचकर कबूतरों को दाना खिलाने को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो रही है।
पक्षी और प्रकृति विज्ञानी डाॅ. फैय्याज कुद्दसर का कहना है कि अंधविश्वास से देखा-देखी बढ़ी इस आदत से दिल्ली में कबूतरों की संख्या लगातार बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि कबूतर शहरी जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी अनियंत्रित आबादी मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए चुनौती बनती जा रही है। इस पर नियंत्रण आवश्यक है।
मानव स्वास्थ्य को नुकसान
फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनोलाजिस्ट डाॅ. राहुल शर्मा बताते हैं कि कबूतरों की बढ़ती संख्या, खासकर शहरी क्षेत्रों में कई स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत बढ़ा रही है। यह श्वसन संबंधी रोग का कारण बन रहे हैं।
कबूतरों की बीट और पंखों से निकलने वाली धूल में फंगल और बैक्टीरिया होते हैं, उनकी सूखी बीट हवा में मिलकर महीन कण बनाती है, जो सांस के जरिये फेफड़ों में पहुंच जाती है।
इससे हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस जिसे "पिजन ब्रीडर्स लंग" जैसी गंभीर बीमारी होती है, जो फेफड़ों की सूजन पैदा कर देता है।
कोरोना जैसे लक्षण वाली ‘सिटाकोसिस’ जैसी बीमारी से बैक्टीरियल इन्फेक्शन बुखार, सिरदर्द और निमोनिया होता है।
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