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    'पाकिस्तान का बजट भारत के कचरा बाजार के बराबर', गिरिराज सिंह ने कसा तंज

    By sanjeev Gupta Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Wed, 18 Jun 2025 10:50 PM (IST)

    केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि भारत में 50-60% कचरा सिंथेटिक है जिसकी रीसाइक्लिंग पर ध्यान देना होगा। प्लास्टिक कचरे का बाजार 50 अरब डॉलर तक ज ...और पढ़ें

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    केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि भारत में 50-60% कचरा सिंथेटिक है। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम तथा कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि दुनिया का करीब 70 फीसदी कचरा सिंथेटिक है, जबकि भारत में यह आंकड़ा अभी भी 50 से 60 फीसदी के बीच है।

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    उन्होंने जोर देकर कहा कि कपास जैसे जैविक कपड़ों को रिसाइकिल करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन सिंथेटिक कचरे की रिसाइकिलिंग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। मंत्री ने यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में प्लास्टिक कचरे का बाजार 50 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पाकिस्तान जैसे देश के पूरे सालाना बजट से भी ज्यादा है।

    उन्होंने कहा, "हमारे कचरे में वह ताकत है कि हम उसे 'सोना' में बदल सकते हैं।" वे यहां भारत मंडपम में आयोजित चार दिवसीय 'प्लास्टिक रिसाइकिलिंग एवं स्थिरता पर दूसरे वैश्विक सम्मेलन (जीसीपीआरएस)' के लिए आए थे। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्लास्टिक निर्माता संघ के गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन अरविंद डी. मेहता और आयोजन समिति के अन्य सदस्य भी मौजूद थे।

    गिरिराज सिंह ने कहा कि भारत ने प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करने के प्रति उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितनी दिखानी चाहिए थी, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसे एक बड़े अवसर के रूप में देखें। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक स्तर पर निर्यात किए जाने वाले वस्त्रों की जांच भी इस आधार पर की जाती है कि उनमें कितने प्रतिशत सामग्री रिसाइकिल और संधारणीय है।

    बुधवार को अपने दौरे के दौरान उन्होंने कई स्थानीय विनिर्माण इकाइयों का निरीक्षण किया और इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि जो मशीनें पहले विदेशों से आयात की जाती थीं, वे अब महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य राज्यों में बनाई जा रही हैं।

    उन्होंने इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि केवल बोतलें ही प्लास्टिक कचरे का स्रोत हैं। मंत्री ने कहा कि अब लोग बोतलें उठा रहे हैं, कुछ जगहों पर इनका आयात भी होने लगा है। "असली चुनौती उन प्लास्टिक उत्पादों की है जो सूक्ष्म स्तर (माइक्रोन) पर हैं और खुले में फैले हुए हैं।"

    उन्होंने बताया कि देश के कई गांव और शहर प्लास्टिक कचरे से भरे पड़े हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए व्यापक नीति और नवाचार की आवश्यकता है। मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय जूट आधारित पॉलिमर पर भी काम कर रहा है और बायो-पॉलिमर की नई संभावनाओं को तलाशने के लिए गन्ना, बांस और लकड़ी के चूरे से नए मिश्रण विकसित किए जा रहे हैं।

    उन्होंने कहा, "जिस दिन सड़क पर पड़ा हर कूड़ा 'सोने' के बराबर हो जाएगा, कोई भी उसे उठाने से नहीं चूकेगा। हमें ऐसे समाधान की जरूरत है जो लाभदायक होने के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी टिकाऊ हों।"