Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नौ साल बाद कोर्ट ने दिया रेप केस को झूठा करार, महिला के खिलाफ चलेगा मुकदमा

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 11:25 PM (IST)

    कड़कड़डूमा कोर्ट ने नौ साल पुराने बलात्कार के मामले को झूठा करार देते हुए आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने आरोप लगाने वाली महिला पर झूठी गवाही देने के आरोप में कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया है। महिला को जुर्माने के साथ सात साल तक की जेल हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय की राह कठिन करते हैं।

    Hero Image
    महिला के खिलाफ चलेगा मुकदमा। फाइल फोटो

    आशीष गुप्ता, पूर्वी दिल्ली। नौ साल पुराने बलात्कार के मामले को झूठा करार देते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया। साथ ही, आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ झूठी गवाही देने और झूठा मामला दर्ज कराने के आरोप में कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। महिला को जुर्माने के अलावा सात साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप न केवल एक निर्दोष व्यक्ति को मानसिक आघात और सामाजिक कलंक सहने के लिए मजबूर करते हैं, बल्कि वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय की राह भी कठिन बनाते हैं।

    पांडव नगर स्थित एक कंपनी में कार्यरत महिला कर्मचारी ने अप्रैल 2016 में मंडावली थाने में कंपनी के मालिक पर बलात्कार और धमकी देने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी।

    महिला ने आरोप लगाया था कि 8 फरवरी 2016 को जब वह ऑफिस में अकेली थी, तो कंपनी के मालिक ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा। एक महीने बाद, 8 मार्च को, आरोपी ने ऑफिस में उसके साथ जबरन बलात्कार किया और उसे शादी का आश्वासन दिया।

    महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि 26 मार्च 2016 को आरोपी उसे अपने परिवार से मिलवाने के बहाने पटना ले गया और उसके पहचान पत्र पर रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में कमरा लेकर उसके साथ दोबारा बलात्कार किया।

    दिल्ली लौटने पर आरोपी ने उसे और उसकी बेटी को जान से मारने की धमकी दी। इस मामले में कंपनी मालिक को गिरफ्तार किया गया था, वह लगभग 15 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रहा। फिर उसे जमानत मिल गई। जुलाई 2017 में कंपनी मालिक के खिलाफ आरोप तय किए गए।

    आरोपी कंपनी मालिक की ओर से अधिवक्ता महेश शर्मा ने महिला पर जबरन वसूली के लिए झूठा मुकदमा दर्ज कराने का आरोप लगाया। अभियोजन पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक रविकांत कुमार सत्यार्थी ने पक्ष रखा।

    मुकदमे के दौरान इस मामले में 16 लोगों की गवाही हुई। अदालत के आदेशानुसार, महिला की मेडिकल जाँच में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई। अभियोजन पक्ष की ओर से पेश गवाहों ने कहा कि पटना स्थित कार्यालय और होटल में बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई थी।

    अदालत ने पाया कि महिला ने पटना के होटल में हुए बलात्कार की कोई शिकायत स्थानीय पुलिस थाने और न ही दिल्ली लौटने पर आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को दी। घर लौटने के बाद वह कई दिनों तक चुप रही।

    फिर 4 अप्रैल, 2016 को उसने मंडावली थाने में एफआईआर दर्ज कराई। ऐसे में गवाहों के बयानों से साफ है कि दफ्तर और पटना में कोई घटना नहीं हुई। महिला का दावा था कि उसने पहले भी शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे पुलिस ने लौटा दिया था।

    इसका कोई रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया। इसके साथ ही, महिला के बयानों में कई विरोधाभास भी सामने आए। अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिया गया उसका बयान और अदालत में कही गई बातें मेल नहीं खातीं।

    अदालत ने टिप्पणी की कि हमारे सामाजिक परिवेश में, भले ही बरी होने का फैसला मामला बंद कर दे, लेकिन आरोप का अपमान अक्सर बना रहता है। क्योंकि समाज फैसले से ज़्यादा आरोप को याद रखता है। खासकर झूठे आरोपों के ऐसे मामलों में, प्रतिष्ठा पर लगा दाग गहरा और स्थायी होता है। कोई भी न्यायिक फैसला इसे पूरी तरह से मिटा नहीं सकता।