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    साफ हवा के मामले में दिल्ली का बुरा हाल, देश के 48 शहरों के स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में 32वां स्थान

    Updated: Tue, 09 Sep 2025 09:40 PM (IST)

    केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत दिल्ली को 48 शहरों में 32वीं रैंक दी है। नौ मानकों पर आधारित इस रैंकिंग मे ...और पढ़ें

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    जमीन पर हुए नहीं काम, कैसे सुधरे दिल्ली की हवा का हाल।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। देश की राजधानी में श्रेय लेने की भले होड़ लगी रहती हो, पहले आप तो अब भाजपा सरकार पीछे नहीं रहती हो, लेकिन पर्यावरण सुधार के मामले में खुद ही अपनी पीठ थपथपाती रहने वाली दिल्ली सरकार को केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने आईना दिखा दिया है।

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    दिल्ली शीर्ष दस में कहीं नहीं है। मंत्रालय द्वारा की गई 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की रैंकिंग में दिल्ली को 48 में से 32वां रैंक मिला है। हैरत की बात यह कि जिन नौ मानकों के आधार पर यह रैंकिंग की गई है।

    उनमें से ज्यादातर में दिल्ली कहीं नहीं ठहरती है। इस रैंकिंग से सरकार और स्थानीय निकायों सहित अधिकारियों की उदासीनता एवं अकर्मण्यता भी स्वत: सामने आ जाती है।

    इन बिंदुओं पर तय की गई रैंकिंग

    • शुरू से अंत तक पक्की सड़कें बनाना
    • मशीनों से सफाई को बढ़ावा देना
    • पुराने कचरे का जैविक उपचार
    • सी एंड डी और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
    • कूड़ाघर की भूमि पर नगर वाटिका का निर्माण
    • हरित पट्टी विकास
    • स्मार्ट यातायात प्रबंधन प्रणाली
    • मियांवाकी पौधारोपण
    • उद्योगों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग

    इन नौ बिंदुओं पर दिल्ली की सच्चाई

    • दिल्ली में छोटी बड़ी मिलाकर करीब 16,200 किमी सड़कें हैं। इनमें ज्यादातर सड़कें सालों से नहीं बनी हैं। इसीलिए टूटी पड़ी हैं। सड़़कों के किनारे भी काफी जगह धूल उड़ती रहती है।
    • दिल्ली की सड़कों पर यांत्रिक सफाई के लिए लगभग 300 मशीनों की आवश्यकता है, लेकिन एमसीडी, दिल्ली कैंट, एनडीएमसी और पीडब्ल्यूडी सभी के पास मिलाकर भी करीब 60 के आसपास हैं।
    • किसी भी लैंडफिल साइट पर आज तक कूड़े के पहाड़ ही कम नहीं हो पाए, उनकी जमीन का जैविक उपचार होना तो बहुत दूर की बात है। हाल ही में सीपीसीबी ने इस कार्य के लिए विशेषज्ञ एजेंसियों से प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं।
    • दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की जुलाई 2025 की रिपोर्ट बताती है कि राजधानी में 11 हजार 842 टीपीडी (टन प्रतिदिन) कचरे का 61.7 प्रतिशत यानी सात हजार 307 टीपीडी कचरे का ही प्रबंधन किया जा रहा है। जबकि चार हजार 534 टीपीडी यानी 38.3 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसे लैंडफिल साइट पर डाला जा रहा है।
    • लैंडफिल साइटों पर कूड़ा कम हो तो इस दिशा में काम हो। कांग्रेस सरकार के शासन काल में भलस्वा लैंडफिल साइट पर इसकी पहल हुई थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद फिर वही हालात हो गए।
    • हरित पट्टी विकास को लेकर बातें तो बहुत होती रही हैं, योजनाएं भी बनती हैं, लेकिन इसके नाम पर भी खानापूर्ति ही अधिक होती है। कहीं झाड़ियां रोप दी जाती हैं तो रोपे गए पौधों की सुध ही नहीं ली जाती।
    • स्मार्ट यातायात प्रबंधन प्रणाली का आलम यह है कि जगह जगह ब्लिंकर खराब पड़े रहते हैं। आंधी-वर्षा में कई जगह ट्रैफिक सिग्नल काम करना बंद कर देते हैं। बहुत से चौराहों पर आज भी सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं।
    • मियांवाकी पौधारोपण की विधि से लगाए गए पौधे पारंपरिक विधियों की तुलना में बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं, जिससे कम समय में ही सघन वन तैयार हो जाता है। लेकिन इस तकनीक पर भी गंभीरता से काम नहीं हो पा रहा है।
    • राजधानी में 32 अधिकृत औद्योगिक क्षेत्र हैं। इनमें स्वच्छ ईंधन के तौर पर पीएनजी या बिजली का प्रयोग हो रहा है। लेकिन अनधिकृत रूप से चल रही औद्योगिक इकाइयों पर किसी का नियंत्रण नहीं है।

    बहुनिकाय व्यवस्था समस्या की जड़

    दिल्ली में बहुनिकाय व्यवस्था है। दिल्ली सरकार, एमसीडी, एनडीएमसी, दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड, लोक निर्माण विभाग इत्यादि। इनमें आपसी सामंजस्य न होने के चलते भी सुधार की कोई व्यवस्था कारगर नहीं हो पाती।

    प्रदूषण नियंत्रण निधि के उपयोग में भी पिछड़ रही दिल्ली

    राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की निगरानी कर रही केंद्रीय समिति ने प्रदूषण नियंत्रण निधि के उपयोग में पिछड़ रही दिल्ली को तत्काल सुधारात्मक उपाय करने का निर्देश दिया है।

    यह निर्णय एनसीएपी के तहत क्रियान्वयन समिति (आईसी) की 18वीं बैठक में लिया गया, जो पिछले माह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अध्यक्ष की अध्यक्षता में हुई थी।

    बैठक के विवरण के अनुसार समिति ने कहा कि सभी क्रियान्वयन एजेंसियों को निधि के उपयोग में तेजी लानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह अनुपात 75 प्रतिशत से कम न हो।

    एनसीएपी के अंतर्गत शामिल शहरों में से 82 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सीधे वित्त पोषण प्राप्त होता है, जबकि दस लाख से अधिक आबादी वाले 48 शहरों और शहरी समूहों को 15वें वित्त आयोग के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली ने 32.65 प्रतिशत राशि का ही उपयोग किया है।

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