जनता की पुकार... गड्ढे कब भरोगे सरकार, मुंबई की तर्ज पर बने कंक्रीट की सड़कें; हैरान कर देगी पूरी रिपोर्ट
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सड़कों की बदहाली एक गंभीर समस्या है जहाँ गड्ढों के कारण यातायात बाधित होता है और दुर्घटनाएं होती हैं। अधिकारियों के बीच सीमा विवाद और जिम्मेदारी से बचने के प्रयासों से मरम्मत कार्य बाधित होता है। मानसून के दौरान जलभराव की समस्या और सीवर की क्षमता में कमी के कारण सड़कें और भी खराब हो जाती हैं।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अब बरसात आने वाली है, सड़कों के गड्ढे बाद में ठीक होंगे, लो अब मानसून आ गया तो भला सड़कें कैसे ही ठीक हो सकती हैं। अभी मानसून जाएगा उसके बाद सड़कें सूखेंगी कुछ समय लगेगा। टेंडर निकलेगा तब जाकर सड़कें ठीक होंगी।
सड़क में गड्ढे या गड्ढे में सड़क…बदहाली का ये क्रम एनसीआर के लगभग सभी शहरों में 12 माह में से पांच-छह माह तक चलता है। यानी हम कह सकते हैं साल के 365 दिन में से 150 से अधिक दिन सड़कें खराब हालत में रहती हैं।
इतना ही नहीं, दिल्ली सहित एनसीआर के कई शहरों में अंदर की सड़कें तो साल भर खराब रहती हैं। टूटी सड़कों के कारण यातायात पर बुरा असर पड़ता है। इन गड्ढे वाली सड़कों के कारण अक्सर हादसे भी होते हैं।
सड़कों की मरम्मत में बड़ी बाधा अधिकारियों में सीमा विवाद या जिम्मेदारी से बचने का प्रयास भी होता है, यही वजह है कि किसी सड़क की मरम्मत न होने पर किसी अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं हो पाती।
राष्ट्रीय राजधानी या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सड़कें हर समय अच्छी स्थिति में होनी चाहिए, सुंदर होनी चाहिए, इनपर हरियाली होनी चाहिए, इनके फुटपाथ एवं सेंट्रल वर्ज साफ व सुंदर होने पर वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है। आखिर इसके लिए जवाबदेही क्यों नहीं तय की जाती? क्यों इतने लंबे समय तक राजधानी जैसे क्षेत्र की सड़कें खराब रहती हैं इसी की पड़ताल हमारा आज का मुद्दा है-
मुंबई की तर्ज पर जलभराव वाले स्थानों पर कंक्रीट की बने सड़कें
दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जलभराव की समस्या कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। इसके ऊपर जितना काम होना चाहिए, नहीं हो रहा है। न तो नालों की सफाई पर जोर दिया जा रहा है और न ही नालों की क्षमता बढ़ाने के ऊपर ही ध्यान दिया जा रहा है। यही नहीं सीवर की क्षमता बढ़ाने के ऊपर भी जोर नहीं। इसका सबसे अधिक नुकसान सड़कों को हो रहा है।
वहीं, मुख्य सड़कें हों या फिर गलियों की सड़कें, सभी साल में तीन-चार महीने टूटी रहती हैं। सड़कों में गड्ढों की वजह से हादसे होते हैं। हर साल कई लोगों की मौत गड्ढों की वजह से होती है। वर्षा के कारण या फिर सीवर जाम की वजह से जलभराव के दौरान कहां पर गड्ढे हैं, इसका पता नहीं चलता है।
जलभराव की समस्या को दूर करने के साथ ही सड़कों में गड्ढे न हों, इनके ऊपर ध्यान देना होगा। सड़कों में गड्ढे के पीछे केवल जलभराव ही कारण नहीं है बल्कि वाहनों का अत्यधिक दबाव भी है। ऐसे में मुंबई की तरह ही दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जहां भी जलभराव होता है या वाहनों का दबाव अधिक है वहां पर कंक्रीट की सड़कें बनानी होंगी।
मुंबई में जलभराव की समस्या आज भी है लेकिन सड़कें नहीं टूटती हैं क्योंकि कंक्रीट की सड़कें बना दी गईं। कंक्रीट की सड़कें बनने के बाद भ्रष्टाचार की शिकायत भी दूर होगी। हर साल सड़कों की मरम्मत के लिए टेंडर किया जाता है। ऐसे में कैसे विकास की गति तेज होगी। जनता का विश्वास कैसे सिस्टम को लेकर मजबूत होगा।
जनता को लगता है कि हर साल टेंडर इसलिए किया जाता है ताकि ठेकेदारों से कमीशन का खेल चलता रहे। मानसून आने से ठीक पहले या मानसून के दौरान नालों की सफाई कराती है। इससे साफ लगता है कि सफाई के नाम पर खानापूर्ति कर जेबें भरी जाएंगी। साल में तीन बार नालों की सफाई बेहतर तरीके से होनी चाहिए। इससे ही बरसात में नालों के उफान मारने की समस्या दूर हो जाएगी।
सीवर लाइनों की सफाई पर लगातार ध्यान देना चाहिए, इससे ओवरफ्लो की समस्या काफी हद तक दूर हो जाएगी। साथ ही सिस्टम की क्षमता बढ़ाने के ऊपर भी जोर देना होगा। एक और विषय पर गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है वह है पैचवर्क। जितनी भी सड़कों के निर्माण से जुड़ी सरकार की एजेंसियां हैं, उनमें पैचवर्क के लिए टीमों का गठन किया जाए। टीमें रात में सड़कों पर राउंड लगाएंगी। जहां जिस टीम को गड्ढे दिखाई देंगे, उसे भर देगी। इससे गड्ढे बड़े नहीं होंगे।
लोगों की शिकायत है कि गड्ढों को भरने के नाम पर भी जेबें भरी जाती हैं। यह शिकायत भी दूर हो जाएगी। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह काम भी बेहतर करे और शासन की छवि भी बेहतर हो। शासन की छवि तभी बेहतर होगी जब कार्यों में पारदर्शिता आएगी। ईमानदारी से कोई भी किया जाएगा।
आम लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। रात के अंधेरे में लोग सड़क को तोड़कर काम कराते हैं। काम कराने के बाद सड़क को ठीक नहीं कराते। धीरे-धीरे पूरी सड़क टूट जाती है। यही नहीं काफी लोग पानी सड़कों पर बहाते हैं। तारकोल वाली सड़क जलभराव से टूट जाती है।
सड़कों पर पानी न बहाएं। सीवर जाम के पीछे एक बड़ा कारण उसमें कूड़ा डालना भी है। पालीथीन में कूड़ा भरकर लोग सीवर लाइन में डाल देते हैं। इससे सीवर लाइनें ओवरफ्लो हो जाती हैं। इससे गलियों की सड़कें टूट जाती हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। अपना अपनी गली, अपना गांव, अपना शहर, अपना राज्य व अपना देश समझकर जब हम काम करेंगे फिर एक ही समस्या बार-बार सामने नहीं दिखाई देगी। (बातचीत में आदित्य राज को बताया)
गड्ढे ही पहचान हैं…
एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोई ऐसी सड़क नहीं है जहां आप आराम से बगैर हिचकौलों के आराम से चल सकें। शहर के अंदर की सड़कें तो बहुत बदहाल मिलेंगी। सड़कों की स्थिति सुधारने के नाम पर बजट खूब बनते हैं लेकिन खर्च कहां होता है, वो सड़कों की हालत से पता लगता है। कई शहरों में दो साल तक हो गए हैं जहां सड़कों में गड्ढे बने हुए हैं और उन्हें भरा तक नहीं गया। लोगों को परेशानी होती है, पर कहीं सुनवाई नहीं होती।
हर स्तर पर बढ़ानी होगी निगरानी
दिल्ली देश की भी राजधानी है इसमें कोई दो राय नहीं कि पड़ोसी राज्यों से या दूसरे राज्यों से दिल्ली की सड़कें बेहतर हैं। मगर यह बात भी सही है कि दिल्ली को देश की राजधानी के हिसाब से जिस तरह सड़कों के मामले में बेहतर होना चाहिए था, कई जगह वैसे हालात नहीं हैं।
होना तो यह चाहिए था कि दूसरे राज्यों से जो लोग यहां आते हैं वह दिल्ली से प्रेरणा लेकर अपने राज्यों में जाते और दिल्ली से प्रेरणा लेकर यहां जैसी सड़कें अपने यहां बनाने की कोशिश करते। मगर ऐसा होता नहीं है आमतौर पर पिछले कुछ सालों को छोड़ दें तो यह परंपरा सी रही है कि यहां के लोग दूसरे राज्यों में यह देखने जाते थे कि वहां की व्यवस्थाएं कैसे ठीक की गई हैं।
बात चाहें किसी भी मुद्दे की हो, मैं यही कहना चाहूंगा कि दूसरों से जाकर ही नहीं सीखा जा सकता है, हम स्वयं भी सक्रिय होकर अपनी व्यवस्थाओं को ठीक का सकते हैं, बेहतर तरीके से प्रबंध कर सकते हैं उनका बेहतर तरीके से रखरखाव कर सकते हैं।
दिल्ली में दो तरीके की सड़कें दिखाई देने की बात कही जाती है, कहा जाता है कि एनडीएमसी इलाके में जाते हैं तो सड़कें अच्छी दिखाई देती हैं और जब आप इससे अलग इलाके में पहुंचे हैं तो सड़कों की दशा एकदम से अलग दिखाई देती है जो उतनी अच्छी नहीं हाेती है।
यह बात को समझना बहुत जरूरी है कि एनडीएमसी इलाका लगभग समतल इलाका है जहां पर जलभराव जैसी समस्या नहीं है या बहुत कम है, जबकि इससे अलग वह इलाका है जहां पर मानसून के दौरान अधिकतर जलभराव होता है।
वहीं, कई जगह एनडीएमसी इलाकों का पानी भी इन इलाकों में आता है। पानी सड़क पर डाले जाने वाले बुटिमिनस का दु्श्मन है, पानी भरता है तो सड़कों की मजबूती प्रभावित होती है, इससे सड़कें खराब होती हैं। मैं जब दिल्ली लोक निर्माण विभाग में था उस समय अभियंता वर्षा के दौरान सड़कों पर छाता लेकर निकलते थे, पानी की निकासी के लिए जहां पर जितने पंप कही जरूरत होती थी, उन्हें लगवाते थे, एक वैन में अतिरिक्त पंप लेकर चलते थे, कहीं पंप खराब होता था तो उसे बदला जाता था, मकसद यह रहता था कि पानी जल्द से जल्द निकल जाए कि जिससे सड़कों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
मैं यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि काम के लिए सक्रियता और निगरानी बहुत जरूरी है। जब विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सड़कों पर होते हैं तो निचला स्टाफ भी डरता है और मुस्तैदी से अपने काम में लगता है। यहां की स्थिति भी कुछ जगह ऐसी है कि मानसून के दाैरान ही नहीं कई सड़कों पर अक्सर साल में कई बार सीवर का पानी भरता है और उस इलाके के उस भाग की सड़क खराब होती है। ऐसे में एक दम से यह कह देना भी ठीक नहीं है कि सड़कों के खराब होने के लिए पूरी तरह से अभियंता जिम्मेदार हैं।
हां यह हो सकता है कि किसी भी प्वाइंट पर लापरवाही हो रही है तो उस पर निगरानी बढ़ाने की जरूरत है तो निगरानी से चीजों को ठीक किया जा सकता है। यहां एक बात और भी गौर करने वाली है कि लोक निर्माण की सड़कों पर दिल्ली की अन्य एजेंसियों की सड़कों से यातायात का दबाव बहुत अधिक है। जहां तक सुविधाओं की बात है तो लोक निर्माण विभाग हो एमसीडी की बात हो न तो इनके पास पर्यप्त कर्मचारी और न ही पर्याप्त संसाधन ही होते हैं।
वहीं, सड़कों की व्यवस्था के लिए पर्याप्त स्टाफ के साथ व्यवसाय संसाधन होने भी अत्यधिक जरूरी हैं उसके लिए पर्याप्त फंड उपलब्ध रहना चाहिए, पर्याप्त कर्मचारी पर्याप्त मरम्मत वैन रहनी चाहिए जो समय पर गड्ढों को भरें, खराब होने वाली हरियाली को ठीक कर सकें। डिवीजन स्तर पर बागवानी के लिए एक समर्पित टीम होनी चाहिए साथ ही स्ट्रीट लाइटों को ठीक करने के लिए सभी डिवीजन के पास में अपनी हाइड्रोलिक मशीन होनी चाहिए जिससे प्रतिदिन की जांच कर लाइटों को ठीक किया जा सके।
रिंग रोड को अगर आठ भागों में रखरखाव के लिए बांटा गया है तो यह अच्छा प्रयास है। सभी सड़कों की निगरानी की व्यवस्था मजबूत किया जाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इससे बहुत सी समस्याओं का जल्दी निदान हो जाता है या समस्याएं विकराल रूप नहीं ले पाती हैं। (जैसा बातचीत में वीके शुक्ला को बताया)
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