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Delhi: नाबालिग बेटी का गर्भपात कराने के लिए मांगी अनुमति, मां ने खटखटाया दिल्ली HC का दरवाजा

दिल्ली की एक महिला ने अपनी नाबालिग बेटी के गर्भपात के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। महिला ने याचिका में कहा कि धारा 19 (1) POCSO के तहत कोई भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल मामले को रिपोर्ट किए बिना गर्भपात नहीं कर सकता है।

By GeetarjunEdited By: Published: Fri, 16 Sep 2022 04:09 PM (IST)Updated: Fri, 16 Sep 2022 04:09 PM (IST)
Delhi: नाबालिग बेटी का गर्भपात कराने के लिए मांगी अनुमति, मां ने खटखटाया दिल्ली HC का दरवाजा
नाबालिग बेटी का गर्भपात कराने के लिए मांगी अनुमति, मां ने खटखटाया दिल्ली HC का दरवाजा।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। दिल्ली की एक महिला ने अपनी नाबालिग बेटी के गर्भपात के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। महिला ने याचिका में कहा कि धारा 19 (1) POCSO के तहत कोई भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल मामले को रिपोर्ट किए बिना गर्भपात नहीं कर सकता है। इसलिए महिला याचिकाकर्ता ने बताया कि वो नाबालिग बेटी की मां और कानूनी अभिभावक होने के नाते बिना रिपोर्ट किए गर्भावस्था को खत्म करना चाहती हैं, ताकि बेटी और उनका परिवार सामाजिक उत्पीड़न से बच सके।

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न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश सुब्रमोनियम प्रसाद की बेंच ने सभी उत्तरदाताओं की प्रतिक्रिया मांगी है। साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 सितंबर की तारीख तय की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसकी बेटी की उम्र 16 साल और 4 महीना है। अल्ट्रासाउंड से पता चला है कि वो 17 सप्ताह 5 दिन की गर्भवती है।

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सहमति से बने संबंध

महिला का कहना है कि यह गर्भवास्था एक सहमति और करीबी संबंध से उत्पन्न हुई है। याचिकाकर्ता मां की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अमित मिश्रा ने बताया कि महिला की बेटी भी उक्त गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती है क्योंकि वह इस बच्चे को पालने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं है। गर्भावस्था को जारी रखने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गहरा सदमा लगेगा।

बच्चे को पालने के लिए गरीब है परिवार और बेटी

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता इस बच्चे को पालने के लिए बहुत गरीब और अशिक्षित है, क्योंकि उसके कुल पांच बच्चे हैं और याचिकाकर्ता का पति नहीं है। याचिकाकर्ता घरेलू काम करती है और परिवार के पालन पोषण के लिए उनकी आय बहुत कम है।

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दलील में कहा गया है कि गर्भावस्था जारी रखने से न सिर्फ बेटी बल्कि याचिकाकर्ता और पूरे परिवार को मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। अधिवक्ता अमित मिश्रा ने कहा कि धारा 3 (2) (ए) (i) एमटीपी अधिनियम 20 सप्ताह तक गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति देता है।


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