मिरांडा हाउस ने वंशावली और स्थानीय इतिहास खोजने की परियोजना की शुरू, जानें क्या है इसका उद्देश्य
दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज ने पारिवारिक इतिहास को संरक्षित करने के लिए एक नई परियोजना शुरू की है। इसका उद्देश्य लोगों को अपनी वंशावली सामुदायिक कहानियों और स्थानीय इतिहास को दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करना है। हर साल राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी जिसमें शोध-आधारित निबंध प्रस्तुत करने होंगे। मधु किश्वर मेमोरियल ट्रस्ट इस परियोजना का समर्थन कर रहा है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हममें से कितने लोग अपने दादा-दादी से आगे के पुरखों के नाम जानते हैं। ज्यादातर लोग मुश्किल से तीन पीढ़ियों तक ही याद रख पाते हैं। यही भूलती हुई परंपरा और खोती हुई स्मृतियों को बचाने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कालेज ने शनिवार को एक अनूठी शैक्षणिक पहल की शुरुआत की है।
कालेज ने इंडिक दृष्टिकोण से इतिहास का पुनर्निर्माण नामक इस परियोजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य है लोगों को अपनी पारिवारिक वंशावली, सामुदायिक कहानियों और स्थानीय इतिहास को दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करना।
परियोजना के तहत हर साल राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। प्रतिभागियों को कम से कम पांच हजार शब्दों के शोध-आधारित निबंध प्रस्तुत करने होंगे। दो मुख्य विषय तय किए गए हैं, परिवार और समुदाय का इतिहास व मेरे गांव, कस्बे या शहर का इतिहास। इन निबंधों का मूल्यांकन इंडिक ज्ञान परंपरा से जुड़े प्रतिष्ठित विद्वानों की समिति द्वारा किया जाएगा।
इस परियोजना को मिरांडा हाउस की पूर्व छात्रा और शिक्षाविद् मधु किश्वर ने अपने माता-पिता की स्मृति में स्थापित किश्वर मेमोरियल ट्रस्ट के माध्यम से वित्तपोषित किया है। उन्होंने उद्घाटन कार्यक्रम में कहा कि जो समाज अपनी जड़ों से अनजान होता है, वह कभी प्रामाणिक राष्ट्रीय इतिहास नहीं लिख सकता। हमें अपने अतीत को फिर से पाना होगा और यही हमें भविष्य की दिशा तय करने में मदद करेगा।
उन्होंने अपने परिवार की वंशावली से जुड़े किस्से भी साझा किए और बताया कि आज की पीढ़ी अक्सर दादा-दादी से आगे के पुरखों के नाम तक याद नहीं रख पाती। यह स्थिति बताती है कि इस तरह के प्रयास कितने आवश्यक हैं।
मिरांडा हाउस की प्राचार्य प्रो. बिजयालक्ष्मी नंदा ने इसे विद्वानों और आम नागरिकों दोनों के लिए राष्ट्र निर्माण में योगदान देने का मूल्यवान अवसर बताया। उनका कहना था कि यह पहल न केवल शोधकर्ताओं के लिए, बल्कि हर नागरिक के लिए है, ताकि समाज मिलकर अपने अतीत को संजो सके।
यह कार्यक्रम केवल अकादमिक दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति इसमें भाग ले सकता है। परिवार के पुराने दस्तावेज, मौखिक परंपराएं और स्थानीय स्मृतियां मिलकर ऐसा सामूहिक इतिहास तैयार करेंगी, जो औपनिवेशिक आख्यानों का विकल्प पेश करेगा।
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