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    Microfiber Pollution News: सिंथेटिक कपड़ों से फैल रहा माइक्रोफाइबर प्रदूषण, रिपोर्ट में जन्मजात विकलांगता जैसी बीमारी का भी खतरा

    By Pradeep Kumar ChauhanEdited By:
    Updated: Thu, 04 Aug 2022 08:16 PM (IST)

    Microfiber Pollution News एक अध्ययन में कानपुर वाराणसी और हरिद्वार से एकत्र किए गए नमूनों में गंगा नदी के किनारे उच्च प्रतिशत माइक्रोफाइबर पाए गए थे। जबकि एक अन्य अध्ययन में गोवा जल उपचार संयंत्र के पानी के नमूनों में लगभग 37 प्रतिशत माइक्रोफाइबर सांद्रता पाई गई।

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    Microfiber Pollution News: माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के इस रूप पर सक्रिय शोध की आवश्यकता है।

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Microfiber Pollution News: माइक्रोफाइबर प्रदूषण में सिंथेटिक कपड़ों का बहुत बड़ा योगदान है। गैर सरकारी संगठन टाक्सिक लिंक द्वारा बुधवार को जारी किया गया "डर्टी लान्ड्री: थ्रेड्स आफ पाल्यूशन - माइक्रोफाइबर" अध्ययन बताता है कि कपड़े धोने के दौरान प्रति किलो धुले हुए कपड़े में 124 से 308 मिलीग्राम माइक्रोफाइबर निकलता है। सिंथेटिक वस्त्र दुनिया के महासागरों में प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक की वैश्विक रिलीज में लगभग 35 प्रतिशत जोड़ते हैं।

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    पालिएस्टर, ऐक्रेलिक, नायलान और अन्य जैसे सिंथेटिक सामग्री (synthetic material) से बने परिधान में प्लास्टिक होता है और विश्व स्तर पर कपड़ों की सामग्री का लगभग 60 प्रतिशत दर्शाता है। सिंथेटिक कपड़ों की धुलाई और उपयोग के दौरान निकलने वाले माइक्रोफाइबर जलाशयों में घुल जाते हैं और उन्हें प्रदूषित करते हैं।

    टाक्सिक लिंक द्वारा किए गए पहले के एक अध्ययन में, कानपुर, वाराणसी और हरिद्वार से एकत्र किए गए नमूनों में गंगा नदी के किनारे उच्च प्रतिशत माइक्रोफाइबर पाए गए थे। जबकि एक अन्य अध्ययन में, गोवा जल उपचार संयंत्र के पानी के नमूनों में लगभग 37 प्रतिशत माइक्रोफाइबर सांद्रता पाई गई।

    माइक्रोफाइबर (Microfiber) एक प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक होते हैं जिनका आकार पांच मिमी से कम होता है। पर्यावरण में प्रवेश करने वाले माइक्रोफाइबर के प्राथमिक स्रोतों में घरेलू लान्ड्रिंग, कपड़ा और टायर उद्योग, बोतलों और मछली पकड़ने के जाल सहित बड़े प्लास्टिक का विखंडन शामिल है।

    माइक्रोफाइबर प्रदूषण अपने छोटे आकार और विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में प्रवेश करने की क्षमता के कारण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बड़े स्तर प्रभावित कर सकता है। ये कण शरीर में रासायनिक लीचिंग को प्रेरित कर सकते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली और तंत्रिका तंत्र को और बाधित कर सकते हैं, जिससे जन्मजात विकलांगता (Congenital Disability) और आगे ऊतक क्षति हो सकती है।

    टाक्सिक लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश कहती हैं, “वैसे प्लास्टिक बोतलों से लेकर यार्न तक को एक बेहतरीन पर्यावरण अनुकूल विकल्प के रूप में देखा जाता है, लेकिन ये प्लास्टिक के धागे माइक्रोफाइबर प्रदूषण में भी इजाफा करते हैं।

    घर पर जिन वाशिंग मशीनों का उपयोग किया जाता है उनमें कोई निस्पंदन सिस्टम नहीं होता है जो माइक्रोफाइबर को फ़िल्टर कर सो। ऐसे में माइक्रोफाइबर आसानी से इसके माध्यम से और जल निकासी प्रणाली के माध्यम से नदियों और महासागरों तक पहुंच सकते हैं।

    उन्होंने बताया कि फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने ब्रांडों को सिंथेटिक सामग्री की उपस्थिति का उल्लेख करने के लिए अनिवार्य किया है और यह कैसे माइक्रोफाइबर प्रदूषण को कम करेगा। आगामी प्लास्टिक संधि में भी माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के इस रूप पर चर्चा और समाधान करने की संभावना है।

    हालांकि, माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के इस रूप पर सक्रिय शोध की आवश्यकता है। वहीं टाक्सिक लिंक के एसोसिएट डायरेक्टर सतीश सिन्हा ने कहा, "टेक्सटाइल वैल्यू चेन में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए प्रमुख हितधारकों को एक साथ लाना और संस्थागत तरीकों को स्थापित करना अनिवार्य है।

    " देश में प्रकृति आधारित उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कपड़ों के लिए प्राकृतिक सामग्री जैसे टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का उपयोग किया जाना चाहिए।

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