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    'हमें तो मौका ही नहीं मिला, कोर्ट का जल्दबाजी में आया फैसला', ज्ञानवापी को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष का बयान

    By Jagran News Edited By: Sonu Suman
    Updated: Fri, 02 Feb 2024 03:39 PM (IST)

    ज्ञानवापी पर मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारियों की बैठक शुक्रवार को हो रही है। यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जमीयत उलेमा ए हिंद के मुख्यालय में हो रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष सैफुल्ला रहमानी ने कहा कि ज्ञानवापी में जो हुआ इससे मुस्लिमों के साथ अमन पसंद लोगों को धक्का पहुंचा। वहीं मौलाना अरशद मदनी ने भी अपनी राय रखी।

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    ज्ञानवापी को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष का बयान।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। ज्ञानवापी पर मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारियों की बैठक शुक्रवार को हो रही है। यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जमीयत उलेमा ए हिंद के मुख्यालय में हो रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष सैफुल्ला रहमानी ने कहा कि ज्ञानवापी में जो हुआ, इससे मुस्लिमों के साथ अमन पसंद लोगों को धक्का पहुंचा। 

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    उन्होंने कहा कि यह इतिहास गढ़ा गया, कोर्ट ने जल्दबाजी में निर्णय दिया। दूसरे को कहने का मौका नहीं दिया। इससे इंसाफ पसंद लोगों के भरोसे पर चोट पहुंची है। बाबरी मस्जिद में भी कोर्ट ने माना कि मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं थी, लेकिन आस्था को देखकर एक पक्ष में फैसला कर दिया। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी फैसले पर हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। राष्ट्रपति से भी मिलने को समय मांगेंगे।

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    फैसला देने में कोर्ट में लचीलापनः मदनी

    वहीं दारुल उलूम देवबंद के वर्तमान प्राचार्य अरशद मदनी ने कहा कि मुसलमान मुल्क की आजादी के बाद इस तरह की मसाइल में घिरा हुआ है। मथुरा, संभल, ज्ञानवापी और बाबरी जैसे मस्जिद के मामले उठते रहे, लेकिन अब जिस तरह से ये मसाइल उठे हैं, उससे महसूस होता है कि कानून के आलोक में न्याय देने वाले कोर्ट में लचक और ढील पैदा हुई है, जो इबादतगाहों पर कब्जे में सहूलियत मिली है।

    उन्होंने कहा कि बाबरी ने जो रास्ता खोला कि धर्म आधारित मुकाबला होगा तो फैसला कानून आधार पर नहीं हो रहा। यह लोकल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक है। इन तमाम कानूनी किताबों पर आग लगाओ। मुल्क इससे नहीं चलेगा। इसकी जद में जैन बौद्ध, ईसाई भी आएंगे।

    एकतरफा फैसले के बाद हम कहां जाएंः मदनी

    महमूद मदनी ने कहा कि भारत की न्यायिक व्यवस्था के ऊपर बड़ा सवालिया चिन्ह लग गया है। जिस तरह से एक तरफा तरीके से जाते जाते जज ने इस तर्क का फैसला दे दिया, फिर ऊपर की अदालतें तकनीकी कारणों से दखल देने को तैयार नहीं तो दूसरा पक्ष कहां रोएगा। ऐसी परिस्थिति है कि कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें क्या न करें। बात इस तलक न जाएं की खराबी तक चला जाए, बड़े  संघर्ष से आजादी मिली है।

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