International Women's Day 2022: तूफानों से लड़ना होगा, हर कीमत पर बढ़ना होगा
भारतीय फुटबाल टीम की डिफेंडर डालिमा छिब्बर का कहना है कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में मुकाम बनाया है लेकिन अब भी उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। दरअसल अभी समानता के लिए महिलाओं को लंबा सफर तय करना है।

नई दिल्ली [सीमा झा]। ‘मुश्किलें तो जीवन में आती ही हैं लेकिन जीत उन्हें ही मिलती है जिन्हें मुश्किलों से टकराना आता है। मैं समझती हूं कि मुझे आने वाली पीढ़ियों के लिए नई इबारत लिखती है, बनानी हैं समतल राहें।’ कहती हैं भारतीय फुटबाल टीम की डिफेंडर डालिमा छिब्बर। डालिमा दिल्ली की हैं। उनके मुताबिक, चाहे महिलाओं ने हर क्षेत्र में मुकाम बनाया है लेकिन अब भी उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। दरअसल, अभी समानता के लिए महिलाओं को लंबा सफर तय करना है। यह तभी आसान हो सकता है जब उन्हें खुद पर भरोसा हो और राह में आने वाली मुश्किलों को हराने का हौसला हो। डालिमा कहती हैं, ‘मुझे शुरू से परिवार का सपोर्ट मिला है। मेरे माता पिता ने फुटबाल खेलने और इसे करियर के रूप में अपनाने में मेरा भरपूर सहयोग किया है। दिक्कत बस उस परिवेश की है जहां रहने वाले रिश्तेदारों को लगता है मैंने कुछ गलत चुन लिया है।’गलत यानी वह खेल जो पुरुष खेल सकते हैं।
महिलाओं को चोट लग सकती है। वे कमजोर होती हैं। साथ ही डालिमा के अनुसार, यदि चोटिल हो गईं और हाथ पैर टूट जाएं तो शादी में मुश्किलें आ सकती हैं। डालिमा कहती हैं, ‘मैं जानती हूं कि मेरे लिए क्या सही है। अपने भविष्य का फैसला लेने के लिए मैं परिपक्व हूं। राहें भले ही आसान नहीं हैं लेकिन मेरी नजर हमेशा मंजिल पर टिकी रहती है।’
गौरतलब है डालिमा छिब्बर नोएडा में आयोजित स्टेडफास्ट न्यूट्रीशन आयरन वुमन कैंपेन में हिस्सा लेने आई थीं। इस कार्यक्रम में डालिमा के अलावा, देश दुनिया में भारतीय झंडे को बुलंद करने वाली महिलाएं भी शामिल थीं। दरअसल, ये सभी महिलाएं उन क्षेत्रों से आती हैं जिनमें आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व रहा है। जैसे, बाडी बिल्डिंग, पावर लिफ्टिंग, फुटबाल, साइक्लिंग, फिटनेस ट्रेनर आदि। इनमें भारतीय महिला फुटबाल टीम की डिफेंडर डालिमा छिब्बर के अलावा, भारत की अग्रणी बाडीबिल्डिंग एथलीट डा. रीता जयरथ, फिजिक एथलीट और 2021 की बिकिनी बाडी बिल्डिंग चैंपियन सुरभि जायसवार और एनाटॉमी प्रोफेसर व फिजिक एथलीट डा. मृदुला सैकिया आदि शामिल थीं।
इन सभी महिलाओं ने इन क्षेत्रों से संबंधित लैंगिक रूढ़ियों को न केवल तोड़ा है बल्कि इस क्रम में अपने ही घरों व सामाजिक दायरों के दकियानूसी सोच से लड़ाई भी अपने फौलादी दम खम के बलबूते ही लड़ी है। उनके मुताबिक, ऐसा संभव हो पाया क्योंकि यह सवाल है उनके सपने का। उनके जुनून और कभी न मर मिटने वाले उनके हौसले का। वे सभी एक स्वर में कहती हैं-तूफानों में दीया जलाना आसान नहीं होता लेकिन हमने यही राह चुनी है। मुश्किलों से हमें प्यार है। क्या है उनका महिलाओं के लिए संदेश? इस पर डाक्टर रीता जयरथ कहती हैं, ‘ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने दायरों से निकलें। अपनी बेड़ियों को उतार फेंकें। वे जितना आगे आएंगी, उन्हें मालूम होगा कि उनमें पूरा दमखम है, वह भी वह कर सकती हैं जो हमने कर दिखाया है।’
एनाटामी प्रोफेसर व फिजिक एथलीट डा. मृदुला सैकिया के मुताबिक, ‘यदि आपके भीतर जुनून है तो आप अपने सपने को जाया नहीं होने देंगे। उसे अपने हाल पर नहीं छोड़ेंगे। उसे बड़ा करने के लिए हर बाधा को तोड़ देंगे। हां, मुश्किलें तो आएंगी ही, बस सामना कीजिए और आगे बढ़ते जाइए।’
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