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    Delhi News: चिकित्सा बिलों में देरी पर दिल्ली हाई कोर्ट सख्त, मानसिक उत्पीड़न का देना पड़ेगा मुआवजा

    By Vineet Tripathi Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Sun, 20 Apr 2025 05:17 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने चिकित्सा बिलों के निपटान में देरी को मानसिक उत्पीड़न का आधार माना है। अदालत ने कहा कि मरीजों और उनके परिवारों को अक्सर अस्पतालों और बीमा कंपनियों द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार को चिकित्सा बीमा दावा प्रक्रिया को सरल बनाने का निर्देश दिया है।

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    मानसिक उत्पीड़न कोई आपराधिक मामला नहीं: उच्च न्यायालय

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मेडिकल बिल निपटान प्रक्रिया के दौरान मरीजों और उनके परिजनों को परेशान किए जाने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दावा निपटान प्रक्रिया में देरी मानसिक उत्पीड़न के लिए मुआवजे की मांग का आधार हो सकती है, लेकिन यह कोई आपराधिक मामला नहीं है।

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    मरीजों के लिए ये सामान्य बात

    न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि बिलों के निपटान के दौरान मरीजों को परेशान किए जाने की ऐसी घटनाएं अनकही कहानियां नहीं हैं, बल्कि मरीजों को अक्सर इसका सामना करना पड़ता है।

    मेडिकल बीमा दावा प्रक्रिया को सरल बनाने का निर्देश देते हुए न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को इसे कारगर बनाने के लिए एक तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया ताकि मरीजों को अस्पतालों द्वारा समय पर छुट्टी देने से इनकार न किया जा सके।

    पीठ ने कहा कि केंद्र और दिल्ली दोनों सरकारों को बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) और दिल्ली और भारत की चिकित्सा परिषदों के साथ समन्वय करके प्रणाली तैयार करनी चाहिए।

    मरीजों को होने वाली परेशानी पर चिंता

    बिल-निपटान प्रक्रिया के दौरान मरीजों को होने वाली परेशानी पर चिंता जताते हुए, पीठ ने देरी और लंबी प्रक्रियाओं के लिए अस्पतालों और बीमा कंपनियों दोनों को दोषी ठहराया, जिससे मरीजों को मानसिक आघात पहुंचता है।

    पीठ ने कहा कि कई अदालतों ने एक नियामक नीति की सिफारिश की है और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा मरीजों के अधिकारों का एक चार्टर भी प्रस्तावित किया गया है, लेकिन अभी तक कोई अंतिम समाधान नहीं निकला है।

    पीठ ने उक्त टिप्पणी याचिकाकर्ता शशांक गर्ग की अपील याचिका पर की जिसमें उन्होंने सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। सत्र न्यायालय ने मई 2018 में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के प्रबंधकों के खिलाफ समन आदेश को रद्द कर दिया था।

    मरीजों से ऐसे ऐंठे लाखों रुपये

    शशांक गर्ग ने कहा था कि वर्ष 2013 में अस्पताल के पास कैशलेस बीमा योजना होने के बावजूद सर्जरी के बाद उनसे कुल 1.73 लाख रुपये वसूले गए। अस्पताल ने उनसे पूरी रकम सिक्योरिटी के तौर पर जमा करा ली और वादा किया कि बीमाकर्ता द्वारा अपना हिस्सा चुकाने के बाद यह रकम वापस कर दी जाएगी।

    याचिका के अनुसार, बीमा कंपनी द्वारा पूरा भुगतान करने का दावा करने के बावजूद अस्पताल ने कहा कि उसे कम रकम मिली है और 53 हजार रुपये की कमी को गर्ग की जमा राशि से समायोजित कर लिया।

    गर्ग ने आरोप लगाया कि ये अस्पताल प्रबंधक मरीजों को ठगने की बड़ी साजिश का हिस्सा हैं और उन्होंने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की मांग की। हालांकि अदालत ने शशांक गर्ग की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता धोखाधड़ी साबित नहीं कर सका।

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