दिल्ली से चौंकाने वाली रिपोर्ट, हर साल 5 हजार करोड़ खर्च होने पर भी MCD के ऐसे हालात
नई दिल्ली में एमसीडी की सफाई व्यवस्था चिंताजनक है। स्वच्छ सर्वेक्षण में एमसीडी को 31वां स्थान मिला। सफाई कर्मचारियों की बड़ी संख्या और भारी खर्च के बावजूद सुधार नहीं हो रहा। सार्वजनिक शौचालय खराब हैं और रिहायशी इलाकों में गंदगी है। कूड़े का निस्तारण ठीक से नहीं हो रहा और जलाशयों की सफाई भी कम है। महापौर ने अगली बार शीर्ष दस में आने का लक्ष्य रखा है।

निहाल सिंह, नई दिल्ली। देश की राजधानी का सबसे बड़ा निकाय होने पर एमसीडी को स्वच्छता के लिए जहां देश के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए वह निकाय स्वच्छ रैकिंग में शीर्ष 10 तो दूसरे शीर्ष 20 और 30 में भी शामिल नहीं हो पा रहा है। स्वच्छ सर्वेक्षण में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में एमसीडी ने 44 में 31वां स्थान प्राप्त किया।
बताया गया कि पिछले वर्ष 446 में 90वां स्थान प्राप्त किया था। जबकि 55 हजार से अधिक सफाई कर्मचारियों की फौज और पांच हजार करोड़ रुपये का सालाना का खर्च होने के बाद भी एमसीडी की स्वच्छता में स्थिति नहीं सुधर रही है।
सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति ज्यादातर उपयोग करने लायक नहीं रहती है। इतना ही नहीं रिहायशी इलाकों से लेकर बाजारों में गंदगी के ढेर मिल जाए। वैसे तो दावा सफाई का किया जाता है लेकिन बाजार जहां सुबह 10 बजे खुलते हैं 12 से एक बजे तक इन की स्थिति सफाई को लेकर बिगड़ जाती है।
वहीं, रिहायशी इलाकों में अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी झोपड़ी में सफाई तो होती है लेकिन, गंदगी करने वालों पर सख्ती न होने की वजह से सफाई ज्यादा देर टिक नहीं पाती है। दिल्ली में कचरे के लिए संवेदनशील स्थानों में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है। लोगों पर कार्रवाई न होने की वजह से लोग जहां-तहां कचरा फेंकने में थोड़ा भी हिचकिचाते नहीं है।
स्रोत पर ही जहां गीला व सूखा कूड़ा अलग-अलग होना चाहिए लेकिन यह भी बमुश्किल से 56 प्रतिशत हो पा रहा है। कूड़े के उत्पन्न होने और उसके निस्तारण में भी 50 प्रतिशत ही निगम लक्ष्य प्राप्त कर पाया है। नियोजित कालोनियों को छोड़ दे तो अनधिकृत कॉलोनियों में मौजूद डलाव घरों के बाहर कूड़ेदान भरे दिखते हैं और जगह-जगह कूड़ा फैला हुआ आसानी से नजर आ जाता है।
बेसहारा गाय जहां डलाव घरों से कूड़ा खाकर बीमार पड़ रही है और इधर-उधर कूड़ा फैलाती है। तमाम शिकायतों के बाद भी निगम इसमें कोई सुधार नहीं कर पाया है। यह पता होते हुए भी की स्वच्छ सर्वेक्षण होना है बावजूद इसके जलाशयों को साफ रखने में भी एमसीडी फिसड्डी साबित हुआ। एमसीडी के जलाशयों की सफाई सर्वेक्षण में 27 प्रतिशत ही मिली।
स्वच्छ सर्वेक्षण मार्च और अप्रैल के शुरुआती सप्ताह में हुआ। जब आप की सरकार थी। आप सरकार ने स्वच्छता से जुड़े सभी परियोजनाओं को रोके रखा था। अब भाजपा की सरकार आ गई है तो स्थायी समिति का गठन भी हो गया है। स्वच्छता से जुड़ी परियोजनाओं को मंजूर किया जा रहा है। स्वच्छता अभियान भी चलाए जा रहे हैं। हमने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगले वर्ष ऐसी तैयारी करें कि कम से कम हम शीर्ष दस में अपना स्थान बना पाए। - राजा इकबाल सिंह, महापौर, दिल्ली
रैकिंग न सुधरने के यह हैं प्रमुख कारण
- गंदगी करने वालों पर कार्रवाई करने में सख्ती न करना
- गीला-सूखा कूड़ा किए बिना उसको लेना
- सूखे कूड़े के निस्तारण की ठोस व्यवस्था न होना
- साफ-सफाई के कार्यों की ठोस निगरानी की व्यवस्था न हो
- नागरिकों की आदत सुधारने के लिए जागरुकता कार्यक्रमों का अभाव
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।