जख्मी पशु-पक्षियों को जीवनदान दे रहे मन्नू सिरसपुर, जानिए बेजुबान पक्षियों से प्रेम करने की क्या है असली वजह
सिरसपुर गांव निवासी मन्नू सिरसपुर दर्जनों पशु व पक्षियों की सेवा कर जीवनदान दे रहे हैं। जख्मी और बीमार पशु पक्षियों के इलाज से लेकर उनके खान-पान व रहने की सुविधा मन्नू अपने घर में ही करते हैं।

नई दिल्ली [सोनू राणा]। महंगाई के इस दौर में आदमी को अपना पेट पालना मुश्किल है। ऐसे समय में सिरसपुर गांव निवासी मन्नू सिरसपुर दर्जनों पशु व पक्षियों की सेवा कर जीवनदान दे रहे हैं। जख्मी और बीमार पशु, पक्षियों के इलाज से लेकर उनके खान-पान व रहने की सुविधा मन्नू अपने घर में ही करते हैं। यह सिलसिला दो-चार महीने से नहीं, ब्लकि चार वर्ष से लगातार चला आ रहा है।
मन्नू अब तक सैकड़ों पशु, पक्षियों की जान बचा चुके हैं। सांप, गवेरा, कबूतर, बाज, गाय से लेकर नीलगाय तक को उनकी वजह से जीवनदान मिल चुका है। फिलहाल 13 कुत्तों, आठ बछड़ों, चार गायों का उनके घर पर ही इलाज चल रहा है। इसके अलावा एक बाज व 15 कबूतर ऐसे हैं जो जख्मी होने की वजह से उड़ नहीं सकते हैं। उनको भी मन्नू अपने घर में ही पाल रहे हैं। इसके अलावा वह छह गाय, कोयल, खरगोश, मुर्गा-मुर्गी समेत दर्जनों पशु-पक्षियों की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने घर में ही करीब 250 गज जमीन बेसहारा पशु-पक्षियों के लिए रखी हुई है।
ऐसे शुरू हुआ पशु, पक्षियों के प्रति प्रेम
दरअसल वर्ष 2016 में इलाज ने मिलने की वजह से सड़क पर एक बेसहारा जख्मी गाय ने उनकी आंखों के सामने दम तोड़ दिया था। इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया था। इसके बाद से उन्होंने बेसहारा पशुओं की मदद करने की ठानी। उन्हें जहां भी जख्मी गाय या कोई अन्य पशु दिखता वह उसे घर लेकर आते व उसका इलाज करवाते। यहीं से उनका बेसहारा पशुओं के प्रति प्रेम बढ़ता गया। अब वह किसी जहरीले जानवर को भी मरते नहीं देख सकते। अगर आसपास किसी के घर में सांप निकलता तो वह उसे पकड़कर जंगल में छोड़ देते हैं।
बेसहारा पशुओं के लिए हैं समर्पित
26 वर्षीय मन्नू की माने तो उन्होंने अपना जीवन बेसहारा पशु-पक्षियों को समर्पित कर दिया है। मन्नू ने बताया कि उनके घर में माता-पिता, भाई-बहन सभी हैं। उनके पिता उनपर शादी करने का दबाव बनाने लगे थे, लेकिन उन्होंने शादी नहीं बेसहारा पशुओं की सेवा करनी थी। इसलिए वह अपने घर में ही अलग रहने लगे। वह माता-पिता की भरपूर सेवा तो करते हैं, लेकिन खाना बाहर ही खाते हैं।
जख्मी पशुओं की सेवा के लिए खुद खरीदी एंबुलेंस
अब जब कहीं भी कोई जख्मी पशु-पक्षी मिलता है तो आसपास के लोग मन्नू को सूचना देते हैं। वह अपने सहयोगियों के साथ एंबुलेंस लेकर वहां पहुंचते हैं । इसके साथ ही पीड़ित को उठाकर अपने घर लेकर आते हैं। मन्नू ने बताया कि पहले जब भी कहीं पर कोई गाय आदि जख्मी मिलती थी तो एंबुलेंस चालक दो हजार से तीन हजार रुपये की मांग करते थे। इसलिए उन्होंने खुद ही एंबुलेंस खरीदने की तैयारी की। पहले उन्होंने अपनी बाइक बेची, लेकिन फिर भी पैसे पूरे नहीं हुए तो कुछ पशु प्रेमियों की मदद से उन्होंने आखिरकार एंबुलेंस खरीद ही ली। मन्नू आजीविका के लिए लिबासपुर में मोबाइल स्पेयर पार्ट्स की दुकान चलाते हैं। इससे जो भी आमदनी होती है उसे वह बेसहारा पशुओं सेवा में लगाते हैं।
पिंजरा खोलने पर भी नहीं भागते पक्षी
मन्नू ने घर में पक्षियों के लिए पिंजरे भी बनवा रखे हैं। खास बात तो यह है कि पिंजरा खोलने के बाद भी यह पक्षी भागते नहीं है, बल्कि मिलजुलकर साथ रहते हैं। वहीं पशुओं के इलाज के लिए डाक्टर भी उनसे आधी फीस लेते हैं। इसके अलावा वह पशु, पक्षियों के खाने पीने के लिए दूध, सब्जी, रोटी व चारे का भी खुद ही इंतजाम करते हैं।
पालिथीन खाने से ज्यादा गायों की होती है मौत
मन्नू ने बताया कि वह पहले गोरक्षक दल के साथ जुड़े थे। धीरे-धीरे जब वह गायों की सेवा करने लगे तो उन्हें पता चला कि जितनी गायों का कत्ल नहीं किया जाता, उससे ज्यादा तो भूख, पालिथीन खाने से या सड़कों पर वाहनों की चपेट में आने से मर जाती हैं।
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