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मनीष सिसोदिया बोले- पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है नई शिक्षा नीति

मनीष सिसोदिया ने कहा कि फिलहाल आरटीई के तहत आठवीं तक शिक्षा फ्री है जिसे 12वीं तक बढ़ाया जाना चाहिए था।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 12:13 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 12:13 PM (IST)
मनीष सिसोदिया बोले- पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है नई शिक्षा नीति
मनीष सिसोदिया बोले- पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है नई शिक्षा नीति

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर दिल्ली सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा 'नई नीति हाईली रेगुलेटेड और पुअरली फंडेड है।' उन्होंने कहा है कि इसमें अत्यधिक नियम और निरीक्षण की व्यवस्था है, जबकि फंडिंग का ठोस इंतजाम नहीं है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि नई नीति में राज्य स्तर पर एक शिक्षा विभाग, एक निदेशालय, एक रेगुलेटरी अथॉरिटी, एक शिक्षा आयोग, एससीईआरटी और शिक्षा बोर्ड जैसे निकाय होंगे। इतनी सारी एजेंसियां आपस में उलझेंगी तो शिक्षा का काम कैसे होगा। मनीष सिसोदिया ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का 6 फीसद खर्च करने की बात कही गई है। यह बात 1966 से कोठारी कमीशन के समय से ही कही जा रही है, लेकिन इसको लेकर कोई कानून बनाने की बात नहीं कही गई है। इसके अलावा 12वीं तक की शिक्षा राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत लाने पर भी इस नीति में स्पष्ट नहीं कहा गया है। फिलहाल आरटीई के तहत आठवीं तक शिक्षा फ्री है जिसे 12वीं तक बढ़ाया जाना चाहिए था। इसके अलावा छह साल में बनाई गई इस शिक्षा नीति में अगर फंडिंग और कानूनी दायरे जैसे बुनियादी प्रश्न ही हल नहीं किए तो शिक्षा नीति का कार्यान्वयन मुश्किल है।

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सरकार खुद उठाए उच्चस्तरीय शिक्षा का दायित्व

मनीष सिसोदिया ने कहा कि उच्चस्तरीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना सरकार का दायित्व है, लेकिन नई शिक्षा नीति में इस जिम्मेदारी को सरकार ने खुद निभाने के बजाय निजी संस्थानों की ओर बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने भी प्राइवेट संस्थाओं को शिक्षा की दुकान करार दे चुका है। इसलिए प्राइवेट स्कूलों के बदले सरकारी शिक्षा पर जोर देना चाहिए।

पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है नई शिक्षा नीति

मनीष सिसोदिया ने कहा कि नई शिक्षा नीति पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है। इसमें सोच तो नई है पर जिन सुधारों की बात की गई है, उन्हें कैसे हासिल किया जाए, इस पर भ्रम है। उन्होंने कहा कि मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना अच्छी बात है। ये सुझाव मैंने बहुत पहले दिया था और उस वक्त भी कहा था कि सिर्फ नाम बदलना काफी नहीं होगा।

वर्तमान शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण की जरूरत

मनीष सिसोदिया ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा को औपचारिक दायरे में लाने, भोजन की व्यवस्था, बच्चों के लिए विषयों के विकल्प खोलने, मातृभाषा में शिक्षा तथा बीएड को चार साल करने को उचित कदम बताया। उन्होंने कहा कि इसमें भविष्य में बीएड शिक्षा सुधारने की बात कही गई है जोकि एक सही कदम है, लेकिन मौजूदा 80 लाख शिक्षकों को नई सोच के अनुसार अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार करने की रूपरेखा नहीं बताई गई है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के शिक्षकों को विदेशों में प्रशिक्षण दिलाया गया। ऐसा देशभर के शिक्षकों के साथ हो। मनीष सिसोदिया ने कहा कि नई शिक्षा नीति में वोकेशनल कोर्स को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है। लेकिन इस कोर्स के बच्चों का यूनिवर्सिटीज में एडमिशन नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे स्नातक की डिग्री के बाद भी सिविल सर्विसेज की परीक्षा में भी नहीं बैठ सकते हैं। इस पर भी नीति की चुप्पी अनुचित है। आज दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में क्या नए प्रयोग क्या हो रहे हैं, इस पर विचार करने में नई शिक्षा नीति पूरी तरह से विफल है।


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