'DDA की लापरवाही के कारण व्यक्ति की हुई मौत' दिल्ली HC ने की अहम टिप्पणी
Delhi Crime दिल्ली में साल 2000 में डीडीए अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल की बालकनी से गिरने के कारण एक शख्स की मौत हो गई थी। इस मामले में अहम टिप्पणी करते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण को इसके लिए कसूरवार माना है। कोर्ट ने मृतक के परिजन को जल्द से जल्द 11 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का आदेश दिया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जुलाई 2000 में डीडीए अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल की बालकनी गिरने के कारण एक व्यक्ति की मौत के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को जिम्मेदार माना है। न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि डीडीए की लापरवाही बालकनी गिरने का प्रत्यक्ष कारण थी।
अदालत ने माना कि आवंटन के बाद बुनियादी ढांचे की स्थायित्व और दीर्घायु सुनिश्चित करना डीडीए का दायित्व था। अदालत ने उक्त टिप्पणी के साथ डीडीए को मृतक के परिवार को 11 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
छह साल के भीतर उखड़ा प्लास्टर
पीड़ित परिवार झिलमिल कॉलोनी में निम्न और मध्यम आय समूहों के लिए डीडीए द्वारा विकसित बहुमंजिला परियोजना में दूसरी मंजिल के अपार्टमेंट में रह रहा था। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि संपत्ति का निर्माण घटिया सामग्री से किया गया था और निर्माण के पांच से छह साल के भीतर इसका प्लास्टर उखड़ गया, जबकि इसे 40-50 साल तक चलना चाहिए था।
'निर्माण दोष के कारण ही बालकनी से व्यक्ति गिरा'
पीठ ने तर्क को स्वीकार करते हुए माना कि निर्माण दोष के कारण ही बालकनी से व्यक्ति गिर गया था। डीडीए इन खामियों को ठीक करने के लिए जिम्मेदार था। डीडीए ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि खराब या रखरखाव न होने की जिम्मेदारी निवासी की थी। डीडीए ने कहा कि भवनों का निर्माण वर्ष 1986-87 में किया गया था और एजेंसी इतनी लंबी अवधि के बाद उनके रखरखाव के लिए जिम्मेदार नहीं थी।
इतना ही नहीं क्षेत्र को 1993 में गैर-अधिसूचित कर दिया गया था और रखरखाव सहित सभी निर्माण गतिविधियों को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को स्थानांतरित कर दिया गया था। हालांकि, अदालत ने कहा कि भवनों का निर्माण डीडीए द्वारा किए जाने के कारण एमसीडी को कोई दोष नहीं दिया जा सकता।
मां कराना चाहती थी किसी और लड़के से शादी, फिर कोर्ट फैसला
एक याचिका की पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया। जिसमें कोर्ट ने कहा कि जबरदस्ती किसी और से शादी करने का दबाव बनाने के कारण घर छोड़ने वाली युवती को युवक के साथ जाने की अनुमति दे दी।
युवती की मां की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की अदालत ने कहा कि लड़की को न तो युवती की शादी जबरदस्ती किसी और से कराने की इच्छा रखने वाली उसकी मां और भाई के साथ नहीं भेजना चाहती है और न ही उसको केयर होम भेजना चाहती है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।