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    दिल्ली छोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं मजनू का टीला निवासी, बुलडोजर और यमुना उजाड़ से परेशान हिंदू शरणार्थी

    Updated: Sat, 13 Jul 2024 09:57 PM (IST)

    पिछली बार जब दिल्ली में बाढ़ आई थी तब यह बस्ती भी उजाड़ हो गई थी। अभी वर्षा से गलियों में कीचड़ है। बाढ़ से पहले डीडीए के नोटिस से भूचाल आया हुआ है। हाईकोर्ट का यह राहत भी 10 सितंबर तक के लिए है। फिर उसके बाद क्या जैसे सवालों से घिरे हिंदू शरणार्थी दूसरे स्थानों का भी विकल्प देख रहे हैं।

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    दिल्ली छोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं मजनू का टीला निवासी।

    नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। मजनू का टीला स्थित कैंप पर शनिवार को डीडीए का बुलडोजर नहीं चला। हाईकोर्ट द्वारा 12 मार्च को दिए स्टे आर्डर को डीडीए और दिल्ली पुलिस ने मान दिया। हालांकि, दिनभर यहां के निवासी भय के माहौल में रहे। शरणार्थियों की चिंता करने वाले समाजसेवी लोगों का भी आना जाना लगा रहा। कैंप किनारे एक ओर से यमुना नदी बह रही है, जिसमें बढ़ता जलस्तर भी यहां रहते लोगों को डराए हुए हैं।

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    पिछली बार जब दिल्ली में बाढ़ आई थी तब यह बस्ती भी उजाड़ हो गई थी। अभी वर्षा से गलियों में कीचड़ है। बाढ़ से पहले डीडीए के नोटिस से भूचाल आया हुआ है। हाईकोर्ट का यह राहत भी 10 सितंबर तक के लिए है। फिर उसके बाद क्या, जैसे सवालों से घिरे हिंदू शरणार्थी दूसरे स्थानों का भी विकल्प देख रहे हैं। यह कैंप यमुना के डूब क्षेत्र में बसा हुआ है। जिसे एनजीटी ने हटाने का आदेश दिया है।

    बुलडोजर और यमुना उजाड़ से परेशान लोग

    इस कैंप के मुखिया दयाल दास मायूसी से कहते हैं कि एक तो बुलडोजर का डर है। दूसरे, हर वर्ष यमुना उजाड़ दे रही है। यहां उन लोगों के आय का साधन भी कुछ खास नहीं है। इसलिए वह ऐसे स्थान पर जाना चाहते हैं, जहां उन्हें कुछ काम धंधा मिल सके। वह बताते हैं कि यहां बसे अधिकतर हिंदू शरणार्थी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद व कराची शहर के साथ स्थित गांवों से आए हुए हैं जो परंपरागत रूप से वहां खेती आधारित रोजगार से जुड़े हुए थे।

    यहां रह रहे लोगों को नहीं मिलता रोजगार

    लेकिन, दिल्ली में कृषि आधारित रोजगार नहीं है। वे लोग काम धंधे की तलाश में आजादपुर मंडी जाते हैं तो वहां सभी को काम नहीं मिलता। ऐसे में कई परिवार बस्ती के ओर सड़क किनारे मोबाइल फोन का कवर या पान मसाला बेचकर गुजारा कर रहे हैं। वैसे, नागरिकता संशोधन कानून के लागू हो जाने के बाद से यहां रहते 35 लोगों को भारत की नागरिकता मिल चुकी है। वह देश में कहीं भी जमीन खरीदने व बसने के अधिकारी हो गए हैं।

    केंद्र से राहत की उम्मीद में शरणार्थी

    हिंदू शरणार्थी धर्मवीर कहते हैं कि अगर उन लोगों को ऐसे स्थान पर बसने की अनुमति मिले जहां कृषि आधारित रोजगार हो तो काफी बेहतर रहेगा। ऐसे में उन्हें राजस्थान के हनुमानगढ़, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड अच्छा विकल्प है। इस संबंध में वह लोग केंद्र सरकार से राहत की उम्मीद करते हैं। इस तरह की मांग रखने वाले कई शरणार्थी मिले। हालांकि, सोनादास जैसे कुछ लोग बच्चों की शिक्षा का हवाला देते हुए कहा कि बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता पहले है।

    इस कैंप में रहते पाकिस्तान में जन्मे 18 वर्षीय पवन ने केंद्रीय विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) दी है। उसकी कामना है कि वह सफल हो और देश के किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय मेें प्रवेश मिले। वह अपने साथ अपने परिवार का जीवन सुधारना चाहता है।

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