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    Gandhi Jayanti 2019: जानिए- कब महात्मा गांधी ने दिल्ली वालों को भी पढ़ाया था स्वच्छता का पाठ

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Wed, 02 Oct 2019 08:47 AM (IST)

    महात्मा गांधी अपने जीवन के अंतिम दिनों में पहले मलिन बस्ती फिर बिड़ला हाउस में रहे। मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर में वह एक अप्रैल 1946 से एक जून 1947 तक रहे।

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    Gandhi Jayanti 2019: जानिए- कब महात्मा गांधी ने दिल्ली वालों को भी पढ़ाया था स्वच्छता का पाठ

    नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। महात्मा गांधी ने दिल्ली को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया था। मलिन बस्तियों में उन्होंने न सिर्फ सफाई का बीड़ा उठाया था, बल्कि कई मौकों पर प्रशासन की आंखें भी खोली थीं। मैला ढोने की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए उन्होंने प्रशासन को तीन प्रस्ताव भी दिए थे। गांधी, दिल्ली के गांवों में सफाई को लेकर किस कदर फिक्रमंद थे, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वह वजीराबाद गांव को स्वच्छता के मामले में एक आदर्श गांव के रूप में देखना चाहते थे। टाउन हॉल के सामने एक सम्मान समारोह में भी सफाई व्यवस्था को लेकर उन्होंने अपनी चिंता से लोगों को रूबरू कराया था।

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    खुद को कहा मैला ढोने वाला

    महात्मा गांधी अपने जीवन के अंतिम दिनों में पहले मलिन बस्ती, फिर बिड़ला हाउस में रहे। मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर में वह एक अप्रैल 1946 से एक जून 1947 तक रहे। वह आखिरी बार सितंबर 1947 में दिल्ली आए। इसके पहले मलिन बस्ती में रहने के दौरान उन्होंने कहा था, ‘मैं आला दर्जे का मैला ढोने वाला हूं। मैं बाहर की सफाई करता हूं, बाहर के पखाने उठाता हूं, लेकिन हम सबके दिल में भी मैला भरा हुआ है। असली मैला ढोने वाले को भीतर की सफाई करनी होती है, जो मैं कर रहा हूं।’

    रसोई घर की तरह साफ हो शौचालय

    एक बार गांधी वायसराय हाउस गए। वहां कर्मचारियों की स्थिति देखकर बहुत द्रवित हुए। दरअसल, वायसराय हाउस तो साफ सुथरा था, लेकिन वहां के कर्मचारियों के रहने के स्थान पर गंदगी पसरी थी। उन्होंने मंत्रियों से भी गुजारिश की कि अपने नौकरों को भी उसी तरह साफ सुथरी जगह पर रखें, जैसी जगह पर वे खुद रहते हैं। उन्होंने मैला ढोने की कार्यप्रणाली में तीन सुधारों का प्रस्ताव भी रखा। पहला, काम के दौरान मैला ढोने वालों के लिए विशेष पोशाक, दूसरा काम के बाद स्नान एवं तीसरा बेहतर शौचालय। उन्होंने सिर पर गंदगी ढोने पर भी रोक लगाने की बात कही थी। वह चाहते थे कि दिल्ली नगरपालिका एक सभ्य क्षेत्र में मैला ढोने वालों को आवास मुहैया कराए। यहां उन्होंने नई दिल्ली के महलों और हरिजन बस्तियों के बीच के अंतर का भी उल्लेख किया। उनका कहना था कि शौचालय को लाइब्रेरी या रसोई घर की तरह साफ होना चाहिए।

    वजीराबाद बने आदर्श गांव

    गांधी दिल्ली के गांवों में मलेरिया फैलने से दुखी थे और इस पर अंकुश लगाना चाहते थे। उन्होंने आह्वान किया कि स्थिर पानी के कुंडों, कुओं, टैंकों और गलियों से गंदगी दूर करें। गांधी वजीराबाद गांव को आदर्श गांव के रूप में देखना चाहते थे। सफाई संबंधी अपनी चिंताओं से तिबिया कॉलेज के उद्घाटन समारोह के दौरान भी दिल्ली के लोगों को अवगत कराया था। कहा था कि स्वच्छता का विज्ञान असीम ज्ञान वाला है। हालांकि क्रियान्वयन कठिन है। 1929 में गांधी टाउन हॉल आए थे। यहां अपने सम्मान समारोह में उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से मलिन बस्तियों समेत अन्य इलाकों में सफाई पर और ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया था। बृजकृष्ण चांदीवाला ने अपनी पुस्तक गांधी जी की दिल्ली डायरी में लिखा है कि एक बार गांधी जी ने पुरानी दिल्ली के अजमेरी गेट के पास स्थित मलिन बस्ती देखी तो उन्हें लगा कि पांडवों और मुगलों का यह शानदार शहर आज हिंदुस्तान का सबसे गंदा शहर है। दिल्ली के म्यूनिसिपल काउंसलर और हेल्थ आफिसर क्या करते रहते हैं, भगवान ही जाने।

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