'दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पहल का किया उल्लंघन', LG सक्सेना ने लंबित सभी फाइलें तीन दिन के भीतर मांगी
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार से न्यायिक ढांचे और प्रशासन से जुड़ी लंबित फाइलें मांगी है। राजनिवास अधिकारियों ने बताया कि उपराज्यपाल ने निर् ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनिवास ने दिल्ली सरकार से न्यायिक ढांचे और प्रशासन से जुड़ी लंबित फाइलें मांगी है। राजनिवास अधिकारियों ने बताया कि उपराज्यपाल ने निर्देश दिया है कि कानून मंत्री के पास छह महीने से लंबित सभी फाइलें उन्हें तीन दिनों के भीतर सौंपी जाएं।
इन फाइलों में रोहिणी में जिला अदालत परिसर के निर्माण, राउज एवेन्यू कोर्ट में वकीलों के चैंबर, जिला अदालतों के लिए थिन-क्लिंट मशीनों की खरीद, पारिवारिक अदालतों के लिए प्रिंटर, राज्य और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों के गठन, ‘आधिकारिक रिसीवर’ की नियुक्ति, दिल्ली सरकार में डीवीएटी/जीएसटी/ट्रिब्यूनल/जिला न्यायालयों में पैनल के गठन का प्रस्ताव और दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों के भत्ते में वृद्धि आदि के प्रस्ताव भी शामिल हैं।
चार दिसंबर को प्रमुख सचिव (कानून और न्याय) की एक रिपोर्ट में एलजी सचिवालय के संज्ञान में 18 फाइलें लाई गईं, जो लंबित थीं। फाइलों पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए 13 नवंबर को कानून मंत्री को भी लिखा था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
तीन दिन के भीतर सभी फाइलें देने के निर्देश
इसी क्रम में, एलजी सचिवालय ने बृहस्पतिवार को प्रमुख सचिव (कानून और न्याय) को एक पत्र में कानून मंत्री के पास लंबित सभी फाइलों को तीन दिनों के भीतर उपराज्यपाल के अवलोकन और विचार के लिए प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पत्र की एक प्रति सीएम अरविंद केजरीवाल को भी भेजी गई है।
यह देरी सुप्रीम कोर्ट की पहल का उल्लंघन
इसमें जीएनसीटीडी, 1993 के व्यापार नियम 19(5) की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि ‘आप’ सरकार द्वारा इन फाइलों को निपटाने में हुई अप्रत्याशित देरी, न्याय प्रशासन में तकनीकी नवाचारों को पेश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पहल का उल्लंघन है। इससे न्यायिक प्रणाली की दक्षता एवं प्रभावशीलता प्रभावित हो रही थी।
सरकार की देरी से आम लोग प्रभावित हो रहे
उपराज्यपाल ने फाइलों को वापस लेते हुए इतनी बड़ी संख्या में अदालत और न्यायिक प्रशासन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रस्तावों के लंबित होने पर गंभीरता व्यक्त की और ध्यान दिलाया कि दिल्ली सरकार के कानून मंत्री द्वारा की गई देरी से राजधानी में न्याय प्रशासन में अड़चनें पैदा हो रही थीं और आम लोग प्रभावित हो रहे हैं।

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