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कचरा निपटान के प्रति जन जागरूकता का अभाव व निगम की लचर कार्यप्रणाली जिम्मेदार

राकेश मेहता पूर्व आयुक्त एकीकृत Mcd ने बताया कि ठोस कचरा प्रबंधन के नियम कायदे अधिसूचित होने के बावजूद न तो आम जनता ही इसके प्रति गंभीर है और न ही नगर निगम कर्मचारी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 10:51 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 11:08 AM (IST)
कचरा निपटान के प्रति जन जागरूकता का अभाव व निगम की लचर कार्यप्रणाली जिम्मेदार
कचरा निपटान के प्रति जन जागरूकता का अभाव व निगम की लचर कार्यप्रणाली जिम्मेदार

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। अपनी आंखें बंद कर एक बार जरा घर के डस्टबिन को याद करें तो सब्जियों के छिलके से लेकर प्लास्टिक की बोतलें, शैंपू की खाली बोतलें, बचा खाना, कांच के टुकड़े... सब कुछ एक ही डस्टबिन के अंदर नजर आएगा। मतलब सूखा और गीला कूड़ा का सारा कांसेप्ट प्रारंभिक स्तर पर ही फेल, जबकि जगह-जगह होर्डिंग और पोस्टर लगाकर लोगों को सूखा और गीला कूड़ा अलग करने का संदेश दिया गया। चौक-चौराहों पर हरे और नीले रंग के डस्टबिन भी लगाए गए, लेकिन नतीजा... सिफर। न तो लोगो की मानसिकता बदली न ही व्यवस्था में सुधार हुआ। आज भी गली के मुहाने पर कूड़े का अंबार, सड़कों पर बिखरा कूड़ा, शौचालयों की बदहाल स्थिति, गलियों में ओवरफ्लो नाले का पानी जैसी तस्वीर आम है। कितनी ही सरकारें आईं और गईं, पर दिल्ली स्वच्छ न हो सकी।

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एनसीआर की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पूर्व अपने घोषणा पत्र में कहा है कि वह दिल्ली को साफ और स्वच्छ बनाने के लिए निगमों से इतर अपने स्तर पर भी काम करेगी। लेकिन, सवाल यह है कि केवल कह देने भर से तो तस्वीर नहीं बदलेगी। इसके लिए ठोस नीति और इच्छाशक्ति की जरूरत है। नीतियों और योजनाओं को अमल में कैसे लाया जाए, इस पर मंथन करने की जरूरत है। क्या नगर निगम अधिकारी और दिल्ली सरकार राजनीतिक मतभेद छोड़ जनता को जागरूक करने की दिशा में मिलकर काम कर पाएंगे? सफाईकर्मी और जनता को जागरूक करने के लिए कोई योजना बनाई जाएगी? लोग भी आलस को त्याग सूखा और गीला कूड़ा का कांसेप्ट अपने जीवन में उतार पाएंगे? यही है हमारा आज का मुद्दा :

लुटियन दिल्ली में चमचमाती चौड़ी सड़कें, सरपट दौड़ते वाहन, सड़कों के किनारे हरियाली देख लगता है किसी भी राजधानी की इससे बेहतर सूरत और क्या होगी? लेकिन जैसे ही दिल्ली के अलगअलग क्षेत्रों में प्रवेश करेंगे स्वच्छ भारत अभियान का वास्तविक रूप दिखने लगेगा। गलियों में ओवरफ्लो नाले का पानी, कूड़ा घर होने के बावजूद सड़क पर फैला कूड़ा, दुर्भाग्य से अगर बारिश हो जाए तो स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। एनसीआर में भी स्वच्छता अभियान सिर्फ नारे और स्लोगन तक सिमट कर रह गए हैं।

राजनगर गाजियाबाद का पॉश इलाका है लेकिन यहां बेरोक-टोक सर्विस डोर पर कूड़ा डाला जा रहा है। जबकि फरीदाबाद में स्वच्छता अभियान को बेहतर तरीके से चलाने के लिए घर-घर से कूड़ा एकत्र करने के लिए इको ग्रीन ने काम शुरू किया था। एमओयू के मुताबिक नगर निगम के हर वार्ड से गीला व सूखा कूड़ा एकत्र किया जाना था, मगर तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी यह काम पूरा नहीं हो पाया है। वहीं गुरुग्राम नगर निगम के पास मैनपावर, मशीनरी होने के बावजूद शहर साफ-सुथरा नजर नहीं आ रहा है।

कागजों तक सिमट गई योजना : ठोस कचना प्रबंधन के तहत सूखे और गीले कचरे को अलग करने की नीति तो बनाई गई, लेकिन वह महज कागजों, भाषणों और स्लोगन तक ही सिमट कर रह गई। अभी तक सूखे व गीले कचरे को अलग करने और लैंडफिल साइटों पर एकत्रित कचरे का निपटान करने की व्यवस्था कायम नहीं हो सकी है। लुटियन दिल्ली को छोड़ दें तो जगह-जगह कूड़े का ढेर देखने को मिल जाता है। पहाड़ों के रूप में तब्दील हो रही लैंडफिल साइटों का समाधान तो दूर की बात है, छोटे छोटे डलाव घर भी नियमित रूप से साफ नहीं होते। यह सारी स्थिति नगर निगम की लापरवाही के कारण है। यहां पर हमेशा से ही काम पर राजनीति हावी रही है।

अभियान चलाकर करना होगा जागरूक: समस्या की जड़ कचरा निपटान के प्रति जन जागरूकता का अभाव ही नहीं, नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली भी है। इंजीनियरिंग विंग जहां टेंडर निकालने में रुचि रखती है वहीं सफाई शाखा के अधिकारी-कर्मचारी भी अपनी सुख सुविधाओं की पूर्ति में लगे रहते हैं। इस समस्या का समाधान किसी के भी लिए प्राथमिकता नहीं होता। सार्वजनिक शौचालय भी इसीलिए बदहाल हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि कचरा चाहे घर का हो दफ्तर का, अस्पताल का या फिर किसी प्रतिष्ठान का उसको अलग करने की व्यवस्था वहीं पर होनी चाहिए। इसके लिए बाकायदा एक अभियान चलाना होगा। जनता को जागरूक करने के साथ-साथ सफाई कर्मियों को भी प्रशिक्षित करना होगा।

वार्ड स्तर पर प्लांग लगाए जाने चाहिए ताकि हर वार्ड का कचरा वहीं पर निपटा दिया जाए। अगर इस नीति पर गंभीरता से अमल करते हुए कचरे का निपटान किया जाए तो उसमें 55 से 60 फीसद गीला कूड़ा निकलेगा जो बिजली या गैस बनाने के काम आ सकता है। इसके बाद बचे हुए कचरे से धातु अलग कर उसे रिसाइकल किया जा सकता है। आखिर में जो कचरा बच जाए, उसे इंसीनरेटर में जला दिया जाए। लैंडफिल साइट की समस्या खत्म करने के लिए हमें एक सतत एवं स्थायी व्यवस्था अपनानी होगी जो दुर्भाग्य से अभी तक अमल में नहीं लाई जा सकी है। इसके लिए नगर निगम को भी अपनी कार्यप्रणाली सुधारनी होगी और सरकार को भी दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा।

मिश्रित कूड़ा बड़ी चुनौती : दिल्ली-एनसीआर में लैंडफिल साइट भी इसीलिए समस्या का सबब बनी हुई हैं, क्योंकि ठोस कचरा प्रबंधन के नियम कायदे अधिसूचित होने के बावजूद न तो आम जनता ही इसके प्रति गंभीर है और न ही नगर निगम कर्मचारी। अगर वैज्ञानिक तरीके से कचरे का निपटान किया जाए तो कहीं कोई समस्या ही नहीं रहेगी। अभी लैंडफिल साइट पर जो कचरा डंप हो रहा है, उसमें गीला कूड़ा भी होता है और सूखा भी, प्लास्टिक कचरा भी रहता है और मलबा भी, धातुएं भी मिली रहती हैं। ऐसे में इनसे न केवल भूजल और वायु प्रदूषित होता है, बल्कि वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में इनका रिसाइकल भी मुश्किल हो जाता है।


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